पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/४२३

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अनशन -अनष्टवेदस् सकते, कि सिद्ध पुरुष कितने दिन अनाहार रहनेसे कोई दोष नहीं पाते। देखिये, कुक्कुरादि सकल मरता है। नीच जन्तु कुछ शारीरिक असुख होनेपर चुपकेसे एक स्वास्थाको रक्षा रखनेके लिये मासमें दो-एक दिन जगह सो जाते हैं, कुछ खाते-पीते नहीं। पौड़ाको अनशन रहना नितान्त आवश्यक है। इससे उदरका अवस्थामें जिह्वा मलिन, मुख विरस, शुष्क और क्षुधा- समस्त अजीर्ण द्रव्य और सञ्चित दुष्ट रस पकता और मान्य हो जाता है। यह सकल बाहरका लक्षण शरीर शुष्क, लघु और प्रसन्न रहता है। शरीरके देख समझ पड़ता, कि भीतरौ पाकयन्त्रका कार्य भी समस्त इन्द्रियको अधिक या अल्प कालके लिये, खू ब नहीं चलता। सुतरां पौड़ितावस्थामें अधिक विश्राम मिलता है। रात्रिको सोते समय हस्त पद पथ्य की व्यवस्था करना युक्तिसङ्गत नहीं बताते। सुस्थिर रहते हैं। श्वास-प्रश्वास भी ठहर जाता किन्तु डाकर ग्रेवस इस मतके विरोधी रहे। यह क्षणकाल हृदयका स्पन्दन रुक जानेसे हम मर सर्वदा देख पड़ता है, कि इस देशमें तरुण ज्वरपर सकते हैं। किन्तु उसका भी कुछ-कुछ विश्राम होता रोगी केवल सिद्ध जल और बताशा खाकर चालीस है। यह सकल विषय विवेचना कर देखनसे पाक दिन उपवास कर जाते हैं। यन्त्रको कुछ-कुछ विश्वाम देना आवश्यक है। इसीलिये अनशनता (सं० स्त्री०) उपवास, फाका ; न खानेको हमारे देशमें एकादशीको उपवास करना प्रचलित हालत। है। हम देखते हैं, कि स्त्री विधवा होनेसे एका अनशनाय (वै० त्रि.) क्षुधारहित, आसूदा; जो दशौका उपवास करतौ और एकाहार चलाती है। भूखा न हो। उस समय उसका शरीर पूर्वांपेक्षा अधिक हृष्टपुष्ट | अनशित (स. क्लो०) अनशनता देखो। और कान्तियुक्त हो जाता है। अनश्नत् (सं० त्रि०) १ न खाता हुआ । २ सुख न दुर्भिक्ष या आहाराभावसे अनशनमें किसीके भोगता हुआ, जो आराम न पा रहा हो। अवसन्न हो जानेपर, उसे उष्ण घरमें मुलायम बिछोने- अनश्नत्सङ्गमन (वै० पु०) सभावाले यज्ञका अग्नि, पर लिटाये। दीर्घकाल अनशन रहनेपर रक्तसञ्चालन जिसके पास उपवास तोड़ने से पहले पहुंचते हैं। बन्ध और खासरोधसे लोग मर जाते हैं। अतएव अनश्नान (सं०नि०) अनन्नत् देखो। प्रथम शीतल द्रव्य कभी न खिलाये। इसीतरह | अनश्रु ( स० त्रि०) अशुशून्य, बिला-अश्क ; जिसके शरीरमें शीतल वात भी न लगने पाये। उसके एक आंसू न आते हों। बारगी ही आक्षेप द्वारा हठात् मृत्यु हो सकती है। अनव (संत्रि.) १ अश्वविहीन, बिला-अस्प: प्रथम जलके साथ अल्प-अल्प ब्राण्डी, मांसका शोरबा घोड़ा न रखनेवाला। (पु.)२ अवभिन्न अन्य वस्तु, और दुग्ध पिलाना चाहिये। अत्यन्त उत्कट स्थलमें घोड़ेको छोड़ दूसरी चीज़ ; जो कुछ घोड़ा न हो। काल्पनिक श्वास-प्रश्वास चलाये और वक्षःस्थलमें अनश्वर (सं० त्रि०) न नखरम्, नञ्तत् । नखर ताड़ित वेग पहुंचाये। हमारे हिन्दुओंके घरमें वृद्धा भिन्न, स्थायी ; लाजवाल, मुकद्दम ; अमिट, बना स्त्रियां एकादशी प्रभृतिको अनशन रह पारणके दिन रहनेवाला; जिसका कभी नाश न हो। , प्रथम शर्बत वगैरह शीतल ट्रव्यका व्यवहार करतो अनष्ट (सं० त्रि०) अखण्डित, अभङ्ग ; बेटुकड़ा, न हैं। किन्तु वह नितान्त अनिष्टकर है। उपवासके बाद टूटा हुआ ; जो बरबाद न किया गया हो। प्रथम शीतल द्रव्य खानेसे हठात् मृत्यु हो सकती है। अनष्टपशु (वै० त्रि.) अखण्डित पशु रखता हुआ, ज्वर प्रभृति तरुण रोगोंमें हमारे देशके वैद्य रोगी जिसके जानवर बिगड़े-बिगड़ाये न हों। को अनशन रखते हैं। जर्मनीके डाकर भी रोग रहते अनष्टवेदस् (वै० वि०) अभङ्ग सम्पत्तिसे सम्पन्न, जिस- अधिक पथ्यको व्यवस्था नहीं करते। हम इस प्रथामें की जायदाद बिगड़ी न हो। 1