पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/३८९

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३८२ अनङ्गक-अनङ्गभीम मदनके नाम-अनङ्ग, अतनु, अदेह, अशरीर इत्यादि ही जगन्नाथजीका मन्दिर बनवाया था। किन्तु यथार्थमें पड़ गये हैं। यह बात नहीं ; क्योंकि 'केन्दु-पटना' से निकले काम प्राणियोंके मनको एक वृत्ति है। यह हुए, अनङ्गभोमके वंशधर दूसरे नरसिंहदेवके तान- किसीको देख नहीं पड़ती ; फिर भी इसका फल शासनमें लिखा है,- सभी पाते हैं; इसलिये पहले कन्दर्पका नाम अनङ्ग "निर्मव्योत्कलराजसिन्धुमपरं गङ्गेश्वरः प्राप्तवा रखा गया था। इसके बाद महादेवके कोपानलसे नेकः कीर्तिसुधाकरं पृथुतम लक्ष्नौं धरण्या समा- भस्म होनेपर मदनका नाम अनङ्ग पड़ा। इस माद्यद्दन्तिसहस्रमश्चनियुतं रत्नान्यसंख्यानि वा घटनामें कवियोंका दूसरा भी चमत्कार कौशल तसिन्धोः किमियं प्रकर्ष मथवा बूमस्तदुन्माथिनः । विद्यमान है। पार्वतीसे शङ्कर मिलेंगे किन्तु वह पादौ यस्य धरान्तरीक्षमखिल नाभिश्च सञ्चा दिश: मिलन दोनोके गाढ़ अनुरागसे पवित्र होगा शिवको श्रोवे नवयुग' रवीन्दुयुगल मूर्खापि च द्यौरसौ॥ शक्ति पार्वती और पार्वतीको परमगति शिव हैं,- प्रासाद पुरुषोत्तमस्य नृपतिः को नाम कत्तु क्षम- स्तस्येत्याद्यनृपैरुपेक्षितमयं चक्रेथ गङ्गेश्वरः ॥" दोनो दोनोका अर्धाङ्ग बने हैं। उस मिलनमें कन्दर्पका (२य नृसिंहदेवका ताम्रशासन २६-२७ थोक ।) कोई प्रभाव नहीं, मदनको पीड़ासे वह परस्पर उपरोक्त श्लोक देखनेसे जाना जाता है, कि 'चोड़- अनुरागी नहीं हुए थे ; इसीसे कविने कौशल दिखा पहले ही मदनको जला डाला। जब दोनोके मनसे गङ्ग'ने उत्कलदेशको जीतकर अपनी कौतिका स्तम्भ- कन्दर्पका भाव निकल गया, तब पवित्र प्रेमभरसे रूप जगन्नाथजीवाला मूल-मन्दिर बनवाया था। नाना स्थानको शिलालिपि और ताम्रशासनसे दोनो एक दूसरेपर रोझ गये। (त्रि०) नञ्-बहुव्री० । ५ अङ्गशून्य, अजोसे खाली। पता लगता है, कि भुवनेश्वरका वर्तमान अपूर्व मन्दिर और जगन्नाथजीका सुन्दर 'नाटमन्दिर' दोनो अनङ्ग- अनङ्गक (स० क्लो०) मस्तिष्क, दिमाग ; मन, दिल । अनङ्गक्रीड़ा (स. स्त्री०) अनङ्गेन क्रीड़ा। १ काम- भीमदेवकी कौति हैं। दूसरे नृसिंहदेवके ताम्र- हेतुक क्रीड़ा, ऐशो-अशरतका खेल । २ सोलह अक्षर शासनके अनुसार 'अनङ्गभौम ने केवल दश वर्ष राज्य का छन्दोविशेष। “अष्टावद्ध गा प्रभ्यस्ता यस्याः सानङ्गक्रीडोक्ता।" किया था। (वृत्तरत्नाकर ) जिस छन्दके अमें द्विगुणित आठ यानी २ उक्त अनङ्गभीम राजाके पौत्र और दूसरे राज- सोलह गुरु अक्षर रहते, उसे अनङ्गक्रीड़ा वृत्त कहते राजाके पुत्र। यह भी एक महावीर दिग्विजयी हैं। छन्दोमञ्जरी प्रभृति छन्दोग्रन्थमें इसका नाम राजा थे। इन्होंके आदेशानुसार इनके मन्त्री विष्णु- विद्युन्माला लिखा है। विद्युन्माला देखी। सान्त्रा तथा प्रियपुत्र नरसिंहने तुगरल तुगानखांको अनङ्गना (हिं. क्रि०) देहका ध्यान भुला देना, जीतनेके लिए राढ़ और वरेन्द्र पर्यन्त सेनाको बदनको फ़िक्र न रखना, प्रेममें मतवाला बन जाना। भेजा था। उक्त विवरण दूसरे अनङ्गभीमकी चाटे- अनङ्गभौम (सं० पु० ) १ उड़ीसाके एक राजा। सन खरशिलालिपिमें और केन्दु-पटनाके ताम्रशासनमें लिखा है,- ११८२ ई० में इन्होंने राज्य लाभ किया था। इनका दूसरा नाम अनियङ्कभीमदेव' रहा। यह "विभ्याटेरधिसौमभौमतटिनीकुञ्ज तटऽम्भोनिधे- उत्कल देशको जीतनेवाले गङ्गेश्वर चोड़गङ्गके कनिष्ठ विािरसावसाविति भयातन्दिशः पश्यतः । पुत्र थे ; इनकी माताका नाम चन्द्रलेखा था। साम्राज्य सपरिश्रमेण न तथा वैखानसानामिदं विश्वं विषणुमयं यथा परिणतं तुवाण-पृथ्वीपतेः ॥ इतिहासमें इनका परिचय 'प्रथम अनङ्गभौम कण्ठोत्तसितमायकस्य सुभटानकाकिनी निघ्नतः नामसे दिया गया है। किं बूमी यवनावनीन्दुसमरे तत्तस्य वीरव्रतम् ॥" पुरीके पण्डों और मादलापञ्जियोंके मतसे इन्होंने (श्य पनङ्गभौमको चाटश्चर-लिपि १३-१४ शोक।)