पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/६६२

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अप्य-अप्रकर्षित चीत। अभ्य (सं० त्रि.) अपामिदं तत्र साधु संस्कृतं वा तत्त्वविवेक, शिवपुराणतामसत्व-खण्डन, शिवादित्य- यत्। १ जल द्वारा संस्कृत, जलसम्बन्धीय, पानौसे मणिदीपिका, शिवाईतनिर्णय, शिवानन्दलहरी- साफ किया हुवा, आबदार। २ पाने योगा, जो मिल चन्द्रिका, शिवोत्कर्षमञ्जरी, शैवकल्पद्रुम, सिद्धान्त- सके। ३ यज्ञीय कार्यसे सम्बन्ध रखनेवाला। रत्नाकर, हंससन्देशटोका, हरिवंशसारचरित प्रभृति मम्यच् (सं० त्रि०) पहुंचते हुवा, जो भौतर गया बहु संस्कृत ग्रन्थ लिखे हैं। हो, छिपा। २ दोषजित्कार नामक संस्कृत अलङ्कारग्रन्थ रचयिता। पप्यय (सं० पु.) अपि-दूण भावे अच् । १ अप. ३ (साधारण नाम अप्पादीक्षित) कौमुदीप्रकाश गमन, रवानगी। २ नाश, विलय, बरबादौ। ३ पक्ष (व्याकरण) और गौरीमायरमाहात्माचम्प रचयिता। पुच्छ-सन्धि, बाज और दुम निकलनेको जगह। अध्ययन (स. क्लो) १ संयोग, जोड़। २ सम्भोग अध्ययदीक्षित (सं० पु०) द्राविड़देशीय एक प्रसिद्ध साधु । हमबिस्तरो। इन्हें लोग शिवका अवतार समझते थे। यह भरद्वाज अप्यय (सं० अव्य०) निकट, समोप, पास गोत्रीय रङ्गराजाध्वरीन्द्र के पुत्र, धर्मय्य दीक्षितके नज़दीक। गुरु, नौलकण्ठचम्पूरचयिता नारायण-दीक्षितके | अप्यित्त :( स० क्ली) अपां जलानां पित्तमिव । पिटव्य और कर्णाटराजगुरु तातयज्वाके भागिनेय 'चिरप्यित्तम् ।' (अमर) १ अग्नि, आग। चित्रक वृक्ष, रहे। सन् ई० का १५वां शताब्द इनका समय था। इन्होंने प्रतिनिणेय, अधिकरणमाला, आत्मार्पणस्तुति, अप्रकट (सं० त्रि.) न प्रकटम्, विरोधे नज-तत् । पानन्दलहरी-टीका, उपक्रम-पराक्रम (मौमांसा), प्रकाशित भिन्न, गुप्त, अप्रकाशित, पोशीदा, छिपा विजयनगराधिप वैङ्कटके अनुरोधसे कुवलयानन्द हुवा, जो जाहिर न हो। (अलङ्कार), चतुर्मतसारसंग्रह या नयमणिमञ्जरी अप्रकटित, अप्रकट देखो। (वेदान्त ), चन्द्रकलास्तुति, चित्रमीमांसा (अलङ्कार), अप्रकम्प (सं० पु.) प्र-कपि चलने भावे घज प्रकम्पः जयोसासविधि, तत्त्वमुक्तावली (वेदान्त), तप्तमुद्रा न प्रकम्पः, अभावे नज-तत्। १ चलनाभाव, बेहर- खण्डन, तिङन्तशेषसंग्रह (व्याकरण), दशकुमार कतो। (त्रि०) नास्ति प्रकम्यो यस्य, न-बहुव्री०। चरितसंग्रह, धर्ममीमांसा-परिभाषा, नयमयूख २ चलनहीन. कम्पशून्य, बेहरकत, न हिलने या मालिका, नामसंग्रहमाला (कोष), पञ्चग्रन्थी (वेदान्त), डुलनेवाला। ३ स्थायी, संबद्ध, मज़बूत, टिकाऊ। पञ्चरत्नस्तव, पञ्चस्वराविकृति (ज्योतिः), पादुकासहस्र ४ अप्रदत्त उत्तर, जिसका जवाब न दिया गया हो। टीका, प्रबोधचन्द्रोदयटीका, ब्रह्मतकस्तव और तद्दि अप्रकम्पता (सं० स्त्रो०) दृढ़ता, स्थायित्व, मजबूती, वरण, भक्तिशतक, भारततात्पर्यसंग्रह, मध्वमत पायदा । खण्डन या मध्वमुखमर्दन और तट्टीका, यादवाभ्युदय- अप्रकर (सं० त्रि०) उत्तम रूपसे कार्य न करते टोका, रवनयपरीक्षा, रसिकरञ्जिनी नानी कुवलया हुवा, जो अच्छीतरह काम न चलाता हो। नन्दको टीका, रामानुजमतखण्डन, रामायणतात्पर्य- | अप्रकरण (स' क्लो०) अप्रधान विषय, खास मज.. संग्रह, रामायणभारतसारसंग्रह, रामायणसारस्तव, मूसे ताल्लुक न रखनेवाली बात । वरदराजशतक, वसुमतौचित्रसेनाविलासनाटक, वाद: अप्रकर्ष (सं० पु०) प्रक्ष्यते, प्र-कृष भावे घञ् प्रकर्षः, नक्षत्रमालिका (वेदान्त), विधिरसायन और तट्टीका, न प्रकर्षः, विराधे नत्र-तत्। प्रकर्षाभाव, श्रेष्ठताको विष्णुतत्त्वरहस्य, वीरशैव, वृत्तिवार्तिक वेदान्तकल्पतरु- शून्यता, जोरका जवाल, बड़ाईका न रहना। (त्रि.) परिमल, वैरागधशतक, शान्तिरूव, शारीरकन्याय नज-बहुव्री० । २ प्रकर्षशून्य, छोटा, नाचीज़। रक्षामणि, शास्त्रसिद्धान्तलेशसंग्रह, शिवकर्णामृत, शिव-'अप्रकर्षित (सं० वि०) १ अतिशय भिन्न, जो ज्यादा