पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/३८५

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+ ३७८ अध्वर–अध्वर्यु गई है। ऋग्वेदको व्याख्यामें सायणाचार्यने अध्वर मौमांसाख्य शास्त्र विशेष, जैमिनीका बनाया धर्म- शब्दका विघ्नरहित यज्ञ ही अर्थ किया है,- मीमांसा नामक एक ग्रन्थ । "अग्ने यं यज्ञमध्वरं विश्वतः परिभूरसि । स इद्दे वैषु गच्छति ।" अधरथ (सं० पु०) अध्वव रथो यस्य, बहुव्री । (ऋक् १।१४)। १ पथके विषयमें अभिज्ञ दूत, वह एलची जो 'कीदृशं यज्ञ'? अध्वरं हिंसारहितम् । नहि अग्निना सर्वतः पालित समझता-बूझता और राहका हाल जानता हो। यन' राक्षसादयो हिंसितु प्रभवन्ति । + न विद्यतेऽध्वरोऽस्पेति २ मार्गमें गमनोपयुक्त रथ, जो गाड़ी राहमें चलने बहुव्रीही इत्यादि।" क़ाबिल हो। ‘पथगमनोपयुक्त रथ' कहनेका मतलब 'किस प्रकारका यज्ञ ?-अध्वर अर्थात् हिंसा- यह है, कि रथ कई प्रकारका होता है; जैसे, रहित यज्ञ । सब ओर अग्नि द्वारा पालित यज्ञको नष्ट १ लड़कोंके खलनेका रथ, २ देवताओंको ऊपर बैठा करने के लिये राक्षस समर्थ न होते थे।' फिर देखिये,- खींचा जानेवाला रथ, ३ समान लादनका रथ । "राजन्तमध्वराणां गोपामृतस्य दौदिवि। वर्धमान व दी।" ४ राहमें चलने काबिल रथ और ५ गन्नौरथ। यहां (कक् १।०८।) 'अधुरथ' शब्दसे मार्गगमनोपयुक्त रथका हौ ग्रहण है। 'अध्वराणां राक्षसकतहिंसारहितानां यज्ञानां ।' (सायण) अधुरवत् (वै० त्रि.) अध्वरशब्दवाला, जिसमें अध्वर ३ आठ वसुओंमें एक वसुका नाम। ४ वंशका लफ्ज शामिल हो। प्रधान, खान्दानका सरदार (क्लो०) ५ अन्तरिक्ष, अधूरथी (वै• पु० ) अधुरको महिमा यानी अधुरका आसमान। ६ वायु, हवा। (त्रि.)७ कुटिलता- सहायक। शून्य ; सौधा, जो टेढ़ा नहीं। ८ अखण्ड, न टुटा अधुरसमिष्ठयजुस् (वै० क्लो०) यज्ञसे सम्बन्ध रखनेवाले हुआ। ८ बाधारहित, जिसे किसीने काटा न हो। नौ पवित्र जलोंका समूह, नौ तरहके पानीका ढेर १. टिकाऊ, बहुत दिन चलनेवाला। ११ सुस्थ, जो धार बांधकर यज्ञमें देवतापर चढ़ाया जाता है। तनदुरुस्त। १२ व्यस्त, मशगूल, लगा हुआ। अधूरस्थ (वै० वि०) यज्ञमें खड़ा या काम करता हुआ। अध्वरकर्मन् (सं० क्लो) अध्वर एव कर्म। यज्ञरूप अधुरा (सं० स्त्री०) मेदा, अदरक-जैसी एक जड़। कर्म, यज्ञका काम। अधूरेष्ठ (सं० त्रि०) यज्ञमें अधिष्ठित या खड़ा हुआ । अध्वरकल्पा (सं० स्त्री०) एक इच्छानुरूप यज्ञका अधुर्यु, अधुरयु (स पु० ) अधुरं युनतीति, नाम, जिसे काम्येष्टि भी कहते हैं। अधूर-युज्-डु। कव्यध्वरपृतनस्वर्चिलोपः । पा ७४३६ १ यजु- अध्वरकाण्ड (स. क्लो०) शतपथब्राह्मणके उस र्वेद पढ़नेवाला ब्राह्मण । २ याजक, यज्ञ करानेवाला अंशका नाम जिसमें अध्वर-यन्नको बात लिखी है। प्रधान पुरोहित। ३ होता, उगाता और ब्रह्मासे अध्वरक्तत् (सं० पु०) अध्वरयज्ञ करनेवाला पुरुष । भिन्न पुरोहित विशेष। इनका काम भूमि नापना, अध्वरग (सं० वि०) अध्वरके लिये ईप्सित, जो वेदी बनाना, यन्नपात्र प्रस्तुत करना, काष्ठ और जल अधुरके लिये विचारा जाये। लाना, आग जलाना और पशुको वलिदान देना था। अधुरगु, अध्वर देखो। इस काममें लगे हुए इन्हें विना भूल-चूक यजुर्वेदके अधुरदीक्षणीया (सं० स्त्री० ) अधुरसम्बन्धीय दीक्षा, मन्त्र पढ़ना पड़ते थे ; इसौसे यजुर्वेद अधुर्यु या यसको शुभक्रियाविशेष। आध्वयंवके भी नामसे पुकारा गया । हरिवंशमें अधुरप्रायश्चित्ति (वै० स्त्री०) अधुरके प्रायश्चित्तको लिखा है,- रीति "ब्रामणं परमं वक्वादुगातारच सामगम् । अध्वरमीमांसा (सं० स्त्री०) अध्वरस्य यज्ञस्य कर्त होतारमथ चाध्वयु 'बाहुभ्यामसृजत् प्रभुः ।" व्यताज्ञानाय मीमांसा विचारः। जैमिनिप्रोक्त धर्म 'प्रभुने अपने मुख से श्रेष्ठ ब्राह्मणको उत्पन्न किया