पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/३५

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1 अकालकुसुम-अकालमृत्यु ३३ कुलके नाशका कारण हुई। इसीसे आजकल समाज बंद शास्त्र में अकालमृत्य की बात बहुत अच्छी तरह अथवा अपने परिवारको हानि पहुंचानेवालेको कही गई है,- अकालकुष्माण्ड कहते हैं। "एवं यथोक्त विप्राणां स्वधर्मा मनुतिष्ठताम् । अकालकुसुम (सं० पु० ) असमयका फूल । कथं मृत्यु : प्रभवति वेदशास्त्रविदां प्रभो ॥ अकालज (सं० त्रि०) अकाल-जन-ड। अकाले जायते । स तानुवाच धर्मात्मा महर्षीन् मानवो भृगुः । य यता यैन दोषण मुत्य विप्रान् जिघांसति ॥ अकालजात। असमयोत्पन्न। अपूर्णकालोद्भव। जो अनभ्यासेन वेदानामाचारस्य च वजनात् । अममयमें जन्म ले। *। सप्तम्यां जनेर्डः। पा ३१२१८७। बालस्वादन्नदोषाञ्च मृत्यू विमान् जिघांसति ॥” (मनु० ५।२-४) सप्तम्यन्त उपपदके बाद जन धातुके उत्तर ड प्रत्यय महर्षियोंने मनुके पुत्र भृगुसे पूछा था, महात्मन् ! होता है। स्वधर्मपरायण वेदज्ञ ब्राह्मणोंपर किस कारण मृत्य अकालजलदोदय (सं० पु.) अकाले जलदानां मेघानां अपना प्रभाव फैलाती है ? वह किस कारण वेद- उदयः, ६-तत् । कुहरा। बिना समयका मेघाडम्बर । विहित परमायु पानेसे पहले बिना समयके मृत्य के बिना वर्षाके आकाशमें बादल दिखाई देना। मुहमें जा गिरते हैं ? मनुपुत्र भृगुने इस प्रश्नके उत्तरमें "बालातपमिवाब्जानामकालजलदोदयः।” ( रघ० ४।६१) महर्षियोंसे कहा, जिस दोषसे ब्राह्मणोंको अकाल- 'प्राबव्यतिरिक्त काले जलदोदयः ।' (मल्लिनाथ ) अकालभृत (स० पु०) स्मृतिशास्त्रके अनुसार पन्द्रह मृत्यु हुआ करती है, वह मैं तुमसे कहता हूँ। प्रकारके नौकरोंमेंसे एक। वह मनुष्य जो दास जो ब्राह्मण वेदाभ्यास नहीं करते, जो सदाचार परि- बनानेके लिये दुर्भिक्षमें बचाया गया हो। अकान्तमें त्याग कर असदाचारी बन जाते, जो कर्तव्य कार्यमें मिला हुआ दास। आलस्यपरायण रहते और दूषित अन्न खाते हैं, उन्हीं- अकालमूर्ति ( स० स्त्री० ) नित्य वा अविनाशी पुरुष । को अकालमृत्यु होती है। जिसको स्थापना काल या समयमें न हो सके। मनुके इस वचनमें ब्राह्मण उपलक्षण-मात्र हैं, अकाल मृत्यु स्त्रो०) बेसमयको मृत्य । इसमें ब्राह्मणादि सभीको अकालमृत्यु वाली बात कही असामयिक मृत्य । अनायास मृत्य । थोड़ी अवस्था गई है। ब्राह्मणादि कोई भी क्यों न हो, यदि वह में मरना । पहाड़, मकान आदिसे गिरकर मरना। अपना धर्म छोड़ता, शास्त्रोक्त सदाचार पालन न कर जलम डूबकर मरना। असदाचारी होता और दूषित अन्न खाता है, तो उस शास्त्र में लिखा है-'शतायुः पुरुषः' श्रुतिः। पुरुष सौ को अकालमृत्य हो जाती है। नीचे लिखे हुए वचनसे वर्ष जिया करता है, इसलिये मनुष्यका आयुष्काल सौ यह विषय और भी स्पष्ट हो गया है,- वर्ष बता शास्त्रकारोंने अवधारित किया है। इस सौ "विहितस्याननुष्ठानानिन्टि तस्य च सेवनात् । वर्ष के परिमित समयमें जिसकी मृत्यु होती है,उसीकी अनिग्रहाचे न्द्रियाणां नरः पतनम च्छति ।" (स्म ति) मृत्यु स्वाभाविक मृत्य है। इस समयसे पहले जो इस श्लोकमें अकालमृत्युके तीन कारण निर्दिष्ट मृत्य होती है, वह अकालमृत्यु कहाती है। प्रकृत हुए हैं। विहितका अननुष्ठान, निन्दितका सेवन, और प्रस्ताव देखने से इस युगमें सभोको अकालमृत्यु हुआ इन्द्रियोंका अनिग्रह इन्हीं तीन कारणोंसे मनुष्य बिना- करती है। कालमृत्यु या स्वाभाविक मृत्य बहुत कम समय मृत्युका ग्रास बन जाता है। शास्त्रमें जो कम- देखने में आती है। विहित बताया गया है, उसमें किसी प्रकारको शङ्का वर्तमान समयमें पचास-साठ वर्ष में मृत्यु होनेसे न कर उसका अनुष्ठान करना चाहिये। शास्त्र में दृष्टा- अकालमृत्यु नहीं कही जाती, पचास वर्ष से पहले ही र्थक, अदृष्टार्थक और दृष्टादृष्टार्थक यह तीनों दोष मृत्यु होनेसे अकालमृत्यु कहते हैं। धर्म और आयु निन्दित बता निषिद्ध किये गये हैं। जो विधि (सं० ¿