पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/६३७

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अपस्मार । करनेसे सेकड़े पीछे प्रायः सात आदमियोंको मृगी रोग लगता है। कारणतत्त्व-पितामाताके मृगी रोग रहनेपर सन्तान- को भी प्रायः यह रोग ग्रसता है। पितामाताके पूर्व- पुरुषों में यदि किसीके और कोई स्नायवीय रोग रहा हो, तो सन्तानको मृगी रोग होनेको सम्भावना होगी। डाकर फिलण्ट कहते हैं, कि मृगोरोगके रोगीके बालबच्चोंको भौ मृगी रोग हो सकता है। तालिका देखकर इस बातको प्रमाणित करना कठिन होगा। यह ठोक निश्चित नहीं, कि स्त्रीपुरुषमें किसे अधिक मृगी रोग होता है। अधिकांश मनुष्योंको १० वर्षको उम्रतक यौवनावस्थाके आरम्भमें मृगी रोग पकड़ेगा। इसे छोड़ दूधके दांत गिर जाने बाद जब फिर दांत निकलने लगते हैं, उस समय भी कितनों- को अपस्मार दबोचता है। वृद्धावस्था में शायद कभी किसीको यह रोग लगता है। मस्तिष्कमें आघात लगनेसे ; चमड़े के नोचे अथवा भौतरौ यन्त्रमें कोई पदार्थ प्रवेश करने, आँतमें टिनिया वा और किसी प्रकारका कौड़ा रहने ; मस्तकका गठन अपरिमित अर्थात् शिरको ओरके गठनसे दूसरी ओरका गठन दूसरी तरहका होने ; शिरके भीतर अर्बुद, कोटादि पराङ्गपुष्ट अथवा प्रदाह आदि विद्यमान रहने; अथवा भौतर अस्थि- वृद्धि होनेसे मृगी रोग हो सकता है। अतिशय वा अस्वाभाविक रतिक्रिया ; मूर्छा- रोग ; उन्मादादि और किसी प्रकारका सायवीय रोग : कोफिउला ; मूत्ररोग ; उपदंश ; हठात् अत्यन्त भय ; अत्यन्त क्रोध; अत्यन्त मानसिक चिन्ता वा मनस्ताप ; सौसा धातु वा सडिया द्वारा विषाक्तता प्रभृति नाना कारणोंसे अपस्मार रोग उत्पन्न हो सकेगा। प्राचीनकालमें किसौ किसी जातिको ऐसा विश्वास था, कि देवता लोग रुष्ट हो जानेपर मनुष्य- को शाप देते हैं। मृगी रोग उसौ शापका फल है। यहूदी, यूनानी एवं रोमक पण्डितगण अपस्मार -रोगको भूतका सवार होना मानते थे निदानतत्त्व-अपस्मार रोगका निदानतत्व अत्यन्त कठिन है। मृत्यु के उपरान्त शारीरिक निर्माणमें प्रायः किसी प्रकारका व्यतिक्रम नहीं देखा जाता। इसीसे इस समय सभी इसे क्रियाविकार जनित व्याधि मानते हैं। व्ये ल वचेट, कजभेल, कोभर, भ्याण्डार, कल्क प्रमृति चिकित्सक कहते हैं, कि मस्तिष्कके खेतांश एवं मेडिउला अवलनेटा प्रभृति स्थानोंको विकृतिक कारणसे मृगी रोग होता है। किन्तु इन सब स्थानों का परिवर्तन सर्वत्र नहीं देखा जाता। जो हो, अपस्मारका लक्षण देखनेसे कशेरू मज्जा एवं लम्ब मज्जाको ही रोगका प्रवत स्थान स्वीकार करना होगा। लक्षण-पूर्वावस्था-अज्ञान होने के पहले ही रोगोको कुछ लक्षण मालूम हो जाता है। पर यह लक्षण सर्वत्र एकसा नहीं रहता। किसोके शिरमें पीड़ा होने लगती है, अथवा एकाएक' शिर घूमता है। उस वक्त रोगीको चारों ओर अनेक प्रकारके रङ्ग दिखाई देने लगते हैं। हमारे वैद्यक शास्त्रमें लिखा है, कि वायुजनित अपस्मार रोगमें रोगीको लाल, काले आदि कई तरहके रङ्ग दिखाई देंगे। "परुषारुणवणानि पश्ये द्रूपाणि चानिलात् ।" पैतिक अपस्मारमें रोगी लाल और पौला रङ्ग देखता है। "पीतामृग रूपदर्शन' ।” श्लैष्मिक अपस्मारमें रोगी सफेद रङ्ग देखेगा। “पश्यन् शुक्लानि रूपाणि नैष्मिकमुच्यने चिरात् ।” कभी सामने आग जलनेका भ्रम होता है। किसी किसी स्थलमें मूर्छा आनेसे पहले रातके वक्त रोगी बार बार अग्निका स्वप्न देखेगा। कुछ देर तक ऐसी ही दशा रहने बाद उसके कानमें नाना प्रकार शब्द होने लगते हैं। फिर उसे आंखसे साफ दिखाई नहीं देता। नाकमें सब तरहको गन्ध बहुत तेज मालूम होता है। क्रमसे चेहरेका रङ्ग बिगड़ जाये और किसी चीजके खानेपर उसका स्वाद न मालूम होगा। उसके बाद श्वासनलीमें घर्घर् शब्द होने लगता है और रोगीको सामने अनेक प्रकारके काल्पनिक दृश्य साफ दिखाई देते हैं। मूर्छा आनेके कुछ या बहुत पहले इन सब