पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/२६९

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अतिवाहन-अतिविषा २६३ देहान्तरं प्रापयति। ईश्वरनियोजित अर्चि आदि | अतिविषा (सं. स्त्री०) उद्भिदुविशेष। इस शब्दसे अभिमानी देव-विशेष। ईश्वरके नियुक्त किये हुए दो प्रकारका उद्भिद् समझा जाता है,-१ वत्सनाभ अर्चि आदि देवता। और २ अतीस। अतिवाहन (स. त्रि.) वह वोझा-जो वाहन (सवारी) १ वत्मनाभ (Aconitum ferrox)-इसका पेड़ आदिसे न लेजाया जा सके, बहुत भारो, निहायत कोई २।३ फुट तक ऊंचा होता है। हिमालयके तकलीफदह । उच्च प्रदेश, नेपाल और गढ़वालसे सिकिम तक यह अतिवाहिक (सं० पु.) १ अतिवाहक योग्य, सूक्ष्म वृक्ष खूब देख पड़ता है। इसकी सूखी जड़ भारत- शरोर, लिङ्गशरीर। २ पातालका रहनेवाला। वर्षके उत्तर प्रदेशस्थ बाजारों में विषके नामसे बिका अतिवाहित (सं० वि०) यापित, अतिक्रमित, करती, जो एकोनाइट (Aconite) कहाती है। पहुंचा हुआ, लांघा हुआ। यह सद्गन्धहीन है, मुंहमें पहले डालते हो कटु अतिवाह्य (सं० त्रि.) अतिवाहके योग्य । मालूम पड़ती और जीभ और तालुको एकबारगी अतिविकट (सं० पु.) अतिशयेन विकटः। १ दुष्ट ही सुन्न कर देती है। हस्ती, बदमाश हाथी। (त्रि.) २ अतिभयङ्कर, एकोनिटम् नपेलास् (Aconitum Napellus ) निहायत खौफनाक। नामक युरोपीय उद्भिद्को तरह यह भी नानाप्रकार- अतिविदाही (सं० स्त्री.) राजसर्षप। बहुत जलन के औषधों और रोगोंमें काम आते रहती है। पैदा करनेवाली। इससे टिचर अव एकोनाइट बनता है। कोई अतिविद्ध (सं० त्रि.) बहुत घायल, निहायत आध सेर जड़में ५०से ८० ग्रेनतक एकोनाइट जखमी। रहता है। इसके एक ग्रेनका दशमांश मनुष्यके अतिविपिन (सं० त्रि.) कितने ही जङ्गलीवाला, लिये संशयकर है। उत्तराञ्चलमें ज्वर, विशूचिका बहुत जङ्गली। और वातरोगपर यह दी जाती है। अतिविलम्बिन् (सं० त्रि०) बड़ी देर लगानेवाला, Aconitum Luridum, A. निहायत सुस्त । Paniculatum प्रभृति दूसरे उद्भिदोंका गुण भी 'अतिविश्रब्ध-नवोढ़ा (सं० स्त्री० ) अतिशयेन विश्रब्धा अतिविषाके गुण-जैसा हो होता है। नायकस्य प्रश्रयप्राप्ता नवोढ़ा नायिका । खौयान्तर्गत २ अतीस ( Aconitum Heterophyllum) यह मध्य नायिकाविशेष। अपने पतिपर अत्यन्त प्रीति वृक्ष हिमालयके पश्चिम प्रदेश और सिन्धुनदसे रखनेवाली मध्या नायिका। सामान्यतः नवोढ़ा चार कुमायूँतकके जनपदसमूहमें उत्पन्न होता और तरहको होती हैं,-खकीया नवोढ़ा, परकीया कोई २।३ फुट ऊंचा बढ़ता है। इसकी सूखी जड़ नवोढ़ा, सामान्य नवोढ़ा और विश्रब्ध-नवोढ़ा। जो बड़े कामको है। यह गन्धहीन, कटु और तीव्रता- नायिका नायकके अतिशय प्रश्रयसे युक्त होती है, उसे रहित होता है। जड़में कोई विषाक्त गुण नहों। विश्वब्ध-नवोढ़ा कहते हैं। रसमञ्जरीमें इसका बाज़ारमें तरह-तरहको जड़ें अतीसके नामसे बिकती लक्षण यह बताया है, कि यह धैर्य रखनेवाले अप- हैं, किन्तु जो स्वभावतः कटु हो, उसोको अतीस- राधी नायक पर ताने मारती और जो अपराधी नायक समझना चाहिये। अधीर होता, उसे खरी-खरी सुनाती है। अतीस दो तरहका होता है-एक काला और अतिविश्व (सं० पु.) १ संसार भरसे श्रेष्ठ। २ एक एक सफेद। वैद्यशास्त्र में तीन तरहके अतीसको मुनिका नाम। बात लिखी है-१ सफ़ेद, २ काला, ३ लाल। अतिविष (में अतिविषा) अतिविषा देखो। वैद्यक मतसे यह पाचक, कटु, उष्ण और कफ, पित्त, इस जातिक