पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/२५३

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अतरिख-अतसो २४७ विधारा। दिन। वर्तमान दिनके आगेका तीसरा दिन । अतलस्मृक् (सं० लो) जल, पानी। २ वर्तमान दिनसे बीता हुआ तीसरा दिन । अतलस्पृश् ( स० वि०) न तले स्पृश्यते, स्पृश-क्विन्- अतरिख (सं० अन्तरिक्ष ) अन्तरिक्ष देखो। कर्मणि। स्पृशोऽनुदके किन्। पा० २।३।५८। क्विन् प्रत्ययस्य कु: अतरुणदारु, अतरुणदार (सं० पु०) वृद्धदारक वृक्ष, पा० ८।२।७२ । अतलस्पर्श, अगाध । अतव्यस् (वै० त्रि०) निर्बल, कमज़ोर । अतर्क (सं० पु०-त्रि०) तक्यं तेऽनेन तर्कः हेतुः, अध्या- अतस (स'० अव्यय ) इदम्-तसिल । इसलिये, इस हारश्च स नास्ति यस्य, बहुव्री० । अध्याहारस्तर्क ऊह इत्यमरः । कारण । अतो भवेत् कारणाय देश नद भयोरपि, पञ्चबर्वे (विश्वप्रकाश:)। अहेतुक, शुष्कतर्कपर, तर्कशून्य। अतस (सं० पु.) अत गतो असच्, अतति गच्छति । अतर्कित (स. त्रि.) न-तक-त । हेतुव्यापार- अत्यविचमितमिनमिरभिलभिनभितपिपतिपनिपणिमहिन्योऽसच् । उण् ३११७॥ रहित, हठात् अविवेचित, अनान्दोलित, अननुमित, अततीत्यतसः वायुरामा च। ( इति उञ्चलदत्तः) १ वायु। बिना विचारका, आकस्मिक, बेसोचा-समझा, जिसकी २ आत्मा। ३ वल्कलनिर्मित वस्त्र । ४ अस्त्र। विवेचना पहलेसे न की गई हो। अतसः क्षीमं प्रहरणं वायुवेति धातुवत्ती। (माधवः) अतक्यं (सं० त्रि.) जिसमें किसी तरहका कारण अतसाय्य (वे० त्रि.) भिक्षा मांगनेसे जो मिले। दिखाया न जा सके, अनिर्वचनीय, तर्कवितर्क-रहित । अतसि (वै. पु०) घूमनेवाला साधु, आवारा फकीर। अतर्पस्, अतर्पिस (स' त्रि०) अधर्मी, तपस्या न अतसी (स. स्त्री०) अतस डोष्। तौसी, अलसी। करनेवाला। चणका, उमा क्षोमो, रुद्रपत्नी, सुवर्चला, पिच्छला, अतल (सं० लो०) अस्य भूखण्डस्य तलम्, पृषोदरा- देवी, मदगन्धा, मदोत्कटा, चूमा, हेमवती, सुनौला, दित्वात् इदमोऽत्वम् । १ सात पातालों में इस पृथिवीके नौलपुष्पिका यह पर्याय हैं। दूसरी भाषाओं के विभिन्न नाम नीचे देखिये,- नीचेका पहला पातालखण्ड। सात पातालोंके नाम यह हैं,-अतल, वितल, सुतल. तलातल, महातल, रसा- गुजराती-अलसी, कश्मोरी-अलीस, उड़िया-पेम, सामिल- तल, और पाताल। यह सात पाताल क्रमान्वयसे एकके अलसि-विराद ; अलि-बेराद्र ; तेलङ्गी-उल्लु मुल, अतसी; कनाड़ी- अलसी ; तुर्की-जिवीर, पारसी-जधार, अरवी-बाजरुत, कत्तान, नीचे दूसरा और दूसरेके नीचे तीसरा, इसीतरह अव: फरासी.-लिन् (Lin), अंगरेजी-लिनसिड (Linseed,) लाटिन- स्थिति करते हैं। मंदिनो प्रभृति अभिधानों में नाग- लाइनाम् उसितासिसिमाम् (Linum usitatissimnm); ओलन्दाज- लोक हो पाताल बताया गया है,-'पातालं नागलोके लिनजयाद (Lynzaad), दिनेमार-हिरफ्रि ( Haerrfrae ), मुद्रस स्वाद विवरे वड़वानले ।” आजकल कितने ही लोग अनुमान लिनफ्रि (Linfrae) इटाली-लिनसिम् (Linseme), स्पेन-लिनाजा करते हैं, कि अमेरिका देशको हमारे शास्त्रकारोंने (Linaza), पुर्तगाल-लिङ्गो (Linho), रुस-सैम्जा लेन जानि, "पाताल बता उल्लेख किया है। अमरकोषक पोलण्ड-सियेमि इनिओन (Siemie inione) ऐग्लोवाक्-लिनसिड मतसे नागलोक ही रसातल है। (त्रि०) नास्ति (Linseed), निम्न जमन-लिनसेट (Linsaat), उच्च जन्मन- लेदनसमैन (Leinsemen)। तलं यस्य । २ जिसका तल न हो, अत्यन्त गभीर। नास्ति तलं प्रतिष्ठा यस्य । ३ अप्रतिष्ठ, अख्यात । वैद्यक ग्रन्थों में इसके ऐसे गुण लिखे गये हैं, यह अतलस (अ॰ स्त्री०) एक निहायत नर्म रेशमी गर्म, तीती, वातघ्न और श्लेष्मा और पित्तको वस्त्र। बढ़ानेवाली है। इसका तेल मधुर. पिच्छल, अतलस्पर्श (स. त्रि.) न तलस्य अधोभागस्य स्पशों सद्गन्ध और कषैला होता है। इससे ऊभ यत्र, बहुव्री। अगाध, अतिगभौर। और खांसी नष्ट हो जाती है। यह स्वादु, गर्म और अतलस्पर्शी (सं० त्रि.) जो अतलको छुए, बहुत कुछ खट्टी रहती और पकनेसे पड़ती है। गहरा, अथाह। तौसी शब्द अतसी शब्दका अपभ्रश है। कड़