पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/३९

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अकीर्ति-अकीलिस 1 पत्थरकी बनी हुई अनेक चोज़ क्रय करके ले जाते थे। अकौलिस ( Achilles )-प्राचीन मिश्रके एक प्रसिद्ध हिन्दू लोग इस पत्थरको ऐसी-ऐसी उत्कृष्ट चीजें योडा और महाकवि होमरके बनाये इलियद नामक बनाते थे, कि केवल उनके कौशलके कारण एक-एक महाकाव्यके अन्यतम प्रधान नायक । चीज़ लाख-लाख रुपयेमें बिकती थी। रोमके प्रसिद्ध कहते हैं, कि वह फ़थिया देशकै राजा पैलेउसके राजा नरोने इसौ पत्थरको बनी हुई एक सामान्य पुत्र थे और उनकी माताका नाम थेटिस था। कटोरी ६६१५००) रुपयेको क्रय की थी। आजकल भी थेटिस एक जलदेवी थीं। यूनानको कहानियों में यह अकीकको बहुतसी चीजें प्रति वर्ष चौन, अरब, काबुल कहा जाता है, कि अकौलिसके दादा इयैकस देवता और युरोप, भेजी जाती है। एक दर्जन बोतामका जेउसके लड़के थे। अकौलिसके लड़कपनके सम्बन्धमें मोल ६) रुपया, एक काग़ज़ काटनेको कुरीका दाम होमरने जो लिखा है, उसके साथ पीछेके जीवनी- १) रुपया होता है। लेखकोंका सामञ्जस्य नहीं देख पड़ता। होमरने लिखा अकीर्ति (सं० स्त्री०) न-कृ-क्तिन्। अयश, अपयश, है, वह लड़कपनमें अपनी माताके पास फथिएमें रह बदनामी। कृत चुरादिगणीय, संशब्दने । इस पाले-पोषे गये थे। उस समय वह काइरनके पास धातुको उपधामें दीर्घ ऋकार होगा, ह्रस्व नहीं। युद्धविद्या, बोलचाल, गानाबजाना और दवा करना १७५० शकमें कलकत्ताको एडुकेशन-कमिटी-कट क सोखे थे। ट्रयके विरुद्ध लड़ाईका डङ्का बजनेपर वह जो भट्टिकाव्य छपा था, उसमें जयमङ्गल और भरत- अपने नौकर-चाकरों के साथ पचास जहाज ले युद्ध मल्लिकको टोकामें भी इखोपध कृत धातु देखी जाती करनेको रवाना हुए। अकोलिसके बाल्य-जीवन-सम्बन्धपर कितनीही अपप्रघद गुणान् चातुरचिकीर्तञ्च विक्रमम् । (भट्ठि १५।७२) कृत संशब्द अनोखौ-अनोखी कहानियां कही जाती हैं। अको- (इति में मं और ज मं टीका) लिसको माता अमर करनेके उद्देश्यसे शिशु अकौलिस- किन्तु पाणिनि, भट्टोजिदीक्षित, वामनजयादित्य, के सब अङ्गोंमें रोज अमृत लगा रातको उन्हें जलती क्रमदोश्वर, दुर्गसिंह और दुर्गादास प्रभृति सुधौगणने आगकै कुण्डमें डाल देती थीं। एक बार उनके पिताने कृत धातु दीर्घोपध हो ग्रहण की है। श्रीयुक्त राधा- यह लोमहर्षण घटना देख अग्निकुण्डस शिशुको नि- नाथशीलके प्रकाशित मुग्धबोधमें दोर्घ ऋकार है। सि- काल लिया। इससे थेटिस बहुत नाराज हो समुद्रमें द्धान्तकौमुदीमें पाणिनिका सूत्र उद्धृत करके इस प्रकार कूद पड़ीं। दूसरी कहानी इसतरह बताई जाती है, लिखा गया है—कृत संशब्दने ।। उपधायाश्च । पा७।१। कि उनको माता उन्हें टोक्स नदीके जल में डुबाती थीं। १०१ । धातोरुपधाभूतस्य ऋत इत्स्यात्। रपरत्वम् । ऐसा करनेसे अकौलिसका सर्वाङ्ग लोह जैसा कड़ा हो उपधायाञ्चेति दीर्घः। धातुका उपधाभूत दीर्घ ऋकार गया, किन्तु उनको एड़ी जैसीको तेसोही बनी रही इत् होता है। उसका र् और उपधामें दीर्घ ईकार कारण, थेटिस उसीको पकड़ उन्हें डबकी देती थीं। होता है। यथा--कृत लट् कोर्त यति । लुङ अची इसके बाद बालक शिक्षा पानेके लिये काइरनको कौत त्, अचीकृतत्। किन्तु कोई प्रत्ययादि प्रयोग सौंपे गये ; काइरन उन्हें बलवान् और क्षमताशालो करनेसे दीर्घोपध धातु भी स्थानिवत् ह्रस्व हो सकती बनानेके लिये सिंहकी अांत, भालू की चर्बी, और है। “तपरकरणं दौघे पिस्थानिनि इख एव यथा स्यात्" जङ्गली सूअरका मांस खिलाते थे। इति काशिका । यथा, अचीकृतत् । अतएव प्रत्ययादिका ट्रयको युद्धयात्रा रोकनेके लिये थेटिसने अको- प्रयोग न होनेसे उपदिष्टमूल धातु प्रकृतावस्थामें ग्रहण लिसको बालिकाको वेशभूषासे सजा राजा लाइको- करना चाहिये। मरिसको सभावाली कुमारियोंके बीच छिपा रखा था। अकीर्तिकर (संत्रि०) अयशस्कर। बदनाम करनेवाला। ओडीसिअसने खोञ्चेवालेका रूप बना और इस राज- १०