पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/२६४

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सुबूत न हो। उत्पन्न हो। उक्ति। २५८ अतिप्रवरण-अतिबाला प्रमाणातिक्रान्त, सुबूतसे खाली, जिसका कोई बलवान्, बहुत बली, प्रबल । (पु.) २ महाभारतीय राजभेद। (शान्तिप०) अतिप्रवरण (सं० लो०) अनोखा चुनाव । अतिबला (सं० स्त्री०) अतिशयितं बलं यस्याः । अतिप्रवृत्ति (सं० स्त्री०) किसी कार्य में अधिक प्रवृत्त पीतवर्ण लताविशेष,-१ एक पीली लता। बलिका, होना, अजहद रगबत, बड़ा झुकाव । बला, वाद्यपुष्पिका, घण्टा,. शीता, शीतपुष्पा, अतिप्रश्न (सं० पु०) अतिक्रम्य मर्यादा प्रश्नः । भूरिचला, वृष्यगन्धिका यह पर्याय हैं। २ ककही या मर्यादा अतिक्रमकरनेवाला प्रश्न, समझके बाहर ककई नामको एक ओषधि, जिसका पौधा छोटासा सवाल। (त्रि.) २ पूछने योग्य । होता है। ३ बरियारी। अतिप्रसक्ति (स. स्त्री०) अत्यन्त आसक्ति, बड़ी ४ अतिबला-एक विद्याविशेष है। विश्वामित्रने चाह। रामचन्द्रको यही मन्त्रविद्या पढ़ाई थी। रामायणके अतिप्रसङ्ग (स.पु.) १ जिस पदार्थमें अति प्रसक्ति आदिकाण्ड में लिखा है, कि विश्वामित्र राम- २ अत्यन्त प्रसक्ति। (त्रि.)३ प्रसङ्गके लक्ष्मणको अपने आश्रममें लिये जाते थे। चलते- अतिक्रमसे विशिष्ट, प्रसङ्गान्तरका कहना, बार-बारको चलते सरयूकूलमें जा पहुंचे। उसी जगह उन्होंने रामचन्द्रसे कहा, 'वत्स ! मैं तुम्हें बला और अति- अतिप्रसिद्ध (स. त्रि.) १ अत्यन्त विख्यात, बहुत बला नानी दो विद्यायें पढ़ाऊंगा, तुम आचमन कर मशहर। २ सुभूषित, खूब सजा हुआ। (पु.)३ आओ। बला और अतिबला विद्यामें असाधारण गुण प्रकाश, आतप, रोशनी, धूप। वर्तमान हैं। इन्हें ग्रहण करनेसे तुम किसी काममें अतिप्राण (सं० पु०) स्वर्गीय जीवन । न थकोगे, भूख-प्यास न लगेगो और धूपको गर्मीसे अतिप्राणप्रिय (सं० वि०) बहुत प्रिय, प्राणोंसे भी तुम न कुम्हिलाओगे। इसके बाद तुम प्रमत्त भी प्यारा। अथवा निद्रित अवस्थामें भी चाहे क्यों न रहो, परन्तु अतिप्रेषित (सं० लो०) प्रेष मन्त्र पढ़नेका समय, राक्षस तुम्हारा कुछ अनिष्ट न कर सकेंगे। पृथिवीपर जो यज्ञके अन्त में आता है। बलवीर्यमें कोई तुम्हारी बराबर न रहेगा। अतिप्रौढ़ (सं० त्रि०) भरा-पूरा। त्रैलोक्यके बीच सौभाग्यमें, दाक्षिण्यमें, और ज्ञान अतिप्रौढ़यौवन (सं० त्रि०) पूरी जवानीमें । तथा प्रत्युत्तर देने में तुम अद्वितीय हो जाओगे। यह अतिप्रौढ़ा (सं० स्त्री०) अतिशयिता प्रौढ़ा । अत्यन्त दोनो विद्यायें सब ज्ञानोंको माता जैसी हैं। राहमें वृद्धियुक्ता, ख ब बढ़ी हुई, जिस बालिकाके इनके पढ़नेसे किसी विपद्का भय नहीं रहता। ये विवाहका समय आ गया हो, जिस बालिकाको दोनो तेजस्विनी विद्यायें पितामह ब्रह्माको कन्या अवस्था दश वर्षसे अधिक हो गई हो। हैं।” रामचन्द्रने, विश्वामित्रके महसे बला और अतिबरवै (हिं. पु०) पहले और तीसरे चरणमें बारह अतिबला विद्याका ऐसा गुण सुनके उन्हें ग्रहण किया। तथा दूसरे और चौथे चरणमें नौ मात्रायें रखनेवाला ५ दक्षको एक कन्या और कश्यपको एक पत्नी। छन्द । इस छन्दके विषम पदोंके आदिमें जगण आना (रामा० कि० २० । १२) दूषित और इसके सम पदोंका अन्त्य वर्ण लघु रहना अतिबलिका, अतिबली (सं० स्त्री०) वाट्यालका, उचित है। बरियारी। अतिबरसण (हिं. पु.) १ अतिवर्षण। २ मेघमाला, अतिबालक (सं० पु.) १ बहुत ही छोटा बच्चा । घटा। (त्रि.) २ लड़कों-जैसा। अतिबल (सं० वि०) अतिशयितं बलमस्य। १ अतिशय अतिबाला (सं० स्त्री०) अतिक्रान्तो बाला बाला- इस