पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/५७०

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५६.४ अन्नज्वर पेशाब उतर जानेसे यह उपसर्ग उतना कठिन कैसे कहायेगा। सञ्चित मूत्र शलाका द्वारा सहजमें निकाला जा सकता है। किन्तु मूत्राशयमें पेशाब न उतरनेसे रोगीके जीवनको रक्षा दुःसाध्य हो जायगी। मूत्रके साथ यूरिक एसिड नामक कोई क्षार द्रव्य रहता, जो विषतुल्य होता है। वही विषवत् द्रव्य पेशाबके साथ बाहर निकल जानेसे हमारा रक्त परिष्कार और निर्दोष बनेगा। किन्तु मूत्राशयमें पेशाब न उतरनेपर यूरिक एसिड रक्तमें मिल आता है। उसके कारण रोगी बेहोश हो हस्तपद चलायेगा। मूत्रके साथ कभी-कभी मेद भी मिल जाता. वह भी सहज उपद्रव नहीं होता। रोगोके अनेक दिन शय्यापर पड़े रहनेसे कटि- देशमें क्षत निकलता, क्रमसे वही क्षतस्थान सड़ा करता है। अतएव यह भी एक मारात्मक उपसर्ग है। इस ज्वरमें सचराचर क्षुद्रान्वको समवेत और असमवेत एवं मैसेण्टारिक ग्रन्थि हो अधिक बिगड़ेगो। पौड़ाको प्रथमावस्थामें मृत्यु पड़नेसे जड़ितान्त्रको समवेत और असमवेत ग्रन्थिमें प्रदाहका लक्षण देखाई देता है। ग्रन्थि सूजकर ३।४ सूत जंचे उठे, और उसको चारो दिक्वाली श्लैष्मिक झिल्लो लाल नज़र आयेगी। कुछ दिन अधिक जीनेसे ग्रन्थिका यह सकल स्थान कोमल और गलित बनता, अन्तको इसमें क्षत पड़ जाता है। चिकित्सक अनुमान करते, कि अन्वके इस समस्त स्थानसे ज्वरका विष निकले, इसीसे पहले हो अन्धान्त्र में उत्तेजना उठे एवं उसी उत्तेजनाके निमित्त उदरामय उपजेगा। टाइफयेड ज्वरका विष मलमूत्र द्वारा सम्पर्ण रूपसे न निकल सकनेपर उसका कितना हो अंश यकृत्के भीतर पहुंचता, जिससे पित्त भी बिगड़ जाता है। अन्त्रका क्षतस्थान कभी-कभी अन्त्रावरक झिल्लीसे मिले, जिससे इस झिल्ली में भी छिद्र देख पड़ेगा। अन्त्र में छोटा छोटा छेद होनेसे रोगी आरोग्यलाभ करता, किन्तु अन्वावरक झिल्लीमें छेद पड़नसे प्राण बचना दुर्घट जंचता है। अन्नमें छेद होते भी यदि रोगी नौरोग हो, तो क्रमसे इस छिद्रपर एक बारीक परदा पड़ेगा। पोछे वही परदा उत्तरोत्तर पुरु और दृढ़ हो जाता है। किन्तु छिद्र चारो दिक्से मांस भरकर जुड़ते कहीं भी देखाई न देगा। डाकर लाब्र बताते, कि अन्त्रके भरनेसे छिद्र जुड़ सकता है। किन्तु यह बात सकल न मानेंगे। अन्त्रज्वरमें अधिकांश रोगीको प्लीहा कुछ-कुछ बढ़ और कोमल पड़ जाती है। किसीको प्लीहा अकस्मात् फट चलेगी। लोहा फटने से पेरिटोनियल गह्वरमें रक्त पहुंचता है। मलेरियाजनित सविराम और स्वल्पविराम ज्वरमें यह दुर्घटना समय समयपर देखनेको मिलेगी। अकस्मात् मूळ ( sudden syncope ) द्वारा हठात् मृत्यु पड़नेका यह एक प्रधान कारण है। क्वचित् किसी-किसी रोगीको अन्त्र- नाली और खास-नालीमें भी क्षत पड़ जायेगा। फेफड़ेके प्रदाह और रक्ताधिक्यका लक्षण अनेक मृत- देहमें झलकता है। मस्तिष्कावरक झिल्ली में प्रदाह बहुत कम उठता है। किन्तु मस्तिष्कमें रक्ताधिक्य एवं आरकनयेड गह्वरमें सिरस रससञ्चय अनेक स्थलपर देख पड़ेगा। किसी-किसी व्यक्तिके हृदयका पेशीसूत्र कोमल होता है। हृदय चौरनेपर भीतरसे अत्यन्त तरल और कृष्णवर्ण रक्त निकलेगा। सिवा उसके फेफड़े या अन्त्रावरक झिल्लीको जलन बाद मृत्यु आनेसे हृदयके गह्वर मध्य फाइब्रिनका पिण्ड भी पड़ता है। भिर्थ बताते, कि उससे रक्तके खेतकण अतिशय बढ़ जायगे। किसी-किसी स्थल वृक्ककमें रक्ताधिक्य होता; फिर किसीका वृक्कक (kydneys) पाण्डुवर्ण हो जाता है। टाइफयेड ज्वर पंहचानना कठिन नहीं। एक बार देखनेसे सहज ही में सब इसकी व्युत्पत्ति समझ लेंगे। मोहकज्वर अर्थात् टाइफास् ज्वर वल्पविरामज्वर है, और मस्तिष्कावरकको झिल्लोवालो जलनसे इसका कुछ धोखा हो सकता है। टाइफयेड ज्वरमें पेट, छाती और पीठपर जो चिह्न निकलते, उन सबका वर्ण -गुलाब जैसा झलके : किन्तु