पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/७२९

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७२२ अब्द पायेंगे। यह अब्द प्रचलित था। पुराने काग़ज़ पत्रमें इसे साधारण संवत्सर पत्रिकामें सप्तर्षि मानको गणना यह अब्द लक्ष्मणसेनके अतीताब्द नामसे करते हैं। साहेबरामके राजतरङ्गिणी-संग्रह में देखा भी पहले प्रचलित रहा, सन् १२०० ई० में आरम्भ जाता है- "तवाद्यशाके १७८६ कलिगते ४६६५ सप्तर्षि चारानुमतेन संवत् ४६५०।" हुआ था। उल्लिखित भिन्न भिन्न संवत् वा अब्दके अतिरिक्त शकाब्द १७८४ = ४८६५ कल्यब्द = ४८४. लौकि- पाश्चात्य देशमें और भी अब्द प्रचलित थे। इनमें काब्द = १८६४ ईस्वी। ४१ तुर्क वा कनस्तुन्तिन् अब्द (Constantinople ऐसे स्थलमें ईसा-मसोहके जन्मसे ३०७६ पूर्व Era ) जगत्को सृष्टिसे गिना जाता है। खुष्टानोंके | सप्तर्षि -संवत् एव ई०से ३१०१ अब्द पहले कल्यब्दका ग्रीकचर्च में अबतक यही अब्द प्रचलित है। वह लोग प्रारम्भ हुआ। ईसा मसीहके जन्मसे ५५०० वर्ष पहले इस अब्दका कल्हणको राजतरङ्गिणौसे भी उक्त मत समर्थित प्रारम्भ मानते हैं। होता है- ४२ नबोनसर अब्द (Era of Nabonasar ) ७४६ "लौकिकैऽब्द चतुर्विशे शक्रकालस्य सांप्रतम् । ईको २८वीं फरवरीसे प्रारम्भ हुआ है। सप्तत्यात्यधिक यातं सहस्रं परिवत्सरः ॥" ४३ चौनाब्द-२३५७ ई०से पहले आरम्भ । अर्थात् लौकिकाब्दका २४वां वर्ष शककालके ४४ रोमकाब्द (Roman Era)-रोमनगरके प्रतिष्ठा. १०७० वर्षमें पड़ा है। लौकिक वा सप्तर्षिमान सर्वत्र काल ७५२ ई०से पहले इस अब्दका प्रारम्भ माना शताब्द मानकर गिना जाता है। कल्हणने राज- जाता है। तरङ्गिणीमें सर्वत्र ऐसा ही भाव ग्रहण किया है। ४५ ओलिम्पियाद-यह ई०से ७८६ अब्द पूर्व १ली पहले कहा जा चुका है, कि वृद्धगर्ग और पुराण- जुलाईको प्रारम्भ हुआ था। का मत स्वतन्त्र है। वराहमिहिरने वृद्धगर्गका मत उद्धृत संवत्सरोंमें कई प्रधान-प्रधान संवत्का संक्षिप्त इसतरह उद्धृत किया है- परिचय दिया जाता है "सैकावलौव राजति ससितीत्पलमालिनी सहासव । सप्तर्षि वा लौकिक अब्द। नाथववीव च दिग्यः कौवेरी सप्तभिमुनिभिः ॥ १ ध्रुवनायकोपदेशान्नरिनोवोत्तरा धमनिय पञ्जाबके पहाड़ी प्रदेश और काश्मीरमें अबतक यैश्चारमहं तेषां कथयिष्ये वृद्धगर्गमतात् ॥ २ यही संवत् चलता है। पहाड़ी प्रदेशमें प्रचलित भासन् मघासु मुनयः शासति पृथ्वौं युधिष्ठिर नृपतौ । रहनेके कारण लोग इसे “पहाड़ी संवत्" कहते हैं। षड़ दिक्पञ्चद्दियुतः शककालस्तस्य राज्ञश्च ॥ १ इसका दूसरा साधारण नाम "लोक-काल" है। इस एककस्मिन्न चे शतं शतं ते चरन्ति वर्षाणाम् । संवत्के आरम्भ-विषयमें दो मत प्रचलित हैं, वराह- प्रागुत्तरतचे ते सदोदयन्ते ससाध्वीकाः॥" ४ मिहिर और उनके अनुवर्ती ज्योतिर्विद्गणका मत (बहत्संहिता १३ प.) एवं वृद्धगर्ग और पुराणका मत। वराहमिहिरके खेतकमलको मालाधारिणीको तरह उत्तरदिक् अनुवर्ती ज्योतिर्विद्गणने सप्तर्षि-संवत्के प्रारम्भ- जिस सप्तर्षिमण्डलद्वारा एकावलौहारभूषिता सहास्य- सम्बन्धमें नीचे लिखा हुआ प्राचीन श्लोक उद्धृत वदना और नाथवती बतायो जाती और ध्र वनक्षत्र- किया है- रूप नायकके उपदेशसे इधर उधर घूमनेवाले जिस "कलगते: सायकनेववर्ष : सप्तर्षि वस्विदिक् प्रयाताः। सप्तर्षिगणके साथ बराबर नृत्य करती बोध होती लोके हि संवत्सरपविकाया सप्तर्षि मानं प्रवदन्ति सन्तः ॥" है, वृद्धगर्गके मतानुसार. उसकी गति कहते हैं। कलिके सायकनेत्र अर्थात् २५ वर्ष बीत जाने पर राजा युधिष्ठिर जिस समय पृथ्वीका शासन करते, सप्तर्षि स्वर्ग चले जाते हैं। (उसी समयसे ) सर्व उस समय मुनिगण मघानक्षत्रमें थे। शकाब्दके ।