पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/२७

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अकबर २५ , मर गये । सलीम अकबरकै तौसर लड़के थे। इनका विशेष अवश्य होती थी; परन्तु उनकी संख्या बहुतही ही नाम पौछे जहांगीर हुआ। चौथा सुल्तान मुराद अल्प थी। और पांचवां दानियाल हुआ। कन्याओं में सबसे बड़ी सम्राटको पढ़ाई का यह ढङ्ग पसन्द न था ; इसौ- शाहजादो खानुम्, मँझलो शुक्रु निसा बेगम और लिये उन्होंने पढ़ाई का ढङ्ग बदल दिया और यह सबसे छोटी आरामबान बेगम थी। निश्चित कर दिया कि, विद्यार्थियोंको कौन-कौनसौ अकबरके समयमें हिन्दुओंको राजकार्यमें अच्छा विद्या पढ़नी होगी। आईन-इ-अकबरीमें अकबरके • अधिकार था। बिहारीमल, गोपालदास, मानसिंह विद्या-विभागका वर्णन आईन-इ-आमोजिशके नामसे वीरबल, टोडरमल, रायसिंह आदि कितनेही सुयोग्य किया गया है। हिन्दू उनके सभासद और प्रधान प्रधान सेनापति थे। उसमें लिखा है कि, सम्राट्ने विद्यार्थियोंकी पढ़ाई- अकबर इस विषयमें सदा सावधान रहते थे और का एक नया ढङ्ग निकाला। पहिले तो अक्षरों के उद्योग किया करते थे कि, हिन्दू-मुसलमानोंमें वैर न जोड़ने और संयुक्त अक्षरोंके समझने में ही बहुत दिन बढ़कर प्रेम हो जाय। लग जाते हैं ; परन्तु इस तरकोबसे विद्यार्थी स्वरवर्ण जीवहिंसा भी अकबरको प्रिय न थी। वे अधिकतर और व्यञ्जनवर्ण समझ लेनेके बाद आपही अक्षर माँस न खाया करते थे और गो-माँसको छूते भी न थे। जोड़ते और आगे पढ़ते जाते थे। इस तरह वे बहुतही उनके मतसे गोमांस अखाद्य पदार्थ था। एक बार शीघ्र गद्य और पद्यको पुस्तकें पढ़ने लगते थे। विद्या- उन्होंने चित्तकै आवेगमें कहा था, “क्या करूं, मेरा र्थियोंको आपही आप अक्षर जोड़कर पदनेको शिक्षा • शरीर अधिक बड़ा नहीं है। यदि मेरा शरीर बड़ा दी जाती थी, पढ़ानेवाला बहुत थोड़ी सहायता देता होता, तो इस मॉसपिण्ड-रूपी देहको त्याग देता, था। पढ़ानेवालोंको नीचे लिखो पांच बातें नित्य जिसमें जगत्के जीव सुखसे भोजन करते । प्राणी-हिंसा जांचनौ पड़ती थी। फिर देखने में न आती।" (१) अक्षर (२) शब्द (३) पद्यका उच्चारण। (४) जीवन अनित्य है, गया हुआ समय फिर नहीं पूरा छन्द (५) पिछला पढ़ा हुआ। मिलता। इसी कारणसे अकबर थोड़ा भी समय वृथा इस तरह विद्यार्थी बहुत शीघ्र पढ़ लेते थे। इतना नष्ट नहीं करते थे। ईश्वरको आराधना, सत्यका आदर ज्ञान हो जानेपर विद्यार्थियोंको धीरे धीरे इतनी और सदनुष्टानमें उत्साह यही अकबरका नित्य और विद्याएं और पढ़नी पड़ती थीं। नैमित्तिक कार्य था। दूर-दूरके सभ्य और विद्वान् १. अखलाक (नौति) पुरुष बिना रोक-टोकके उनसे मिलते थे। सबसे बड़ी २. हिसाब (लेखा) बात उनमें यह थी, कि इतना बड़ा राज्य मिलनेपरभी ३. सबाक (साहित्य) उनको कुछ अभिमान न था। ४. फलाहत (खेतको विद्या) सम्राट अकबरने अपनी विद्या-बुद्धि द्वारा जिस मसाहत (पैमायश) प्रकार शासन- मुधार किया था; उसी प्रकार ६. हिन्द सा (गणित) शिक्षा विभागका भी अच्छा सुधार किया था। उस ७. नजम (ज्योतिष) समयके विद्यार्थियोंको पूरी शिक्षा नहीं मिलती ८. रमल (प्रश्न-विचार) थी, थोड़ी अरबी, थोड़ी, फारसी और थोड़ी हिन्दी ८ तदबीर मंजिल (एहस्थ-व्यवहारको विद्या) यही उस समयको साधारण पढ़ाई थी और इतना १०. सयासत मदन (राज्य प्रबन्ध) पढ़ लेनेपर विद्यार्थी शाही नौकरीके उपयुक्त समझे ११. तिब्ब (वैद्यक) जाते थे। पण्डित और मौलवियोंकी पढ़ाई कुछ १२.. तबइ (पदार्थविद्या) । ५.