पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/६१४

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अन्वारोहिणो-अन्वेष कर्मणि त। प्रा-रूह भावे ल्युट्। पश्चात् आरोहण, स्वामीको जो श्राद्ध सब शुभ कार्यो के आदिमें होते हैं मृत्यु के बाद स्वामौके मृत शरीरके साथ चितापर (वृद्धिश्राद्ध), सब कामोंके अन्तमें जो दक्षिणा देना चढ़ना, पोछे चितापर चढ़ना। होती है, एवं अमावस्याका द्वितीय जो श्राद्ध है, उन "भर्तरि मृत ब्रह्मचर्य तदन्वारोहणं वा।" (वि० सू०) सबका नाम अनाहार्य है। "पितॄणां मासिकं श्राद्ध' अन्वाहार्य स्वामौके मरनेपर स्त्री ब्रह्मचर्यव्रत करे वा स्वामी- विदुर्बुधाः ।” (मनु ।१२३) पिढगणका जो महीने-महीने के साथ चितापर चढ़े। अमावस्थाको श्राद्ध किया जाता है, उसका नाम अन्वारोहिणी (स. स्त्री०) अनु-सह पश्चाहा आरी अनाहार्य है। हति भर्तृचिता अनु-प्रा-रूह-णिनि ऋन्नेभ्यो डोप अनाहार्यक (स० क्लो०) अनाहार्यमेव स्वार्थे कन् । णत्वञ्च । जो स्त्री स्वामौके मृत शरीरके साथ चितापर महौने-महीने करनेका अमावस्याका श्राद्ध । चढ़े, जो स्त्री स्वामीको मृत्यु के उपरान्त उसको अन्वाहार्यपचन (सं० पु.) अन्वाहायें तनिमित्त पादुका आदि लेकर चितापर चढ़े। अन्न पच्यते अनेन पच-करण ल्युट । दक्षिणाग्नि, "तदवारोहिणी यस्मात्तस्मात् सा नात्मघातिनी।" (स्मृति) ऋग्वेदके विधानसे स्थापित अग्नि, जिस अग्निमें जिसलिये वह स्त्रौ खामौके साथ वा पौछे जाती अन्वाहार्यका अन्नपाक होता है। है, इससे वह आत्मघातिनी नहीं होती। अन्वाहिक (स. त्रि०) दैनिक, रोजका, रोज़ाना। अन्वासन (सं० क्लो०) अनु-आस-भावे ल्युट । अन्वाहित (सं० त्रि०) अनु .आहितं अनु-आ-धा सेवाके पश्चात् उपवेशन, अनुशोचन, शिल्पादिग्रह, कृतान्वाधान, अग्निस्थापनके अनन्तर सेवाके पीछे बेठना, अफसोस, कारखाना। जिसमें दो चार लकड़ी समिध डाल दी गई हों, अन्वासित (स.नि.) अनु-आस कर्मणि क्त सोपसर्ग पश्चात् आरोपित, धरोहरके मालिकको धरोहर खात् सकर्मकः। पीछे बैठकर सेवा किया गया, पौके देनेके लिये उसे दूसरेको सौंपना। बैठकर सेवित, पीछे वा बराबर बैठाना। अन्विच्छा (स. स्त्री०) अनु-इष भावे श तदन्तस्य अन्वासीन (सं० त्रि०) पीछे वा बराबर बैठना। स्त्रीत्वात् टाप, यगभावो निपात्यते । पश्चादिच्छा। अन्वास्यमान (स' त्रि.) साथ साथ, सङ्ग में। अनित (सं० त्रि०) अनु-इण-क्त । अनुगत, अन्वय- अन्वाहार्य (स. क्लो०) अनुपिण्डपियज्ञपश्चात् युक्त, युक्त सम्बन्धविशिष्ट, मिला हुआ, सहित । यहा अनु अन्नप्राशनादि शुभकर्म लक्ष्योकत्य अथवा अनिष्ट (सं० त्रि.) अनु-दृष-क्त वा अनु-यज-त। अनु-कर्मणः पश्चात् किंवा अनु मासि मासि आङ्गियते अन्वेषित, पूजित, जिसकी खोज की गई है। अनुष्ठीयते अनु-बा-कर्मणि ण्यत्। अमावस्याका अनिति (सं० त्रि.) अनु-इण-तिन्। नमस्कार श्राद्ध। साग्निक पिढयनके अनन्तर अमावस्याको द्वारा अनुकूलता प्राप्त । श्राद्ध करते हैं, इसलिये उसका नाम अनाहार्य है। अन्वीक्षण (सं० क्लो०) अनु-ईक्षणं। पर्यालोचना, निरग्निगण महीने-महीने अमावस्याको श्राद्ध करते ध्यानपूर्वक देखना। हैं, इसीसे उसे अनाहाय कहते हैं। अन्नप्राशनादि अन्वीक्षा (सं० स्त्री०) अनु पश्चात् ईक्षा प्रादि-स. शुभकर्मके उपलक्षमें वृद्धिवाद करना पड़ता है, अनु-ईक्ष-अ। पर्यालोचना, ध्यानसे देखना, खोज । इसलिये वृद्धिबाइका नाम अनाहार्य है। सब कामोंके अन्चौत (सं० त्रि०) अनु-ई कर्तरि क्त। अनुगत, अन्वयप्राप्त। बाद दक्षिणा देना पड़ती है, इसलिये दक्षिणाका अन्वीप (स त्रि०) अनुगतो आपो यत्र स्थानादौ नाम अनाहार्य है। अच् स० । जलानुगत स्थान, जलके पास, मिलन हार । "यत् श्राद्ध कर्मणामादौ या चान्ते दक्षिणा भवेत् । अन्वेष (सं० पु.) अनु-ईष भावे घञ्। अन्वेषण, पामावास्य' दितीय' यदन्वाहार्य विबुधाः ॥" ( कात्यायन) अनुसन्धान, खोज, तलाश ।