पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/५०३

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अव्ययो। ४८६ अनुवेद्यन्त-अनुव्याख्यान अनुवेद्यन्त (स० अव्य०) यज्ञस्थलके किनारे, होम वह अनुवैणेय कहा सकता है। अथवा पूर्वमें जो होनेको जमहके आगे। स्थान वेणु अर्थात् बांससे वेष्टित रहा, उसे लोग अनु- अनुवेध (सं० पु.) १ छेदाई, छेद डालनेका काम। वैणय कहते थे। हमारी समझमें बांसबरलोको लोग २ प्रतिबन्धक, रोक । ३ मुकाव, मुक पड़नेकी बात। अनुवैणेय नाममे पुकारते रहे। अनुवेल (सं० अव्य.) वेला वेलां अनु इति वीप्सार्थ अनुवैणेयके समीपवाले दूसरे कुछ स्थान पहचान अव्ययो । १ प्रतिक्षण, सर्वदा, हरघड़ी, हमेशा। सकनेसे यह प्रदेश भी सहजमें मालूम पड़ जायेगा। वेला समुद्रतीरं तदनुसमीपे सामीप्यार्थे वीप्मार्थं वा अनोमा नदी पार उतर सिद्धार्थने छन्दक नामक अपने २ समुद्रतौरके निकट, जहां समुद्रका अनुचरसे कपिलनगर वापस जानेको कहा था। इसी किनारा पास हो, समुद्रके तौर तीर, बहरके किनारे कारण, वहां 'छन्दक-निवर्तन' नामक स्तूप खड़ा किनारे, उपकूलको बगल । हुवा। मालूम पड़ता, कि अनोमा नदौके पूर्वपार, अनुवेल्लित (सं० लो०) अनु-वेल-क्त ; वेलितं वक्र गोरखपुरसे पांच कोस दक्षिण 'छन्दकनिवर्तन' स्थान गोलाकारः इति यावत् तदनुगतम्, अतिक्रा०-तत् । रहा था, वही आजकल 'चन्दवलो' ग्राम बन गया। १ वैद्यसम्मत व्रणका लेपन-विशेष, फोड़ेका मरहम । सिद्धार्थने छन्दकको रुखसत दे हाथको तलवारसे २ व्रणबन्धनभेद, मरहमपट्टी। (अव्य०) वेलितं कुटिलं चूड़ा काट डाला था। चूड़ेको काट वह बाल ऊपरको तदनु समोपे, सामीप्यार्थे अव्ययी। २ कुटिलके ओर फेंकने लगे। देवताने चूड़ाके वही बाल निकट, टेढ़े के पास। (त्रि.) ३ झुकते हुवा, जो संग्रह कर कोई पीठ बनवाया, जिसका नाम पड़ा मुक पड़ा हो। 'चूड़ापति ग्रह'। आजकल चूड़ापति ग्रहको लोग अनुवेश (सं० पु०) अनुविश्यते प्रविश्यते, अनु-विश् 'चूड़ेय' कहते हैं। यह चन्दवलीसे डेढ़ कोस उत्तर भावे घञ्। १ ज्ये ठके अतिक्रमपर कनिष्ठका विवाह, बसा है। जो शादी बड़ेके बैठे रहते छोटे को हो। २ पश्चात् चड़ा काटने बाद सिद्धार्थने अपने वस्त्र उतार प्रवेश, पौछेका दाखिला। गेरुये वस्त्र पहने थे। लोगोंने उन्हीं काषाय वस्त्रको अनुवेश्य (सं० त्रि०) अनुक्रमेण पौर्वापर्यरूपेण संग्रह कर कोई पीठ बनवाया, जिसका नाम विशाते प्रविश्यते यत्, अनु-विश्-कर्मणि ण्यत्। प्रति 'काषायग्रहण' रखा गया। चन्दवलीसे डेढ़ कोस - वासीसे एक गृहके अन्तरपर बसनेवाला, जो पड़ोसौसे दूर 'काषयर' नामक कोई ग्राम है। बोध बंधता, कि एक मकान्के फामिलेपर रहे। अनुक्रमेण वेश प्रवेश वही उस कालका 'काषाय-ग्रहण' होगा। चौन- अर्हति, अनु-विश अर्हार्थे ण्यत्। प्रतिवेशीके अर्थ परिव्राजक यूअं-चूअन् इन सकल तीर्थस्थानका पहवासी, पड़ोसीके लिये मकान्में रहनेवाला। जो निरूपण निकाल गये, उसके साथ तुलना लगानेसे यजमानसे एक घर छोड़ रहनेवाला ब्राह्मण भी अनु. कुछ प्रभेद पड़ता है। वेश्य कहाता है। अनुव्य (सं० त्रि०) अनु-व्ययति-ते अनुगच्छति, अनु-व्ये अनुवैणेय-अयोध्याका एक पुरातन प्रदेश । इसके १ अनुगत, पश्चाद्गामी, मातहत, अन्तर्गत मनय नामक कोई नगर रहा। ललित. पीछे रहनेवाला। अनुव्ययति-ते आच्छादयति । विस्तरके मतसे उसी जगह बुद्धदेवने अनोमा नदी २ आच्छादनकारी, ढांकनेवाला। (अव्य०) ३ पश्चात्, पार उतर मत्था मुंडवा डाला, अनुचर उसी जगह पौछ। सिद्धार्थसे रुखसत मांग कपिलनगर वापस गये थे अनुव्यञ्जन (सं० लो०) द्वितीय श्रेणीका चिह्न अथवा जो स्थान वैणय नदके साथ विस्तीर्ण पड़ा हुवा, सङ्केत, जो निशान् या इशारा दूसरे दरजेका हो। किंवा वैणेय नदके समीप अथवा निम्न अवस्थित हो, अनुव्याख्यान (सक्लो०) अनुरूप' सदृशं व्याख्यानम्, संवृतौ क। -