पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/३५८

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अधर्म ३५१

स्थान, स्वभाव, गन्ध प्रभृतिके प्रति भो दृष्टि रखकर कहते हैं, कि हिताहित-ज्ञान, धर्माधर्म, भला-बुरा शान्तिको व्यवस्था की गई ; जैसे,—धान्य चुराने सभी शिक्षाका फल है। वास्तविक कुछ जान नहीं वाला चूहा होता है। यहां प्रयोजन यह है, कि पड़ता। बालककालसे जिसे जैसे सिखाओ और चूहा धान्य खाकर प्राणधारण करता है। मांस पढ़ाओगे, वह वैसे ही सौखे और समझगा; उसके चुरानेसे गृध्र होता, तैल चुरानेसे पतङ्ग बनता ओर हृदयमें वैसे ही एक दृढ़ संस्कार होते रहेगा। ऐसा अभक्ष्यको भक्षण करनेसे कृमियोनिमें मनुष्य जन्म लेता संस्कार एक देशके लोगोंको दृष्टिमें तो अच्छा है-इत्यादि स्थल में खाद्यद्रव्यके प्रति दृष्टि रखकर जंचेगा; किन्तु सम्भवतः अन्य देशके लोग उसे देख शान्तिको व्यवस्था बताई गई है। मालूम होता है, कांप जायेंगे। इसीसे यह ठीक नहीं, कि क्या भला कि सिद्धान्न चुरानेसे खावित्, कासेको हरण करनेसे और क्या बुरा है, हंस और कार्पासवस्त्र चुरा लेनेसे बक बनता है-इन "Conscience is a mere matter of education. A Christian living in Europe, who has murdered any body सकल स्थलोंमें चोरी गई हुई चीजके रङ्गसे जन्तुको with cunning and premeditation, usually experiences a देहके वर्णका रङ्ग मिलाकर शान्तिको व्यवस्था लिखी certain kind of remorse. But a Red Indian, who is गई है। यान चुरानेसे ऊंट होता अर्थात् गाड़ी every bit as much a man of flesh and blood, rejoices when is able to surprise and slay a defenceless ene- चुराने के कारण मनुष्यको जन्मान्तरमें बोझ ढोना my. His conscience in no wise suffers from the act, पड़ेगा ; इसीसे उसके पक्षमें उष्ट्र-जन्म विहित हुआ for he has been taught from earliest youth that the more scalps he possesses, the better he will be received in the है। फिर किसी-किसी स्थलमें कुछ भी मर्म समझ happy hunting grounds of the great Manitou'. नहीं पड़ता ; जैसे,-चर्बी चुरानेसे मछली बनना (See Nineteenth century, No. 85. January 1880.) पड़ता है। पूर्वकालमें आग और पानी मनुष्यको 'हिताहित-ज्ञान, सिवा शिक्षावाले फलके और दुर्लभ सामग्रो थौ। कारण, कितने ही कष्टसे अरणि कुछ भी नहीं। किसी युरोपीय खुष्ट-धर्मावलम्बीके घिसने पर आग निकलती थी ; इसौसे आग सुलभ सोच-विचारकर किसीको मार डालनेपर, अनुतापसे ट्रव्य न था। मालूम होता है, कि उस समय इतना उसका हृदय जला करता है। किन्तु अमेरिकाके जलाशय नहीं रहा। इसीसे जल भी अति दुर्लभ गौरवर्ण इण्डियनोंका भी तो शरीर इसौ रक्तमांससे समझा जाता था। यही कारण है, कि आग-पानी बना है, तथापि निराश्रय शत्रु को मार सकनेसे उनके लेनेसे लोग चोर कहाते थे। चोरी करनेसे ही पाप आह्वादका ठिकाना नहीं रहता। ऐसे निष्ठुर कार्यमें होता है। किन्तु आजकल आग-पानी लेना चोरी उन्हें कुछ भी परिताप नहीं होता। परिताप न करनेमें दाखिल नहीं। होनेका कारण यही है, कि शैशवावस्थासे. वह ऐसौ आजकल समग्र सभ्यदेशमें प्रधान रूपसे नीति ही शिक्षा पाते रहे हैं, जो व्यक्ति मनुष्य मार शास्त्रका अनुशीलन किया जाता है। यह बात अधिक मुण्ड इकट्ठे कर सकता, वही मणितौ उप- किसी समझाकर नहीं बताना पड़ती, कि किसे देवताके मृगया क्षेत्रमें अधिक आदर पाता है।' धर्म और किसे अधर्म कहते हैं। कूट तर्क छोड़ रूसके निरस्तिवादी यह बात इस तात्पर्यसे कहते देनेसे सभी लोग अपने मनमें धर्माधर्मको विचार हैं, कि मनुष्य चिरकालसे जैसी शिक्षा पाता, हृदयमें सकते हैं। ज्ञानवान् व्यक्तिका मन ही सगुरु है, वैसी ही एक धारणा जम जाती है। इस पृथिवी- 'जिसे वेद, बाइबिल और कुरान सब कुछ बताते हैं । पर प्रबल व्यक्ति केवल अन्याय और अत्याचार करते किन्तु कूट तर्क चलानेसे बड़े गड़बड़में पड़ना होता हैं, इसीसे लोगोंको दुःखके सिवा कहीं भो सुख नहीं है। ऐसे समय धर्माधर्मका सूक्ष्म जान लेना कठिन देख पड़ता। दुःख पड़नेपर प्रबल लोगोंको ज्वालासे हो जाता है। रूसके निरस्तिवादी ( Nihilists) उसका प्रतीकार नहीं देखाता। इसीसे मनुष्य धर्मा- 1