पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/५७४

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अन्वज्वर जाये। कारण, इसमें अफीम पड़ती है। मस्तकमें रक्ताधिक्य किन्तु नाड़ी चञ्चल पड़ते. भी मद्यको बिलकुल रहनेसे अफीमको नहीं सह सकते। फेफड़े या खास स्थगित रखना न चाहिये। पूर्वापेक्षा और भी नालौमें प्रदाह उठनेसे यदि श्लेष्मा न गिरे, तो अफीम अल्प मात्रामें थोड़ी-थोड़ी देर बाद उसे पिलाता अनिष्ट पहुंचाये गौ । रोगीके बिलकुल संज्ञाहीन होने अनायास ही समझ सकते, इस प्रणालौसे वाले पूर्व लक्षण भांफनेपर भी अफौम न खिलाना सुरा पिलाने में किस रोगीको, कैसे परिमाण और चाहिये। जो हो, किसी प्रकार रोगीको सुनिद्रा विलम्बसे मद्य देना आवश्यक होगा। जिसने नियत आनेसे एक दिनमें सकल उत्कट उपद्रव भागता है। रोगौके पास ठहर बहुदर्शिता पायी, उस विज्ञ वक्षःस्थलका प्रदाह मिटानेको .खांसी में छातीपर चिकित्सकको प्रायः इतना कष्ट नहीं उठाना अफीमके तेलसे मालिश कराय, पतले कपड़ेका पड़ता। मस्तिष्कका उपसर्ग एवं नाड़ीकी गति तारपीनके तेलसे तरकर छातीपर डाले एवं सरसोंका देखते ही वह मद्यप्रयोगका फलाफल अविलम्ब हो उष्णप्रलेप पुनःपुनः लगाता रहे। सेवनके लिये समझ सकेगा। टिचर सेनेगा २० विन्दु, सिरप अव स्कुइल ३० विन्दु, यदि मद्य पिलानेसे पूर्वापेक्षा जिह्वा और भी क्लोरिक ईथर २० विन्दु, और कपूरका जल आध मलिन पड़े एवं सूखे, तो समझना होगा, कि सुरासे छटांक-इन सबको एक मात्रा बनाना चाहिये। इस अपकार पहुंचा; किन्तु यदि जिह्वा क्रमशः सरस औषधको ६ घण्टे अन्तरसे खिलायिये । उदरामय लगे और मलिनता घटे, तो इससे यही समझना खांसी और एकज्वर-इस उपसर्गका दूसरा भी चाहिये, कि मद्य सेवनसे शुभ फल निकला है। महौषध वर्तमान है। यथा,-लिकर सोडा क्लोरिनेट मद्य पिलानेसे यदि प्रलाप घटे और निद्रा वढ़े, २० विन्दु, सिरप अव टलु ३० विन्दु, क्लोरिक इथर तो सुलक्षण समझा जायेगा। किन्तु प्रलाप पूर्वा- २० विन्द और सर्पेण्टारिका आध छटांक-इन सबको पेक्षा अधिक बढ़नेसे कुछ कालके लिये सुरा न एकमें मिला मात्रा बनायिये। इस औषधको ४६ पिलाना चाहिये। घण्ट अन्तरसे खिलाना अच्छा होगा। दो-तीन मात्रा मद्य पिलाने से यदि खास-प्रश्वास रोगीका दुर्बल होना समझ पड़ते ही मांसका स्वाभाविक पड़े, तो निर्भय मद्य पिलाता रहे। किन्तु शोरबा और ब्राण्डी बराबर देना चाहिये। जुररोग खासकृच्छ बढ़नेपर इस औषधको देना उचित नहीं। में मद्य देने के लिये कितनी ही विज्ञता जरूरी है बिलायतमें सचराचर जरादि रोगको अवसन्ना- ठौक समय और उपयुक्त परिमाणपर मद्य न दे वस्थापर २४ घण्टे के मध्य २ औन्ससे ६ औन्सतक सकनेसे विस्तर अनिष्ट आये एवं अनेक रोगी ब्राण्डी किंवा ४ औंससे ८ औन्सतक पोर्ट पिलायो चिकित्सकको अविवेचनासे अकालमें प्राण छोड़ेगा। जाती है। क्वचित् किसी-किसी स्थलमें इसका सेवन अतएव जररोगको चिकित्साके समय सकलको हो अधिक परिमाणसे भी देखा गया। कठिन पीड़ाके यह कई बातें भूलना न चाहिये,- समय रोगो अत्यन्त दुर्बल पड़नेसे ठीक तौरपर मद्य नाड़ी क्षीण और अतिशय द्रुतगामी होनेसे मद्य पिलाना चाहिये। मद्य सेवनसे शरीर स्वस्थ बनने पिलाये। यह औषध दो-एक मात्रा लेनेसे यदि और निद्रा पड़नेपर भी निर्दिष्ट समय रोगीको उठा नाड़ी पूर्वापेक्षा सुस्थिरा और सबला मालूम पड़े, तो सुरा पिला दे। क्योंकि ठीक समयपर मद्य न समझना होगा, कि मद्य प्रयोगसे उपकार हुवा पिलानेसे विघ्न पड़नेको सम्भावना होगी। सुस्थिर है। मद्य पिलानेसे यदि नाडीका वेम और वक्र भावसे सोने के कारण रोगोको जगानेमें कुण्ठित न गमन बढ़े, तो जान जायिय, कि मद्य सेवनसे होना चाहिये। कुण्ठित होनेसे सम्भव है, कि कोई उपकार न हुवा ; वरं कुछ अनिष्ट उठा है। रोगीको फिर उस निद्रासे जागना ही न पड़े। ।