पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/५३५

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५२८ अन्तःसत्त्वा-अन्तःस्थमुद्गर कोष्ठबद्ध होगा। कोष्ठबद्ध होने में मलको उत्तेजनासे अन्तःसदस (स अव्य०) सभाके मध्य, महफिलके रक्तस्राव लग सकता है, इसलिये अल्प मात्रामें दरमियान, लोगोंके बीच। एरण्ड तैल खिला अन्त्रको परिष्कार रखे। शौतल | अन्त:सलिलवाहिनी (स. स्त्री०) अन्तमध्ये सलिलेन जलमें भिजा वस्त्रको पेड़ पर बांध देनेसे अनेक जलेन वहति सागरं प्राप्नोति, अन्तःसलिल-वह- स्थलमें उपकार पहुंचता है। इस सकल प्रक्रियाके णिनि-डीप्, ३-तत्। भीतर-भीतर बहनेवाली नदी। साथ रोगिणीको केवल अल्प-अल्प लघु पथ्य खिलाना गङ्गाके मध्य अनेक स्थलमें रेत पड़ गया है ; इसलिये चाहिये। मानना होगा, कि गङ्गाके भीतर जल बह रहा है। जिस स्थलमें स्त्रीका पुनः पुनः गर्भ नष्ट हो जाये, स्मातंने लिखा है, उस स्थल में विशेष विचक्षणताको आवश्यकता आती "प्रवाहमध्ये विच्छदै तु अन्तःसलिलवाहिनीत्वान्न दोषः । है। उपदंश रोगका सन्देह होनेसे २ ग्रेन आयोडाइड अन्यथा इदानी गङ्गायां सागरगामिनीत्वानुपपात्तः ॥" अब पोटाश एवं २० विन्दु काडलिवर अइल एकमें अन्तःसलिला (स. स्त्री०) अन्तर्गतं सलिलं जलं मिला भोजनके बाद दुग्धके साथ खिलाना चाहिये। यस्याः, बहुव्री। १ बालके मध्य जल रखनेवाली इसमें सारिवादि-कषाय भी उत्कृष्ट औषध है। नदी, जिस नदीको बालमें जल भरा रहे। सरस्वती, अनन्तमूल देखो। किन्तु इस औषधके साथ कुङ्कुम, ताप्ती, निर्विघ्या, वेण्खा, वैतरणी, कुमुद्दती, नीपा, गोयाकम् और हरीतको देना मना कृश महागौरी प्रभृति अनेक नदी अन्तःसलिला हैं। (त्रि.) स्त्रीके पक्षमें प्यारिशेज़ केमिकल फुड महोपकारी २ अपने मध्यमें जल रखनेवाला। जैसे, नारियल, होगा, आहारान्तमें अल्प जलके साथ २०१२५ विन्दु तरबूज़ प्रभृति होते हैं। खिलाना चाहिये। सिवा इसके ऐसे सत्पथ्यको भी अन्तःसार (सं० वि०) अन्तर्देहमध्ये एहमध्ये वा व्यवस्था बांधे, जिससे शरीर सबल पड़ जाये। सारो बलं स्थिरांशो यस्य, बहुव्री०। बलवान्, ताकत- अन्तःसत्त्वा स्त्री कदाच स्वामिसहवास न करेगी। वर। २ धनवान्, दौलतमन्द। ३ सारगर्वित, जिसमें उसे पृथक् गृह और पृथक् शय्यामें सोना चाहिये। भीतरी निचोड़ भरा रहे। (पु.) ४ भीतरी कोष, किन्तु इसके कारण उसे एकाकिनी रखना ठीक नहीं आन्दरूनी खजाना। पड़ता। उससे नाना प्रकार उद्देग और दुर्भावना उठ | अन्तःसुख (सं० वि०) अन्तरात्मानं सुखयति, अन्तर् सकती है। जिस स्त्रीका पुनः पुनः गर्भस्राव लगे, सुख-अदन्तचु• पचादि अच् । १ भीतरसे प्रसन्न, जिसे गर्भावस्था में उसे सर्वदा प्रसन्न रखे। नाना प्रकार अन्दरूनी खुशी हासिल रहे, आत्माको सुखी रखने- आमोद-आबादमें मन बहला सकनेसे अनेक स्थलमें वाला, जो रूहको खुश रखे । अन्तरात्मनि तदनुसन्धाने गर्भ नहीं गिरता। हमारे देशको मृतवत्सा स्त्री | सुखं यस्य, बहुव्रौ । २ आत्माके अनुसन्धानमें प्रसन्न देवताका कवच पहनती है। इसमें चाहे भ्रम हो, रहनेवाला, जो रूहको तलाशमें खुश रहता हो। किन्तु दृढ़ विश्वासके कारण अनेक स्त्री गर्भावस्थामें अन्तःसेन (स अव्य०) सेनाके मध्य, फौजके दर- निचिन्त हतों, इसीसे दो-एक सन्तान बच जाते हैं। मियान। मृतवत्सा देखो। अन्तःस्थ (सं० वि०) अन्तमध्ये तिष्ठति, स्था-क। अतिरिक्त रक्तस्रावके बाद जरायुका मुख फैलनेसे, १ मध्यस्थित, बौचवाला। (पु.) २ य र ल व-यह भ्रूण योनिके पास खिसक जाता है। उस समय चार वर्ण स्पर्श एवं उष्मवर्णके मध्य रहनेसे अन्तःस्थ उसे अनायास अॉलिसे निकाल सकते हैं। किन्तु यह कहाता हैं। सकल उपसर्ग उठनेसे शीघ्र ही विज्ञ चिकित्सकका अन्तःस्थमुद्गर (स० पु०) अङ्गविद्यामें-कर्णको बाहरी परामर्श लेना चाहिये। प्रसव देखो। अस्थि, जो हड्डी कानमें सबसे बाहर पड़े।