पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/३५६

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पैदा हुआ। अब कोई ५ जैसेको अधरीभूत-अधर्म ३४६ धिक्कृत, दुतकारा हुआ। २ अधरमें उत्पन्न, नीचे भयो महाभवथैव मताभूतान्तकस्तथा। न तस्य भार्या पुबी वा कथिदस्तान्तको हि सः।” २६१७ लोक । अधरीभूत (स० वि०) १ विजित, शिकस्त । लोग जब अन्नकामनापर एक-दूसरेको भक्षण २ अकर्मण्य-कृत, नाकाम बनाया गया। करने लगे, तब उससे सर्वभूत-विनाशक अधर्मको अधरेण (स' अव्य०) अधरस्मिन् देशे दिशि वा, उत्पत्ति हुई। इनको भार्याका नाम निऋति था। अधर-एन। एनवन्धतरस्थामदूरीऽपञ्चम्याः । पा ५३:३५ । नितिके पुत्र होनेसे हो राक्षस नैऋत कहाते हैं। १ निकटके निम्न देशादिसे, पासवाले नीचे के मुल्कोंसे । इनके तीन पुत्र अतिशय भयङ्कर हैं, जो सर्वदा ही २ सन्निकृष्ट दक्षिणदिसे । पापकर्ममें रत रहते हैं। उनका नाम भय, महाभय अधरद्युः, अधरद्युस् (सं० अव्य०) अधरस्मिन्नहनि । और प्राणिगण-विनाशकारी मृत्यु है। मृत्यु के भार्या १ अधर दिवस, परदिन ; परसों, कलसे पहले के किंवा पुत्र कोई भी नहीं, जिसके कारण वह सर्वान्त- दिन। २ उस दिन, गये दिन । कारी होता है। अधरेय (सं० त्रि.) १ गुणविहीन, जिसमें कोई हमारे शास्त्रकार पुनर्जन्म मानते थे। सिफ़त न हो। २ मूल्यमें न्यून, कमकीमत । पुनर्जन्म मानता और कोई नहीं भी मानता है। अधरोत्तर (सं. क्लो०) अधरश्च उत्तरश्च, समा० मनु प्रभृति ऋषियोंका मत यही है, कि शास्त्र में जैसा इन्द। न्यूनाधिक्य-युक्त पदार्थ, कमोवेश चौज़ । लिखा, उसके अनुरूप आचरण न करने अर्थात् अध- २ निम्नोन्नत स्थान, ऊंची-नीची जगह । (त्रि.) र्माचरण करनेसे मनुष्य जन्मजन्मान्तर अधमयोनि ३ ऊंचा नीचा, निनोच्च । ४ भला-बुरा। पाता है। शास्त्र में यह निर्दिष्ट है, कि कौन-कौन तैसा, सवालका जवाब। ६ नजदीक-दूर। ७ अवेर- अधर्म करनेसे किस-किस योनिमें जन्म होता है,- सवेर। ८ ऊपर-नीचे। अधरोंथा (हिं. वि. ) आधा खाया, चबाया, कुचला "वशूकरखरोष्ट्राणां गोऽजाविमृगपक्षिणाम् । चण्डालपुक्कशानाज ब्रह्महा योनिमृच्छति ॥ ५५ या पागुर किया हुआ। कृमिकौटपतङ्गानां विड्भुजायैव पक्षिणाम् । अधरोष्ठ (सं० पु०) १ नोचेका होंठ, लब । (क्लो०) 'खाणाञ्च व सत्वानां सुरापी ब्राह्मणो ब्रजेत् ॥ ५६ ओष्ठ, होंठ। लू ताहिशरटानाञ्च तिरांचाम्बुचारिणाम् । अधर्म (सं० पु.) ध्रियतेऽनेन, धृङ्मनिन् ; विरो. हिंसाणाञ्च पिशाचाणां तेनो विप्रः सहस्रशः ॥ ५७ धार्थे नञ्-तत्। १ श्रुतिस्म ति-विरुद्ध आचार, शास्त्रके तृणगुल्मलतानाञ्च क्रव्यादा दंष्ट्रिणामपि । प्रतिकूल व्यवहार, काम जो वेदके खिलाफ हो; पाप, करकर्मकृताञ्च व शतशो गुरुतल्पग: ॥ ५८ इज़ाब; पातक, गुनाह ; असद्व्यवहार, बुरा बर- हिंसा भवन्ति नव्यादा: कृमयोऽभक्षाभक्षिणः । ताव ; अकर्तव्य कर्म, न करने काबिल काम ; अन्याय, परस्परादिनसेनाः प्रेतान्यस्त्रीनिषेविणः ॥ ५९ संयोग पतितर्गत्वा परस्यैव च यौषितम् । जुल्म; धर्म-विरुद्ध कार्य, मजहबके खिलाफ काम ; अपहतं च विप्रख भवति ब्रह्मराक्षसः ॥ ६० कुकर्म, बुरा काम ; दुराचार, बुरा चालचलन । मणिमुक्ताप्रबालानि हत्वा लोभन मानवः । भागवतमें कहागया है, कि अधर्म परब्रह्मके पृष्ठ- विविधानि च रबानि जायते हेमकर्टषु । ६१ देशसे उत्पन्न हुए थे। आदिपुराणमें अधर्मके उत्पन्न धान्यं हत्वा भवत्याखुः कावं हंसो जललवः । होनेकी बात इसतरह लिखी है,- मधु दंशः पयः काको रस वा नकुलो वृतम् ॥ ६२ "प्रजानामन्नकामानां अन्योन्ध-परिभक्षणात् । मांसं ग्टनी वां मदगुस्तल तैलपकः खगः । अधर्मस्तव सत्रातः सर्वभूतविनाशकः ॥ चौरीवाकस्तु लवणं वलाका शकुनिर्दधि ॥ ६३ तस्यापि नि तिर्भार्या नैर्ऋता येन राक्षसाः । कौष यं तितिरिहत्वा चौमं हत्वा तु द१रः । धौरास्तस्यास्वयः पुवाः पापकर्मरता: सदा॥ कार्पासतान्तरं क्रौच्ची गोधा गां वागगुदी गुडम् ॥ ६४