पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/६६७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अप्रतिप्रश्रब्ध-अप्रतिरूप अप्रतिप्रश्रब्ध (संत्रि०) अक्षय, जिसको लियाकत दिखा सकनेवाला, जो किसीके नाराज होनेपर खुद कम न पड़े। (दिव्यावदान ) उसके बदले गुस्मा न दिखाता हो। अप्रतिबद्ध (स.त्रि०) न प्रतिबद्धम्, नज्-तत् । अप्रतिमा (सं० स्त्री०) प्रतिमायाः प्रतिकृतेः दन्त- अनिरुद्ध, उच्छृङ्गल, बंधा न हुवा, जो मनमानी बन्धस्य गजानुकृतेर्वा अभावः, नञ्तत्। प्रतिमा, चलाता हो। उपमा, दन्तबद्ध वा हस्तिके सदृशका अभाव, जिस अप्रतिबन्ध (सं. पु.) १ प्रतिबन्धका अभाव, रोक हालतमें शक्ल, शबाहत वगैरहका जोड़ न मिले। का न रहना। (त्रि.) २ दबावसे अलग, जिसपर अप्रतिमान ( स० त्रि.) नास्ति प्रतिमान प्रति- कोई जोर दे न सके। कृतियस्य, नञ्-बहुव्री०। १ प्रतिकृतिरहित, प्रति- अप्रतिबल (सं. त्रि.) नास्ति प्रतिबलः प्रतिपक्षो निधिविहीन, प्रतिविम्बशून्य, मुकाबिला न रखने- यस्य, नज-बहुव्री०। अत्यन्त प्रबल, विपक्षश ना, वाला, जिसका जोड़ न मिले। निहायत ताकतवर, जिसकी कोई बराबरी न देखाये । अप्रतियत्न ( स० त्रि.) नास्ति प्रतियत्नं यत्र । अप्रतिबोधवत् (सं० त्रि०) निज विवेकज्ञानरहित, १ अकृत्रिम, स्वाभाविक, कुदरतो, जो बनावटी न हो। जिसे अपना खयाल न रहे। (पु०) २ स्वाभाविक स्थिति, अकृत्रिम अवस्था, अप्रतिब्रुवत् (वै• त्रि०) विरुद्ध न बोलते हुवा, जो कुदरतो हालत। विपक्ष न लेता हो, खिलाफ बात न करनेवाला। अप्रतियोगिन् (सं• त्रि०) नास्ति प्रतियोगी सदृशो अप्रतिभ (स.नि.) नास्ति प्रतिभा नवनवोन्मेष यस्य, नञ् -बहुव्री। १ अनुपम, असदृश, बेजोड़, शालिनी प्रज्ञा यस्य। १ अप्रतुत्पन्नमति, उपस्थित अनोखा। नज-तत्। २ समकक्षश न्य, जिसका बुद्धिविहीन, जो जहीन या हाजिर जबाब न हो। कोई दुश्मन न रहे। २ प्रतिभाशून्य, बेरुवाब। ३ स्फ तिरहित, जिसमें | अप्रतिरथ (स० त्रि०) प्रतिकूलो रथो यस्य प्रतिरथः, तेजी न देख पड़े। ४ लज्जित, अधृष्ट, शर्मीला, जो नज-बहुव्री. १ प्रतियोधशून्य, विपक्षविहीन, बेशर्म न हो। ५ अप्रस्तुत, गैरहाजि.र, तैयार न जिसके सामने रथपर चढ़ कोई लड़ न सके । (क्लो०) रहनेवाला। नास्ति प्रतिरथो मङ्गल जनने तुल्यो यस्य । अप्रतिभा (सं० स्त्री०) नास्ति प्रतिभा यस्याः । समान मङ्गलजनक कोई वस्तु न रहे। ३ यात्रा, १ प्रतिभाशून्य वनिता, लज्जिता स्त्री, जो औरत शमोती सफर। ४ सामवेदका अवयव-विशेष । ५ मङ्गल, हो। न प्रतिभा, अभावे नञ्-तत् । २ प्रतिभा, भलाई। ६ पुरुवंशके राजविशेष । यह रन्तिनाथके प्रगल्भा वा स्फूर्तिका अभाव, शर्मिन्दगी। पुत्र रहे। (विष्णुपुराण) का अभावरूप निग्रह-विशेष। वादी और प्रतिवादी- अप्रतिरव (सं० त्रि.) अनुकूलो रवः प्रतिरवः का अभियोग आनेपर वादी जो दोष लगाता, उसके प्रतिवाक्यं नास्ति यत्र, नञ्-बहुव्री० । अविरोधभोग, खण्डनका उपाय समझ सकते भी विचारफलको जिसके लेने देने में तकरार न बढ़े। मिताक्षरामें दुश्चिन्तासे वादीको तत्कालीन स्फ र्तिका अभाव लिखा, कि बीस वर्ष पर्यन्त कोई विषय अप्रतिरव अप्रतिभा कहलाता है। अर्थात् अविरोधभोग रहनेसे पूर्व स्वामीको उसमें अप्रतिम (सं० वि०) नास्ति प्रतिमा सादृश्यं प्रति खत्वहानि होती है। च्छाया प्रतिनिधिर्वा यस्य, नञ्-बहुव्री। अनुपम, "अप्रतिरव' विशति वर्षापभोगनिमित्ता हानिर्भवति ।" (मिताचरा) असदृश, प्रतिनिधिरहित, लासानी, अनोखा, बेजोड़, अप्रतिरूप (सं. त्रि.) नास्ति प्रतिरूपः तुल्यरूपो जिसकी बराबरी न हो सके। यस्य, नञ्-बहुव्री०। असदृश, तुल्यरूप न रखनेवाला, अप्रतिमन्यूयमान (वै• त्रि०) अन्य पर क्रोध न लासानी, बेजोड़, जिसकी शक्लका दूसरा न मिले। 166 २ जिसके ३ स्फ ति-