पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/२७५

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अतिसान्द्र-अतिसार २६६ मनुसंहितामें लिखा है, कि जान-बूझकर जातिभ्रंश इस बातका ठीक-ठीक कोई उत्तर नहीं, कि कर पाप करनेपर सान्तपन व्रत करे, किन्तु यदि यह कुपथ्य और गुरुपाक द्रव्य अर्थात् भारी चीजें. कौन- पाप बिना जाने हो जाय, तो प्राजापत्य व्रत करना कौन हैं। क्यों कि, एक मनुष्यके लिये जो वस्तु चाहिये। यथा- कुपथ्य और गुरुपाक है तथा जिसे थोड़ोसी ही "जातिय शकर कम्म कृत्वान्यतममिच्छया। खानेपर उसके पौड़ा उत्पन्न हो जाती है, दूसरा चरेत् सान्तपनं कच्छ प्राजापत्यमनिच्छया ॥ १५॥१२५ । विष्णुसंहिताके मतसे, पहले दिन गोमूत्र, गोमय वही वस्तु दशगुण खाके अच्छोतरह पचा जाता है। फिर जाड़े में जो चोज, अनायास ही जीर्ण ( हज.म) यानी गोबर, दूध, दही, घी और कुशोदक सेवन करे; होती, गर्मी और बरसातमें उसके खानेसे पीड़ा दूसरे दिन उपवास करे। इसौको सान्तपन कहते हैं। यह व्रत तीन बार अभ्यस्त होनेसे हो अति- होने लगती है। इससे तो, दैहिक स्वभाव, अभ्यास और जाड़े-गर्मीको कमी-वेशी देख सुपथ्य और सान्तपन कहाता है। अतिसान्द्र (सपु.) राजमाष, लोबिया, चौंला। कुपथ्य विचारना पड़ता है। प्राय: लडडू, पूड़ी, अतिसांवत्सर (सं० त्रि०) एक वर्षके ऊपर, संवत्सरसे जलेबी प्रभृति मिठाइयों और पुलाव प्रभृति जिन अधिक क। चीजोंमें घी और मसाला ज्यादा रहता है, उन्हें अतिसामान्य (सं० पु०) १ वह उक्ति जो कहनेवाले गुरुपाक कहते हैं। सिवा इसके, जिन चीजोंमें के मतलबसे बाहर निकल जाती है। (त्रि.) बकला, रेशा और वीज अधिक रहता है, वही २ निहायत मामूली, बहुत सौधा । कुपथ्य होती हैं। प्याज और लहसुन भी सुपथ्य अतिसाम्या (स. स्त्री०) अत्यन्तं साम्य अधुना नहीं। किन्तु युरोपीय पण्डित इन दोनो चीजोंको अस्याः बहुव्रौ०। १ मधुयष्टिलता, मौरठौकी बेल । आग्नेय समझते हैं। भारतवर्ष में गर्मी बहुत पड़ती (लो०) प्रादि-स० । २ अत्यन्त सादृश्य । है, यहां प्याज और लहसुन सुपथ्य नहीं हो सकता। अतिसायं (सं० अव्य० ) अतिशयितं सायं। अत्यन्त मनुसंहितामें लिखा है,-ऋषियोंने मनुके सन्तान सायंकाल। भृगुसे पूछा, कि सत्ययुगमें जब मनुष्यको आयु चार अतिसार, अतीसार (स० पु०) रुधिरादिकं अतिशयेन सौ वर्षको लिखी है तब वेदपारग ब्राह्मणोंको सारयतौति, अति-स-घञ्। सरति अतीव इत्यतिसारः। जो अकाल मृत्यु क्यों होती है। भृगुने इसके उत्तरमें रुधिर आदिको बहुत गिराये, रोग-विशेष, उदरामय खाद्यदोष हो मृत्युका प्रधान कारण बताया। रोग, वह बीमारी, जिसमें आँव और खून गिरता अभक्षा देखो। तथा लहसुनको. है। अतिसार रोग साधारणतः दो प्रकारका होता है। दूषित कहा। अपर लिखे हुए कुपथ्यके सिवा और श्लेष्मातिसार (diarrhea) और दूसरा रक्तातिसार भी अनेक अनिष्टकर ट्रव्य प्रायः सकल हो खाया (dysentery)। इसके भिन्न-भिन्न कारण, लक्षण करते हैं। इसमें बाजारको मिठाई प्रधान है। और चिकित्सादि इस तरह हैं,- प्रायः हलवाईको दुकानमें जो खानेको चौजे मिलती कुपथ्य या गुरुपाक द्रव्य अधिक खाकर, कितने हैं, वह विषके बराबर हैं। हलवाई सस्ते घोको ही लोग पचा नहीं सकते। विशेषतः जिन्हें क्रय करते हैं, जो कभी स्वास्थ्य के लिये लाभदायक शारीरिक परिश्रम नहीं करना पड़ता, आठों पहर नहीं होता। नारियलका तेल, बकरे और बैलको केवल एक ही स्थानमें बैठके लिखने-पढ़नेको चर्चा चर्बी और अण्डौका तेल इस धीमें अधिक परिमाणसे करनी होती है, या जो स्वभावसे ही आलसी हैं, मिला रहता; अधिक क्या बताया जाये. घौमें जो चीज़ खानेकी नहीं, वही पड़ती है। ऐसे थोड़ी दूर चलने में जिन्हें कष्ट होता, उनके लिये भारी चीज, खाना मना है। हो घौमें मिठाई तय्यार की जाती है। इसके बाद और प्याज