पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/५८७

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। अन्धकारमय-अन्धकूप ५८१ अवस्थित है। यहां देवता, गन्धर्व, सिद्ध और चारण स्तम्भके अनुरूप अब एक नवीन स्मारकसम्म बना रहते हैं, जो सकल ही गौरवर्ण होते हैं। दिया गया है। अन्धकारमय (स. त्रि.) अन्धकार-प्राचुर्ये मयट् । अन्धकूप मकान १८ फ़ोट दोध, १८ फीट प्रशस्त अत्यन्त अन्धकारयुक्त। एवं १४ फोट उच्च था। इसमें केवल एक हार था, अन्धकारि (सं० पु.) अन्धकस्य दैत्यविशेषस्य एवं ऊपर बरामदेके पास दो छोटी-छोटी खिड़कियां अरि: शत्रुः, ६-तत्। महादेव, जिन्होंने अन्धक नामक थों; उनमें भी लोहके सींखचे लगे थे। अंगरेजी दैत्यको मारा था। श्लेषमें यह शब्द सूर्य चन्द्रका भी सेनाके मध्य किसौके कुछ अपराध करनेपर लोग द्योतक होता है। इसौमें बन्द किये जाते थे। ऐसे मकानमें ठहरना अन्धकासुहृत् (सं० पु०) अन्धकस्य असुहृत् शत्रुः शिव। हो यमदण्डको अपेक्षा अधिक कष्टप्रद था, इसीसे अन्धकूप (सं० पु०) अन्धयति इत्यन्धः स चासौ अपराधीके शासन निमित्त दूसरा कोई झगड़ा न कूपश्चेति। १ अन्धकारयुक्त कूप। अंध:कूपो यत्र, लगता था। ७-बहुव्री। २ नरकविशेष, एक खास दोजख । सन् १७५६ ई० को २१ वीं जूनको सिराज्जुद्दौलह यह नरक अन्धकारसे आवृत है। इस जन्म में जो अपने सेनापति मौरजाफ़र और सैन्य-सामन्तके साथ लोग आत्मसुखके लिये नौच प्राणीको कष्ट पहुंचाते, कलकत्ते पहुंचे। उन्होंने किला अपने हाथ किया। वह इस नरकमें पड़ क्लेश भैलते हैं। अन्धस्य दृष्टय- किन्तु अंगरेजोंका खजाना लूटनेमें ५००००) भावस्य कूप इव । ३ मोह, मुहब्बत। ४ अन्धकार- पचास हज़ार रुपयेके सिवाय गहरा माल पल्ले न विशिष्ट घर, जिस मकानमें अंधेरा हो, चोरखाना। पड़ा। जो जाति समुद्र पार कर इस दूरदेशमें बाणिज्य युक्त प्रदेशमें स्थान-स्थानपर जमीनके भीतर मकान करे, उसके पास पचास हजार रुपये निकलें यह बने हैं। इन्हें तहखाने या अन्धकूप कहते हैं। ग्रीष्म सुनते ही असम्भव सा मालूम हुआ। इसोसे नवाबने, काल आनेसे सूर्यका ताप अतिशय बढ़ता, अग्निके अंगरेजोंके अध्यक्ष होलव्येल साहबको बुला भय स्फ लिङ्ग जैसी हवा और लू चलती है। इसीसे धन- और बड़ी भत्सना दिखायो। किन्तु उनको मन- वान् लोग दिनको सन्तापके समय इन्हीं तहखानों में स्कामना पूरी न हुई। होलव्येल साहब रुपयेको रहते हैं। बरफके व्यवसायी भी बरफ अन्धकूपके भीतर बात बिलकुल छिपा गये। सिराजुद्दौलह मौरजा- इकट्ठी रखते हैं, जिससे वह शोध गल नहीं सकती। फरके हाथ अंगरेजी कैदी सौंप वहांसे चलते बने। उसके बाद कलकत्ते के अन्धकूपका वृत्तान्त उस समय एक-एक अंगरेज बणिक्का दौरात्मा इस अन्धकूप सम्बन्धीय सन् १७५६ ई की २७ हजार सिराजुद्दौलहसे भी चढ़ा-बढ़ा था। उनके वीं जनबाली कालरात्रि सबको याद रहेगी। अत्याचारसे बङ्गाल प्रान्त अस्तव्यस्त हो गया था। कलकत्ते के पुरातन दुर्गको बारिकसे दक्षिण ओर इसीसे नवाबके सिपाहियोंने अंगरेज बणिकोंको एक मकान था। इसीको अन्धकूप कहते हैं। वेदना पहुंचानेका परामर्श किया। भी बहुतसे टेड्स स्कयरके कोणमें इस अन्धकूपका इसौ भयङ्कर अन्धकूपमें डाले गये और हार अवरुद्ध स्थान बताते हैं। सन् १८३४ ई० में लापेल मेकिण्टस् करदिया गया। बारीक हिसाब लगानेसे अन्धकूपके कम्पनीने इसीके निकट दुकान खोली थी। जहां मध्य १४४ हाथ स्थान था। प्रत्येक हाथमें एक एक पहले अन्धकूपहत्या की गई थी, एवं मृत मनुष्योंके मनुष्यके सटे खड़े रहनेपर भी दो आदमियोंकी जगह उद्देशसे स्मारकस्तम्भ ( Monument) बनाया गया नहीं निकलती। सिपाहियोंने, फिर भी, इसी मकानमें था । बर्तमान लालदीघौके उत्तर-पश्चिम-कोणपर लार्ड १४६ लोगोंकी ढूंस दिया था। कर्जनके प्रयत्नसे कुछ दिन हुए वहां पूर्वस्मारक मकान छोटा था, हार बन्द था; जो खिड़कियां 146 १४६ कैदी आज