पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/४३१

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४२४ अनायत्तहत्ति-अनार अनायत्तहत्ति (संत्रिक) स्वतन्त्र जीविका रखते संश्रयात्, भूतविष-वायुग्न्य पघातात, आहारप्रतीकारवजनात् अन्तरा: व्यापद्यते। हुवा, जिसका रोज़गार आजाद रहे। स मृत्यु रकाले।" (चरकसंहिता) अनायत्तवृत्तिता (सं०,स्त्री०) स्वतन्त्रता, आज़ादी ; 'अग्निवेश! सुनिये। जैसे गाड़ी स्वभावतः मातहत न रहनेको हालत । अच्छो होने और नियमित रूपसे चलनेपर अल्प-अल्प अनायन (स लो०) न आयनं चालनमत्र । एकान्त, बिगड़कर क्रमसे अनेक दिन बाद टूटती, परमायुका निराली जगह। भी ठीक वैसा ही हाल है। सुस्थ और बलवान् व्यक्तिके अनायसाग्र (स० वि०) लोहेकी नोक न रखते शरीरको यथानियम चलानेसे क्रम-क्रम उसके क्षयमें हुवा, जिसमें लोहेकी नोक न हो। कितने ही दिन लग जाते हैं। यही कालमृत्यु कह- अनायास (स० पु०) आ-यस्-पत्र-आयासः ; न लाती है। दूसरे गाड़ी अधिक बोझ भरने, ऊंचे-नीचे आयासः, अभावार्थे नञ्-तत् । १ अल्लेश, कष्ट या पथमें चलाने, पहिया टूटने, वाह्यवाहकका दोष प्रयत्नका अभाव ; आराम, तकलीफका न पहुंचना। होने, पहियेका कोला उखड़ने, धुरीमें तेल न देने या (त्रि.) नास्ति आयासः प्रयत्न यत्र । २ल शशून्य, अधिक पथ चलनेपर नियमित कालसे पहले ही जैसे बेतकलीफ। (अव्य०) ३ सरलतापूर्वक, आसानीसे । बिगड़ जातो, परमायुको भी वैसी ही बात है। बलके अनायासकृत ( स क्लो) अनायासेन क्लेशं विनैव अतिरिक्त काम करने, अयथा आग तापने, अति कृतम्, नञ्-तत्। १ कषायविशेष, जोशान्दा । (त्रि.) भोजन पाने, अधिक मैथुन मचाने, मलमूत्रादिका २ सरलतापूर्वक किया गया, जिसके करनेमें मुश्किल वेग रोकने, कष्टसाध्य व्यायामादि बढ़ाने, शरीरमें न पड़ी हो। आघात लगने, असत् संश्रय साधने, भूत और विषम अनायुध (सं० त्रि०). आयुधरहित, बैहथियार; वायु एवं अग्निका उपघात उठने और आहारका जो हथियार न रखता हो। प्रतीकार पठानेपर नियमित कालसे पहले ही मृत्य अनायुषा ( स० स्त्री.) बल और वृत्रासुरको आ जाती है। इसे अकाल मृत्यु कहते हैं।' माताका नाम। अनार (फा० पु.) दाडिम । ( Punica granatum) अनायुष्य (सं० क्लो०) आयुषे हितं आयुष-यत् ; इसके संस्कृतमें निम्नलिखित पर्याय हैं,-करकः, न आयुष्यम्, नञ्-तत्। आयुष्यके पक्षमें अहितकर पिण्डपुष्य, दाडिम्ब, पर्वरुट, खाइम्ल, पिण्डोर, शूक- वस्तु, अकालमृत्यु लानेवाला द्रव्य ; जो चीज़ उम्रको वल्लभ इत्यादि। इसको बंगलामें-डालिम्, मराठीमें नुकसान पहुंचाये या बैवक्त, मौतको लाये। ... -दाडिम, कनाडीमें-दाडिम्ब, तेलंगीमें-डानिम्मचे?. .... अतिभोजन, अतिमैथुन प्रभृति अनायुष्य होते हैं, उत्कलमें-दालिम्ब, तामिलमें-मादल इचेहेडिड और क्योंकि इनसे स्वास्थय बिगड़ता और आयु कम पड़ती मुजराती भाषामें डालम कहते हैं। यह एक छोटा है। भगवान् आनेयने आयुःक्षय और अकालमृत्युके वृक्ष है, जो ईरान, कुर्दस्तान, अफगानिस्तान सम्बन्धमें कहा है, और बलचिस्तानकी पथरीली जमौनमें जङ्गली श्रूयतामनिवेश ! यथा यानसमायुक्तोऽक्ष: प्रकृत्य वाक्षगुणैः समेतः तौरसे पैदा होता और भारतवर्षमें सब जगह स्यात् । स च सर्वगुणोपपन्नों वाह्यमानो यथाकाल', स्वप्रमाण-क्षयादव लगाया जाता है। इसकी उंचाई कोई पांच छः अवसानं गच्छत्। तथायुःशरीरापगतं बलवत: प्रकृत्या यथावदुपचीयमान' गज रहती और टहनीमें बारीक कांटा होता है। खप्रमाणक्षयादैव अवसानं गच्छतौति, स मृत्य : काले। तथा च स पुष्प रक्त लगता और फलके ऊपर कड़ा बकला रहता एवाचोऽतिभाराधिष्ठितत्वात् विषमपथादपथाच्च, अक्षचक्रभङ्गात, वाद्य- वाहकदोषात्, आशिमोचात्, अनुपाङ्गात्, पर्यासनाच्च अन्तराव्यसनमापद्यते। है। फलसे रसीले लाल या सफेद दाने निकलते, जो 'तथायुः अयथावलमारम्भात्, "अयाग्न्यवहारात्, 'विषमाभ्यवहारात्, पति खानेमें मौठे वा खटमिट्टे मालूम पड़ते हैं। ग्रीन- मैथु नात्, उदौर्णवेमविधारणात्, क्यिमशगैरन्यासात अतिधीवात्। असत्- ऋतुमें लोग अनारका शर्बत बनाते; जो पौनेमें अत्यन्तः