पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/७२७

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०२० बृहस्पतिका उदय अथवा अस्त होनेसे वह चैत्र वर्ष कहलाता है। ७।-विशाखा किम्बा अनुराधा इन किसी नक्षत्र में बृहस्पतिका उदय अथवा अस्त होनेसे वह वैशाख वर्षे होगा। ८।-जाष्ठा किम्बा मूला इन किसी नक्षत्रमें बृहस्पतिका उदय अथवा अस्त होनेसे वह जेष्ठ वर्ष होता है। ।-पूर्वाषाढ़ा किम्बा उत्तराषाढ़ा इन किसी नक्षत्रमें बृहस्पतिका उदय अथवा अस्त होनेसे वह आषाढ़ वर्ष कहा जाता है। १०।-श्रवणा किम्बा धनिष्ठा इन किसी नक्षत्रमें बृहस्पतिका उदय अथवा अस्त होनेसे उसका नाम श्रावण वर्ष होता है। ११।-शतभिषा, पूर्वभाद्रपद किम्बा उत्तरभाद्रपद इन किसी नक्षत्रमें बृहस्पतिका उदय अथवा अस्त होनेसे वह भाद्रवर्ष पुकारा जायेगा। १२।-रेवती, अश्विनी किम्बा भरणी इन किसी नक्षत्र में बृहस्पतिका उदय अथवा अस्त होनेसे वह आश्विन वर्ष होता है। सौर-इस देशके प्राचीन गणनानुसार ३६५ दिनोंका एक सौर वर्ष होता है। किन्तु इसमें मतभेद है। सावन-सूर्यके एक उदयकालसे दूसरे उदयकाल तक एक सावन दिन होता है। सुतरां ३६१ सौर दिनोंका एक सावन वर्ष बनेगा। चान्द्र-चन्द्रको दैनिक गति १३अंश २० कला और सूर्यको दैनिक गति १३ अंश ५८ कला ८ विकला १० अनुकला है। प्रातःकालमें चन्द्रका संक्रमण होनेसे ३५४ दिन १८ दण्डका एक चान्द्र वर्ष होगा। इसौतरह रातमें संक्रमण लगनेसे ३५५ दिनका चान्द्र वर्ष होता है। नाक्षत्र-३६० नाक्षत्र दिनोंका नाक्षत्र सावन वर्ष बनता है। हमारे पुराणादिके. मतानुसार जलमग्न पृथ्वी उधार करनेको विष्णुने .. खेतवराहमूर्ति धारण को थी। ज्योतिविदोंके गणनानुसार (आज १८३७ शकाब्दमें ) १८७२८४८०१६ वर्ष विष्णुको वराह अवतार धारण किये बीते । एवं १८५५८८५०१६ वर्ष हुए वराहरूपी भगवान्ने दन्तद्वारा पृथ्वीका उद्दार किया था। खेतवराह-कल्पाब्दका परिमाण कुल ४३२००००००० वर्ष है। वैशाख मास शुक्लपक्षको अक्षय-तृतीया तिथि रविवारको सत्ययुगकी उत्पत्ति हुयी थो। सत्ययुगका परिमाण १७२८००० वर्ष है। कार्तिक मास शुक्ल- पक्षकी नवमौ तिथि सोमवारको त्रेतायुग उत्पन्न हुआ। त्रेतायुगका परिमाण १२८६००० वर्ष है। भाद्रमास कृष्णपक्षको त्रयोदशी तिथि शुक्रवार- को द्वापरयुग लगा था। हापरयुगका परिमाण ८६४००० वर्ष है। माघमासको पूर्णिमा तिथि शुक्रवारको कलियुगकी उत्पत्ति हुयी। कलियुग- का परिमाण ४३२००० वर्ष है। मनुसंहिताके मतसे हमारे एक वर्षमें देवताओं- का एक अहोरात्र होता है। चार हजारका सत्य, तीन हजारका वेता, दो हजारका द्वापर और एक हज़ार दैव वत्सरका कलियुग है। इन चार युगोंके बारह हजार गुणसे देवताओंका एक युग बनता है। दैव युगके दो हजार गुणसे ब्रह्माका अहोरात्र निकलेगा। राजतरङ्गिणीके मतसे कलियुग ६५३ वर्ष बीत जानेपर कुरुपाण्डवोंका प्रादुर्भाव हुआ था। अतएव वर्तमान कल्यब्द ५०१६-६५३-४३६३ वर्ष हुए युधिष्ठिराब्द चल पड़ा। पहले इन्द्रप्रस्थ और काश्मीर आदि अनेक देशमें यह अब्द लगता था। अब्द वा संवत्सर पञ्चविध होता है, यथा- संवत्सर, परीवत्सर, इदावत्सर, अनुवत्सर और उदावत्सर। "शकान्दात् पञ्चभिः शेषात् समाद्यादिषु वत्सराः । संपरौदानुपूर्वाश्च तथोदापूर्वका मता ॥ संवत्सर तथा दानं तिलस्य च महाफलम् ॥” (विश्वधर्मोत्तर) संवत्सरसे संवत् शब्द हुआ है। संवत् कहनेसे साधारणतः विक्रम संवत् समझ पड़ता है, परन्तु बहुत पहले इस भारतवर्षमें अनेक प्रकारके संवत् प्रचलित 1