पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/५९५

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अन्धराजवंश ५८६ है।* शेषोक्त अन्धराजको लिपि देखते ही खुष्टीय | उनका नाममात्र आधिपत्य करता था। उनके प्रथम या द्वितीय शताब्दको मालूम पड़ेगी। इधर सेनापति और मन्त्री हो सब कुछ बन बैठे थे। यूनानी भौगोलिक टलेमोने सन् १५१ ई० में अपना कालिदासके मालविकाग्निमित्र नाटकसे मालूम होता जो प्रसिद्ध भूवृत्तान्त ग्रन्थ लिखा, उसमें अपने है, कि शुङ्गसम्राट् पुष्यमित्रके समय दाक्षिणात्य के सामयिक तीन दाक्षिणात्य नृपतियोंका उल्लेख किया विदिशामें उनके ही वंशधर राजप्रतिनिधिका कार्य है। उनमें प्रधान नृपतिका नाम Siro Polemaios करते थे। अनुमान होता है, कि मौर्याधिकारके शेष था, उनको राजधानी पैठानमें थी। द्वितीय भागमें दाक्षिणात्यके उत्तरांशपर विभिन्न जगह शुङ्ग नृपतिको Baleokouros कहते थे, उनको राजधानी और काणुवंश प्रधान राजकर्मचारीको तरह राजकार्य Hippocura कहाती थी। एवं तृतीय नृपतिका करते थे। एवं उनके साथ सिमुक और कृष्ण- नाम Tiastenes था, जिनको राजधानोको Ozene राजको चिरकाल युद्ध करना पड़ा था। सिमुकके या उज्जयिनी कहते थे। कहनेका यह अर्थ है कि, ही मौर्याधिकार कालमें पहले शिर उठानेसे पुराण- उस समयके शिलालेख और मुद्रालेखसे हमें उक्त तीन कारने उनको प्रथम अन्धनृपति माना है। वास्तवमें नृपतिका प्रकृत :नाम यथाक्रम वासिष्ठोपुत्र श्रीपुलु उस समय शुङ्ग और काणवंश राज्यके सर्वमय कर्ता मायो, बिलिबायकुर और चष्टन मिला है। होते भी सम्राट् बन न सके। क्रम क्रमसे बल बढ़ा ब्रह्माण्ड और मत्स्यपुराणके मतसे कृष्ण द्वितीय और प्रवन्ध जमा। शेष मौर्यसम्राट् बृहद्रथके सेनापति और वासिष्ठीपुत्र पुलुमायो पच्चीसवें नृपति थे। शुङ्गशीय पुष्पमित्रने अपने प्रभुको मार मौर्यसाम्राज्य- दोनोंमें ३५५ वर्षका व्यवधान है। ऐसी अवस्था में पर अधिकार किया। इस वंशके हाथसे अपर वंशके पुराणको तालिका, कृष्णको लिपिके अक्षर और हाथ राजदण्ड पहुंचते समय पाटलिपुत्रके शासना- टलेमौके वर्णन एकत्र विचार कर देखनेसे कृष्ण धौन सामाज्यको चारों ओर हो जो सहसा गड़बड़ाहट राजको हम खुष्ट पूर्व ढतीय शताब्दके राजा मचगयो, उसमें कोई सन्देह नहीं। पहले ही लिखा अनायास मान सकते हैं। पहले खारबेलको गुहा है, कि उस समय कलिङ्ग, तैलङ्ग, मालव, सौराष्ट्र लिपिसे १५४ मौर्याब्द या सन् २१८ ई० में जिन प्रभृति दूरस्थित प्रबल सामन्त राजाओंने स्वाधीनताका अन्ध राज शातकर्णिका उल्लेख किया, समसामयिक डङ्का बजाया था। ऐसे समय जो कुछ शक्तिसामर्थ्य में लिपिकालकी आलोचना द्वारा उन्हें अन्ध वंशीय प्रबल हो गये थे, वह पाचवर्ती राज्याधिकारके लिये द्वतीय नृपति और उक्त पुराणतालिकाके अनुसार लालसा करने लगे। जैनराज खारबेलको हाथी- उन्हें हम कृष्णराजके पुत्र समझते हैं। पुराणमतसे गुम्फालिपि और कालिदासके मालविकाग्निमित्र कृष्णराजने १८ वर्ष और उनके ज्येष्ठमाता सिमुक नाटकसे उनका थोड़ा-थोड़ा आभास मिला है। या सिन्धुकने २३ वर्ष राज किया। १५४ मौर्याब्द हाथीगुम्फालिपिसे निकलता, कि खारवेल भिक्षुराजके या २१८ हृष्ट पूर्वाब्दमें अथवा उससे कुछ पहले द्वितीय वर्षमें पश्चिम दिक्के अधिपति शातकणि ने अन्ध राज प्रथम शातकर्णिका अभ्युदय हुवा। हम अपने मित्र कलिङ्गाधिपतिके साहाय्यार्थ प्रभूत चतुरङ्ग उनसे ४१ वर्ष पहले प्रायः २६० खुष्ट पूर्वाब्दमें प्रथम बल भेजा था। * उसके बाद कलिङ्गाधिपने उनसे अन्ध राज सिमुकका आविर्भावकाल मान सकते अष्टम वर्ष में राजरहाधिपके विरुद्ध युद्धयात्रा को हैं। उस समय भी मौयवश पाटलिपुत्रके सिंहासन थी। राजमहाधिप उनके भयसे मथुराको भाग खड़े पर अधिष्ठित था। सारांश यह है, कि उस समय हुये। पौछे कलिङ्गाधिपने बादश वर्षमें या १६४

Transactions of the Congress of Orientalists 1874, p. 360. 148 Actes VIe Congres' International des Orientalists, tome iii, p. 174.