पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/३१८

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अथर्ववेद-अथर्वाण हैं, अध्वर्यु, छन्दोग किंवा वह च नहीं कर सकते। ऋग्वेदमें नरक शब्दका उल्लेख नहीं। किन्तु इस ब्रह्मा राक्षसोंसे रक्षा कर सकते हैं, अतः अथर्व वेदन वेदमें वह नारक लोकके नामसे उल्लिखित हुआ है। व्यक्ति ही ब्रह्मा हैं। (अथर्व १२॥४॥३६॥ ) इस वेदमें गोवध निषिद्ध बताया अथर्व वेदमें केवल शूद्र और आर्य–इन्हीं दो गया है। (५।१८।३।) श्रेणियोंके लोगोंका विषय निर्दिष्ट हुआ है। (अथर्वसंहिता अथर्व वैदियोंने ऋक्, साम, यजुः-इस वेदत्रयोके ४ा२०१४,१८०६२।१।) भिन्न-भिन्न ऋत्विकोंकी असीम निन्दाकर स्वसम्प्रदायि- अथर्व वेदके समय ऋषि हिमालय-पर्वतके निकट योंको हौ अद्वितीय और उपयुक्त ऋत्विक् बता प्रशंसा रहते थे। (अथर्ववेदः१२।१।११, ५४।८।) इस वेदमें विधवा की है। (अथर्व-परिशिष्ट ११२ अध्याय । ) * विवाह और एक पति रहते अन्य पतिग्रहणका उल्लेख | अथर्व शिखा (सं० स्त्री० ) अथर्वण: अथर्व वेदस्य शिखा विद्यमान है। (५।२७-२८1) शिर इव, ६-तत्। अथर्व शिखा नामक अथर्व वेदके अथर्ववेदमें हिन्दुओंके जिस समयको कथा लिखी, अन्तर्गत उपनिषद्-विशेष। यह उपनिषत् ब्रह्मतत्त्व उससे बोध होता है, कि वह इन्द्रियसुखके स्वाद प्रतिपादन करनेके कारण अथर्व वेदका शिखाखरूप ग्रहणमें ही अधिकतर समर्थ थे। इसीके अनुसार बताया गया है। मरणोत्तरका निवास स्वर्गधाम इन्द्रियसुखका प्रास्पद अथर्व शिर (सं० पु०) यज्ञवाली वेदी बनानेकी ईट। बताया गया है। (अथर्ववेद ४।३४।२-४ । ) इसीसे बार-बार अथर्वशिरस् (सं० लो०) अथर्वण: शिरो मस्तक- ऋषियोंने कहा है,- मिव । अथर्ववेदके अन्तर्गत अथर्व शिरः या अथर्व- "स्वर्ग लोकमभि नो नयासि सं जायया सह पुर्व : स्वाम।" शिरस् नामक और ब्रह्मविद्याप्रतिपादक उपनिषद- अथर्व वेद १२।३।१० 'हमें स्वर्गलोक ले चलो, जिसमें हम स्त्रीपुत्रके अथर्व शिरा (सं० स्त्री०) अथर्व वेदको ऋचा-विशेष । साथ एकत्र वास कर सकें।'-एक ओर जैसे | अथर्व हृदय (सं० लो०) परिशिष्ठकी एक उपाधि । स्वर्गलाभके सभी अभिलाषी हैं, वैसे ही दूसरी अथर्वाङ्गिरस् ( स० पु० ) अथर्वाङ्गिरस-वंशका व्यक्ति । ओर इस वेदके ऋषि मृत्युभयसे सशङ्कित देख पड़ते अथर्वाङ्गिरस ( स० पु०) अथर्वा चाङ्गिराश्च,-अच् हैं। इसीसे इस वेदमें काल हो सबसे ऊपर बताया निपातनात् साधुः । १ अथर्वा और अङ्गिरा ऋषि । गया है,- २ अथर्ववेद। अथर्ववेदका यह नाम स्वयं अथर्व वेदमें ही देख पड़ता है। कहते, कि इस नामसे अथर्व- "काली अश्वो वहति सप्तरश्मिः सहस्राचो अजरो भूरिरेताः । वेदके वह प्रधान विषय जान पड़ते, जिनसे औषध तमा रोहन्ति कवयो विपश्चितस्तस्य चका भुवनानि विया ॥१ और मन्त्र प्रकाशित हुए हैं। कालोभूमिमसृजत काल तपति सूर्यः । काले ह विश्वा भूतानि काल चक्षुवि पश्यति ॥ ६ अथर्वाण (स. ली.) अथर्व वेदको विधि-विशेष । काले मन: काले प्राणः काले नाम समाहितम् । कालन सर्वां नन्दन्तयागतेन प्रजा इमाः ॥” ७

  • इन सब विषयोंका यावत् विवरण वेद शब्दमें विस्तृत रूपसे लिखा

१९ काड,६३ सक। जायेगा,-वैदिक समय में हिन्दुओं का कैसा समाज-बन्धन, धर्मनीति, "काल यज समैरयन्देवेभ्योभागमक्षितम् । परलोक में विश्वास, आचार-व्यवहार, मेलमिलाप, परिधेय वस्त्र, अस्त्र-शस्त्र, काल गन्धर्वाप्सरसः काले लोकाः प्रतिष्ठिता। ४ कृषिकर्मा, आमोद-प्रमोद, गृहपालित पशु, बाणिजा और नौका हारा काले यमगिरा दिवोऽधर्वा चाधितिष्ठतः । विदेशगमन-प्रथा था । इसके इलावा ऋक्, यजुः और साम शब्दमें भी इन इम,च लोकं परमं च लोकं पुण्यांच लोकान्विकृतीच पण्याः ॥५ बातोंका कितना हो परिचय मिलेगा। व फिल्ड साहबका अथर्ववेद सर्वी लोकानभिजित्य ब्रह्मणा काल: स ईयते परमो नु देवः॥"६ सम्बन्धीय पुस्तकमें ( Dr. Bloomfield's Atharvaveda) और १९ काण्ड, ५४ सूक्त । वन्वशब्दमैं भी अथर्ववेदका अन्यान्य विवरण देखो। विशेष।