पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/६३९

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अपस्मार अत्यन्त में देखा जाता है, कि आंख मैलो और कुछ पोलो प्रयोग करनेसे बहुत उपकार होगा, पर मृगी होने और मुंह कुछ पागलों जैसा दिखाई देनेपर | रोगमें शीतल जल प्रयोग करनेसे कुछ भी फल नहीं रोगका प्रतिकार न बनेगा। निकलता। बचपनवाले मृगौरोगके आरोग्य होनेको रोगनिर्णय-हिष्टिरिया नामक मूर्छारोगमें रोगी सम्भावना है; अतएव चिकित्सा करनेसे पहले को कुछ कुछ ज्ञान रहता है, पर मृगोरोगमें कुछ भी रोगका मूल कारण निश्चित कर लेना आवश्यक होता नहीं। हिष्टिरिया रोगमें ऐसा मालूम होता है, है। अज्ञानतावश लड़के और भले घरको कोई कोई जैसे रोगौके पेटसे एक गुल्म बाहर निकल आया हो, बालविधवा दुष्क्रिया करते रहती हैं। इस बातको पर मृगौरोगमें रोगीको पीठपर कौड़े आदिकी तरह अच्छी तरह खोजकर चिकित्सकको दूर करनेको कोई चीज़ मालूम पड़ती है। अतएव इन दोनो चेष्टा करना चाहिये। भय, दुश्चिन्ता. आंतमें कोड़ा रोगोंका सहज ही प्रभेद किया जा सकेगा। मृगी एवं जरायुका क्रियाव्यतिक्रम प्रभृति किसी प्रकार रोगमें रोगी ज्यादा देरतक अज्ञान न रह बहुत कारण विद्यमान रहनेपर पहले उसे शान्त करना खासकृच्छ लगाता है, पर संन्यासमें रोगी बहुत आवश्यक है। होमियोपैथी चिकित्साके मतसे देरतक अज्ञान रहते भी वैसा खासक्वच्छ नहीं मृगौरोगमें नीचे लिखा औषध व्यवहार करेंगे। देखाता। बचपनमें ज्वरके साथ बच्चोंको आक्षेप मुखमण्डल और नेत्र उज्ज्वल ; आंखको पुतली ( Convulsion ) होता, पर मृगौरोगमें ज्वर न रहते फैली हुई ; रोशनौको ओर देखनेमें कष्ट आदि भो मूर्छा आती है। वत्तमान रहनेपर ६.१२ वा अधिक डाइलिउशन् चिकित्सा-कितनोंको विश्वास है, कि मृगौरोगमें वेलेडोना जलके साथ सेवन कराये। होमियोपैथी और वैद्यशास्त्रके मतसे चिकित्सा करने आक्षेप और मुख विवर्ण हो, तो कुप्रम् ( Cuprum) पर कुछ भलाई निकलती ; एलोपैथी चिकित्सासे प्रशस्त है। वैसा उपकार नहीं होता। मूर्छा होनेका पूर्व लक्षण कानमें झन् झन् शब्द, शिर घूमना, स्नायविक देख लेनेसे रोगीको चारपाईपर लेटा देना चाहिये, दुर्बलता, मलवद्ध, क्रोध, मुखशोष, उदरस्फीति प्रभृति श्वासक्रिया किम्बा रक्तसञ्चालनमें यदि कोई वाधा लक्षण विद्यमान रहनेपर ३ डाइलिउशन् नक्सभमिका पड़े, तो उस प्रतिबन्धको शीघ्र ही दूर करना (Nuxvomica) दो बूंदको मात्रामें साफ जलके साथ होगा। अज्ञान अवस्थामें दांतसे जीभ काट डालनेको प्रति दिन तीन बार खिलाना चाहिये। सम्भावना है। अतएव मुंहके भीतर जीभको घुसेड़ बचपनसे पेटको पौड़ा, अम्ल वमन, एक गाल कर चौंके नीचे एक छोपी रख देनेसे फिर उस बातको पीला और दूसरा लाल आदि लक्षण के बाद मृगौरोग- आशङ्का न रहेगी। उसके बाद रोगीका शिर तकिये में मूर्छा आनेपर केमोमिल्ला ( chamomilla ) औषध पर कुछ ऊंचा रखे। मूर्छाके पहले पीठपर से उपकार होता है। कौड़ा रेंगने वा जलधाराको अनुभव करनेसे उसका नये और पुराने मृगौरोगमें कालो हाइड़ियड ऊपरी भाग कपड़ेसे बांध दे और नाइटाइट आव् ( Kali hydriod ) औषध सेवन करानेसे तुरत रोग आमाइल् ( Nitrite of Amyle ) नाम्नौ औषधका अच्छा हो जानेको सम्भावना है। यह औषध तौन वाष्प सुंघाये। इस प्रक्रियासे मूर्छा और आक्षेपका डाइलिउशन् प्रयोग करनेसे विलक्षण फल दिखाई प्रकोप बहुत कुछ कम पड़ सकता है। आपके बाद यदि रोगीको नींद आवे, तो उसे तङ्ग न करना मृगौरोगग्रस्त मनुष्यको अधिक मानसिक चिन्ता चाहिये। अन्यान्य अनेक प्रकार मूर्छारोग और और परिश्रम न करना चाहिये। रातमें अल्प भोजन आक्षेपमें रोगोके मुख और मस्तक पर शीतल जल लेना उचित और अधिक रतिक्रिया मना है। अल्प 159 1 देगा।