पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/६१२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

1 अन्वन्-अन्वयागत अन्वन् (स.वि.) अनु पश्चात् वाति गच्छति अनु और विशेष्य विशेषणादिका जिस रूपमें अन्वय होता वा-क पृ० साधु। अनुगामी, पौछे जानेवाला। है, वही ज्ञान। अन्वय (सं० पु.) अन्वेति जन्म प्राप्नोति जन पर- अन्वयिन् (सं० त्रि०) अन्वयः सम्बन्धादिरन्वयस्य म्परया अस्मिन् अनु-इन् अधिकरणे अच् । वंश, मेल, इनि। शब्द बोधका उपयोगी सम्बन्धविशिष्ट, अन्वय- पथके शब्दीका कर्ता, कर्म और क्रियाके क्रमसे रखना, युक्त ; पश्चाद्गामी, प्रागुक्त वंशादि विशिष्ट । सम्बन्ध, खानदान, जाति, सन्तान । अन्वयी (सं० स्त्री०) एक हौ वंश वा खानदानका, रिश्तेदार, सम्बन्धी। 'सन्ततिौ बजननकुलान्यभिजनान्वयौ । वशोऽन्वबायः सन्तानः ॥' (अमर) अन्वर्थ (सं० वि०) अर्थमनुगत । अर्थयुक्त, व्युत्पत्ति- "तदन्वये हिमति।" (रष २२) विशिष्ट शब्द, अर्थके अनुसार। २ आनुकूल्य, कार्यकारणका अनुसरण । अनुगति ; अन्ववसर्ग (सं० पु०) अनु-अव-सृज-घञ्। जो इच्छा कार्यजनक जो कारण है उसके कार्यको स्थिति । हो वहौ करो ऐसा आदेश, मनमाना करनेका हुक्म । न्यायके मतसे, खजना सम्बन्धमें कारण कार्यमें उतार देना, ढीला होना। रहता है, उसी स्थितिका नाम अन्वय है। अन्ववाय (सं० पु.) अन्ववाय्यते जनित्वा सम्बन्धते कारण रहनेसे कार्य रहता है, ऐसा सम्बन्ध। जैसे दण्ड, अस्मिन् अव-अय अधिकरण घञ्। वंश, सन्तान । 'व'शोऽन्ववाय: सन्तानः।' (अमर) चक्र, जल एवं सूत्र रहनेसे घट होता है 'घटपटौ' घट एवं पट, यहां घट और पटमें अन्ववसित (स' त्रि०) वंधा हुआ, जकड़ा हुआ। जो साहित्यसम्बन्ध है, उसीका नाम अन्वय है। अन्वयव्यतिरेकिन् (सं० त्रि.) अन्वयव्यतिरेको विद्यते- एवं 'घटमानय' घट लाओ, 'दात्रेण धान लुनाति' ऽस्य इनि। साध्यका साधक हेतुविशेष, जिसके द्वारा हसियेसे धान काटते हैं। यहां घट एवं द्वितीया साध्यका निश्चय हो ; जैसे अग्निरूप साध्यका धूम हेतु विभक्तिमें, दात्र एवं हतीया विभक्तिमें जो सम्बन्ध है, है। वही धूम अग्निविशिष्ट पर्वतादिमें अन्वय (अग्नि- उसका नाम अन्वय है। 'घटः पटञ्च।' घट एवं स्थितज्ञान) का हेतु है। एवं अग्निका अभावविशिष्ट जल पट ये दो निरपेक्ष पद हैं। इन दोनोंका जो सम्बन्ध हुदादिमें व्यतिरेक (अग्निके अभावज्ञान) का हेतु है। है, उसीका नाम अन्वय है। 'परस्परनिरपेक्षायामकस्मिन्नन्वयः ।। अन्वयव्याप्ति (स. स्त्री०) अन्वयेन व्याप्तिः व्यापन (सि० को०) परस्पर निरपेक्ष सब पदोंका एक पदार्थमें सर्वदा स्थितिः। जहां धूम रहता है वहां अग्नि जो अन्वय है, उसोको समुच्चय कहते हैं। रहती है, ऐसी व्याप्ति (स्थिति) के साध्यका अभाव- व्याय- रहनेसे व्यापक रहता है, यह एक प्रकारका अन्वय विशिष्ट न रहकर साध्य के अधिकरणमें रहनेका नाम है। जैसे धुआं रहनेसे आग रहती है। अनुवृत्ति। ही व्याप्ति है। वह व्याप्ति जिस हेतुसे रहती है। "जन्माद्यस्य यतोऽन्वयात् ।" (भागवत ११३१) 'यद्दान्वयशब्देनानुत्तिः ।' स्वामौ । धूम रहनेसे हो वहां आग रहती है, ऐसे ज्ञानके किंवा अन्वय शब्दे अनुवृत्ति। प्रत्यक्ष। “स्यात् साहस उदाहरण न्यायशास्त्र में बहुत हैं। पर यह उदाहरण वन्वयवत् ।" ( मनु ८२३२१) 'ट्रव्यस्खामिसमच। भ्रमात्मक है। जहां धूम हो वहां आग नहीं रह स्वामकि साक्षात्में अपहरणका नाम साहस है। सकती। एक आधारमें धूम भर रखनेसे वहां आग (त्रि.) अनुगत मात्र । “निरन्वयजने वने।” (भट्टि ५।६६।) नहीं रह सकती, पर आग रहनेसे वहां थोड़ा बहुत अनुगत जनरहित बनमें। धूम अवश्य रहेगा। अन्वयबोध (सं० पु.) अन्वयस्य आकाङ्क्षादिना अन्वयागत (स० त्रि०) अन्वयात् वंशपरम्परात् आगतं। परस्परपदसम्बन्धस्य बोधो ज्ञान छैन। शब्दज्ञानके १दायप्राप्त धनादि। २ विदेशमें रहनेवाले अपने लिये शब्दबोध रूप अनुभव विशेष, अन्वयज्ञानक्रिया वंशका आया हुआ कोई आदमी। (कुल क)