पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/४१

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अकुलाना-अकृतघ्न ३३ आसानो। 'अकुलाना (हि क्रि०) घबड़ाना । शीघ्रता करना ।ऊबना। कच्छप, कछुआ । न कुत्सितः अल्पः पारः, न-कु-पृ-अण। अतिशय देखि धर्मको हानी। परम सभीत धरा अकुलानी ॥ (तुलसी) (कू दीर्घ) जिसका पार अल्प नहीं। महापारावार । इन दुखिया अखियानको मुख सिर जोई नाहि । समुद्र। पर्वत। सूर्य । पत्थर या चट्टान ।। देखत बने न देखते बिन देखे अकुलाहि ॥ (बिहारी) वह कच्छप जिसके पीठपर शेष और शेषके फणपर अकुलि (सं० पु०) असुरोंके एक पुरोहितका नाम । पृथ्वी मानी जाती है। यथा- शतपथब्राह्मणमें अकुलि-सम्बन्धी एक गल्प है। नीचे बहे बार तापै बैठो बड़ अपार वाहिौकी पीठपर सवार शेष मनुका एक बैल था,जिसका गजन सुनते ही असुर कारा है।-(ग्वाल) और राक्षस प्राण त्याग करते थे। दैत्यगुरु किलात अकूच (सं० वि०) न-कुर-चट निपातनात् दीर्घः । एवम् अकुलिने देखा कि, अब और किसीतरह निस्तार नास्तिः कूर्चः कैतवो यस्य । अकैतव। ऋजु । श्मश्रु- नहीं है। इस बैलको शीघ्र ही वध करना चाहिये। शून्य । मकना। जिसके मूछे न हों। (पु०) बुद्ध । यह बात निश्चय कर वह मनुसे बोले-आपको पूजाके अकूलपाथार (हिं० पुं०) पाथस् जल, महासागर । लिये हम कुछ बलि देना चाहते हैं। मनु सम्मत पारावार। समुद्रा हो गये । असुरोंने उसी वृषभको लाकर बलि दिया। अकूहल (हि० वि०) बहुत। अधिक । असंख्य। वृषभ तो मर गया ; परन्तु असुरवंशके विनाशका ( केवल छन्दमें प्रयुक्त होता है)। यथा- कालगजन न मिटा ; वह मनुपत्नी मनायीको खेलत हसत करें कौतूहल । जुरे लोग जहं तहां अकूहन्न । (मूर) देहमें प्रविष्ट हो गया। मनायोके बात करते ही असुर | अकृच्छ (सं० पु०) लशका अभाव । लोग मरने लगे। दूसरी बार किलात और अकुलिने सुगमता। असङ्कोच । (त्रि.) ले शशून्य । जिसे किसी मनायीको बलि देना चाहा। मनुने यह बात भी मान प्रकारका क्लेश, सङ्कोच या कष्ट न हो। दुष्करका लो। किन्तु वह गर्जन गया नहीं, इस बार वह उलटा। आसान । सुगम । यज्ञ और यज्ञपात्र में प्रवेश कर गया। (शतपथ- अकृत (सं० लो०) न-कृत-भावे । १ बिना किया ब्राह्मण १।४।१४।) हुआ। असम्यादित। २ अन्यथा किया हुआ । बिगाड़ा अकुलिनी (हि. वि० ) (सं० अकुलीना) जो कुलवती हुआ। अंड-बंड किया हुआ। ३ प्रशस्तकाले न हो। कुलटा। व्यभिचारिणी। यत् कृतं, अकार्य। ४ न कुत्, नं-तत् । असम्पन्न । अकुलीन (सं त्रि०) नीच कुलका, कमौना, क्षुद्र। अकृतापराध-जो अपराध न किया गया हो। ५ जो तुच्छ वंशमें उत्पन्न । बुरे कुलका। अभद्र। किसी का बनाया न हो। नित्य । स्वयंभू । प्राकृतिक । अकुशल (सं० पु०) अमङ्गल । अशुभ । बुराई । अहित । निकम्मा। बेकार। मन्द। स्वभाव । प्रकृति । (त्रि०) जो चतुर या दक्ष न हो । अनिपुण । अनाड़ी। नाही मोर और कोउ, बलि, चरनकमल विनु ठाउं । अधकच्चड़। हौ अमीच अक्वत अपराधी, सन्म ख होत लजाउं ॥ (सूर) अकुशलधर्म (सं० पु०) बौद्ध धर्मानुसार प्राणियोंका अकृतकाल (सं० त्रि०) जिसके लिये कोई काल नियत पाप करनेका स्वभाव। धर्म न जाननेवाला। न हो। जिसके सम्बन्धमें कोई समय न निर्दिष्ट किया अकूत (हिं० वि०) जो कूता न जा सके। जिसको गया हो। गिनती तौल या नाप वा परिमाण न बतलाया जा अकृतघ्न (सं० त्रि०) न-कृत-हन-क । कृतज्ञ । उपकार सके । बेअन्दाज़ । अपरिमित । अगणित । माननेवाला। (स्त्री० ) अकृतघ्नता। औधपुर विलासौ श्री योगिन मन बासौके हेतु जिन कौन्ही परिचरिया प्रलम्बघ्न, शत्रुघन, कृतघ्न इत्यादि शब्द क प्रत्यय अकूतको। (कवीन्द्र) द्वारा सिद्ध होते हैं। किन्तु जायाघ्न, पतिघ्नी, पित्तन, अकूपार (सं० पु०) न-कूप-ऋ-अण् । न कूपं ऋच्छति। वातघ्न इत्यादि शब्द क प्रत्यय द्वारा सिद्ध नहीं होते। यह