पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/४१६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अनलविवर्धनौ-अनलशिला 1 ७४८ ई में वंशराजने इस नगरको संस्थापन किया थोड़ी रहनेपर सूर्यके किरणमें आग प्रकाशित नहीं था। वंशराजके पिताका नाम यशोराज था; यह पड़ती। किन्तु जब अधिक अग्निवृष्टि होती, तब सौराष्ट्रके राजा रहै। इनकी माता सुन्दररूपा नभोमण्डल इतना चमक उठता है, कि प्रखर कहाती थौं। कहते हैं, कि सौराष्ट्र नृपति अतिशय सूर्यकिरणोंसे उसका तेज मारा नहीं जा सकता। दुत्त रहे। समुद्रमें बाणिज्य-पोतोंको यातायात प्राचीन संस्कृत पुस्तकोंमें अग्निवृष्टिका उल्लेख मचाते देख वह सब नौका लूट लेते थे। इसी कारण मिलता है। यह अतिशय अमङ्गलका लक्षण है समुद्र उछलकर देववन्दर नामक उनको राजधानी पूर्वकालमें अन्यान्य देशोंके लोग भी अग्निवृष्टिको खा गया। उसी जलप्लावनमें नगरके सब लोगोंने सही समझते थे। किन्तु यह अद्भुत काण्ड सर्वत्र अपने-अपने प्राण त्याग किये। उस समय यशोराजको नहीं घटता, और न सब समय ही दृष्टिगत होता है। पत्नी सुन्दररूपा पूर्णगर्भा थीं। उन्होंने अति कष्टसे इसीलिए कितने ही दिनों लोग इसपर अविश्वास निकटवर्ती किसी अरण्यके मध्य में पलायन किया। करते रहे। किन्तु अब कितनों होके चाक्षुष प्रमाणसे उसी जगह वंशराजका जन्म हुवा था। शैलग सुराचार्य निश्चित हो गया, कि वास्तविक ही आकाशसे अग्नि- नामक किसी जैनने शैशवावस्थामें उनकी रक्षा की शिला बरसा करती है। लिवोका कहना है, कि थी, इसीलिये उन्होंने जैनधर्मको अवलम्बन कर लिया सन् ६५४ ई०से पहले रोमनगरके निकटवर्ती अल- था। उसके पीछे कुछ वयस्प्राप्त हो वंशराजने अनल बन पर्वतमें अनलशिला गिरी थी। फिर सन् ४६७ बाड़ नगरको स्थापन किया। जान पड़ता है, कि ई०से भी पहले इगस्पोटेमोमें एक बृहदाकार प्रस्तर कुमारपालचरितमें इसी नगरका नाम उल्लिखित है। आकाशसे पड़ा था। प्लूटार्क और प्लिनी इसके विषयमें १०६४ शकाब्दमें महमूदने वल्लभसेनको यहांका राजा लिख गये हैं। पारियान-कनिकलमें भी इस प्रस्तरको बनाया था। पाटन देखो। बात उल्लिखित है। सन् १४८२ ई०में आल्सैसके अनलविवर्धनी (स. स्त्री०) कर्कटिका, ककड़ी। अन्तर्गत एन्मिरहम ग्रामपर एक बृहत् प्रस्तर अनलशिला (सं० स्त्री०) अग्निप्रस्तर, आगका आकाशसे पड़ा था, जो वज़नमें कोई तीन मन और पत्थर (Aerolites, Fireballs, Shooting दश सेर निकला। सन १६०३ ई०को २६ वीं अप्रेल- stars ) आकाशसे कभी-कभी जो अग्निमय प्रस्तर को मर्मन्दौके अन्तर्गत ला-आग्नीमें जो भयङ्कर अग्नि- खण्ड गिरता, उसोको अनलशिला कहते हैं। यह मय शिलावृष्टि हुई, उसे कितनों होने देख पाया था। अग्निदृष्टि उल्कापातसे विभिन्न है। दिनको ऐसी फ्रान्सीसी गवर्नमेण्टने विख्यात तत्त्ववित्पण्डित अग्निवृष्टि पड़नेसे पहले आकाशका एकस्थान निविड़ मोसिवो विवोस्को ( M. Biot ) इस विषयका तथ्य काले मेघसे आच्छन्न हो जाता है। उसके पीछे भयङ्कर जांचनेके निमित्त रवाना किया । उन्होंने ला- वज्रपात-जैसा शब्द फूट पड़ता है। रातको इसी अग्नीमें पहुंचकर पुजानुपुङ्ख रूपसे सकल विषयका प्रकार उत्पात उठनेसे स्पष्ट प्रकाश देखने में आता है। अनुसन्धान किया। पीछे उनका मत प्रकाशित शून्यमें प्रज्वलित गोले-जैसे पत्थर पड़ा करते हैं। पीछे हुआ, फिर आगसे भरे पत्थरको वृष्टिपर किसीको वही पत्थर फटते हैं, जिनसे भयङ्कर शब्द निकलता कोई सन्देह न रहा। लग-भग साढ़े तीन कोसके है। दिनके समय अनलशिला बरसनेसे पहले स्थानमें दो हज़ारसे न्यून पत्थर न पड़े थे। उनमें आकाशमें जो काला मेघ आता है, वास्तविक रूपसे बड़े-बड़े पत्थरोंका वजन साढ़े तीन सेरसे कम न रहा। वह मेघ नहीं होता। अग्निशिलास जो धुवां निकला नक्षत्रपातकी तरह आकाशसे दूसरी भी एक करता, वही मेघ-जैसा देख पड़ता है। रात्रिकाल अग्निवृष्टि होती है। इसकी समस्त अग्निशिला हो जानसे इस आगको रोशनी भभकने लगती है। प्रायः अत्यन्त क्षुद्र रहती हैं। हम्बोल्टने लिखा, कि 103