पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/७५०

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अभयकृत्-अभयनृसिंहरस ७४३ अभयकृत् (सं० त्रि०) अभय त्राणं करोति ; क ब्राह्मणको मुसीबतसे छुटकारा पाने के लिये दी जाये। क्विप, ६.तत् । १ त्राणकर्ता, अभयदाता, खौफ. शूद्रादिके निकटसे भी ब्राह्मण अभयदक्षिणा ले सकता छुड़ाने या पनाह देनेवाला। नज-तत् । २ अभयङ्कर, है, उसमें अप्रतिग्रह-ग्रहणका दोष नहीं लगता। सौम्य, खौफ.से खाली, जी डरावना न हो। “सर्वतः प्रतिग्रहयौयात् मध्वथाभयदक्षिणाम् ।” ( मनु ४।२४७ ) अभयगिरि-विहारप्रान्तका कोई प्राचीन स्थान। यह अथवा, अभयं दक्षिणेव देवत्वात् वा अभयमेव अभयपुर नामसे भी प्रसिद्ध है। दक्षिणा रूपककर्मधा। २ अभयरूप दान, अभय- अभयगिरिवासिन्–कात्यायनके एक शिष्य । दक्षिणा। अभयगिरिविहार-अभयगिरिपर बना हुआ बौद्ध "अभयदक्षिणा अभयदानम्" (स्मात रघुनन्दन) धर्मक्षेत्रविशेष। अभयदत्त-मालवपति यशोधर्म विष्णुवर्धनके कोई विच- अभयङ्कर (संत्रि०) भय-व-खच् भयङ्करम्. विरोधे क्षण मन्त्री। नज-तत्। “भयशब्देन तदन्तविधिः अभयकरः ।" (भट्टीजि ) भय अभयदा (स. स्त्री०) भूम्यामलकी, तलिसपत्रौ । ङ्करभिन्त्र, सौम्य, जी खौफनाक न हो, सीधा । अभयदान (सं० क्ली) वाण देने का वचन, हिफाजत अभयङ्गत् (वै० स्त्री०) अभयं कुरुतः, क-क्किए वेदे रखने का इकरार। पृषोदरादित्वात् मुमागमः। द्युलोक एवं पृथिवी, अभयदेवसूरि-काई प्रमिद जनाचार्य और टीकाकार। आस्मान् और जमीन। इन्होंने 'निगोदषति शिका', 'पुङ्गलषट्त्रिं शिका', अभयचन्द्र-१ राजकुलगच्छसंभूत कोई प्रसिद्ध जैना 'जयतिपुराणस्तोत्र' 'नवतत्त्वभाष्य', 'सत्तरिभाष्य' एवं चार्य। इनके शिलालेखसे मालम पड़ता, कि यह 'ज्ञाताधर्मकथावृत्ति' प्रभृति ग्रन्थ बनाये थे। ज्ञाता- ३० लौकिकाब्द या सन् ८५४ ई में विद्यमान रहे। धर्मकथावृत्तिको टोकामें अभयदेवने इसतरह आत्म- २ जैन साधु विशेष। इन्होंने 'प्रक्रियासंग्रह' शाक परिचय दिया है,-राजसन्मानित और शास्त्रपरायण टायन-व्याकरणको टोका बनायौ थी। पल्लीवालवंशमें नेमड़ने जन्म लिया था। इन्हों नेमड़के अभयजात (सं० पु.) अभयाय जातः । गर्गादिगणके ज्ये ठपुत्र राहड़, राहड़के पुत्र सहदेव और सहदेवके मध्य पठित मुनिविशेष । (स्त्री०) अभयजाती। पुत्र जयदेव रहे। जयदेवके दो स्त्री थौं,-बड़ीका 'अभयडिण्डिम (सं० पु.) अभयाय स्खयोधभया लक्ष्मी और छोटीका नाम नायिकी रहा। नायिकौके भावाय डिण्डिमः। अपने योहाकी अभय देनेवाला गर्भसे कितने ही लड़के हुए थे। उनमें ज्येष्ठ धनेश्वर युद्धका ढक्का विशेष, लड़ाईका ढोल । रहे। धनेश्वरके औरस और उनकी पत्नी खिण्डौके अभयतिलकगणि-जैन साधु-विशेष । सन् १२५५ ई० में गर्भसे अरसिंह, लाहड़ और अभयकुमारने जन्म लिया इन्होंने हेमचन्द्र नामक दूसरे जैन साधु लिखित था। यही अभयकुमार अभयदेव नामसे प्रसिद्ध हो गुजरातवाले चालुकयों या सोलक्यिोंका इतिहास गये। सन् ई० के १२वें शताब्दसे पहले यह विद्यमान फिर बनाकर पूरे उतारा था। थे। २ वृहत्-खरतरगच्छके ४१वें पट्टाचार्य। इनके अभयद (स.वि.) अभयं ददाति ; दा-क, ६-तत्। पिताका प्रेमदेव और माताका नाम धनदेवी रहा। १त्राणकर्ता, मुहाफिज़ ख़ौफ छुड़ा देनेवाला। (पु.) इन्होंने धारानगरमें जम्म लिया और तीयसे एकादश २ विष्णु। ३ जैन अर्हत् विशेष। (हेम) ४ नृपति तक जेनाङ्गको टीका लिखी थी। विशेष । यह मनस्यके पुत्र और सुधन्वाके पिता रहे। अभयनन्दी-जैनेन्द्रव्याकरणके टीकाकार। अभयदक्षिणा (सं० स्त्री०) अभयाय त्राणाय देया अभयसिंहरस (सं० पु.) वैद्यकरस विशेष । यह दक्षिणा, मध्यपदलोपी कर्मधा० । १ विपदसे परित्राण रस प्रतीसार और ग्रहणौ रोगके लिये हितकर होता पाने के लिये ब्राह्मणको धनादिका दान, जी दौलत है। मात्रा एक गुठे की रहेगी। अनुपानमें जीरक-