पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/७६२

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. दाश्त । अभितोमुख अभिधा ७५५ अभितोमुख (सं• त्रि०) अभितो मुखमस्य, बहुव्री । अभिद्रव (सं० पु.) अभि-ट्ठ-अप् । वेगका गमन, सकल दिक्को मुख रखनेवाला, जिसका मुंह चारो जोरको चाल। ओरको रहे। अभिद्रवण (सं० ली.) अभि-ट्ठ-लुइट् । अभिद्रव देखो। अभितोरात्रम् (सं० अव्य०) रात्रिके निकट, पास, अभिद्रा (सं० स्त्री०) अभि द्रा-अङ । १ पलायन, अथवा अन्तमें, जिस वक्त रात शुरू या खतम हुयी हो। भागाभागो। २ अभिध्यारूप स्मृति, लालचको याद- अभितोस्थि (सं० त्रि०) अस्थिसे परिवेष्टित, हड्डीसे घिरा हुआ। अभिद्रुक, अभिद्रुह् देखो। अभित्ति (सं० स्त्री० ) अखण्डता, टुकड़े-टुकड़े न अभिद्रुग्ध (स० वि०) आहत, आक्रान्त, जखमी, होने की हालत । सताया हुआ। अभिदक्षिण (सं. अव्य०) दक्षिण ओर, दाहने। अभिद्रुत (सं० त्रि.) आक्रान्त, पलायमान, हमला अभिदधत् ( स० वि० ) व्याख्या करते हुआ, जो बयान् किया गया, जो भागा हुमा हो। कर रहा हो। अभिद्रुत्य (सं• अव्य.) आक्रमण करके, हमला- अभिदर्शन (सं० ली.) आभिमुख्य न दर्शनम्, अभि मारकर। दृश् भावे लुट् । १ आभिमुख्यका दर्शन, सामनेको अभिगृह (सं• त्रि०) अभि द्रुञ्चति, अभि-द्रुह-क्किए । मुलाकात। अपकारक, चोट पहुंचानेवाला, धोकेबाज, जो दुश्मनी अभिदष्ट (सं त्रि०) चर्वित, भंभोड़ा हुआ, जो दांतसे रखता हो। काटा गया हो। अभिद्रुह्यमाण (सं० त्रि.) आहत अथवा पीड़ित अभिदापन (सं० ली) मर्दन, पादाघात, पादाक्रमण, किया जाते हुआ, जो मारा या सताया जा रहा हो। प्रमथन, पायमाली, ठोकर, पैरके नीचेका कुचलना। अभिद्रोह (सं० पु.) अभि-गृह-घञ् । आक्रोश, अभिदिग्ध (संत्रि०) लिप्त, प्रता, विषदिग्ध, जहरसे अनिष्टचिन्तन, अपकार, सदमेका पहचाना, चोटका बेहरमी। आलूदा। अभिदिप्सु, अभिधिप्सु (वै० वि०) अभि-दम्भ-सन-उ | अभिधर्म (स पु०) बौद्धमतानुसार-ध्रुव सत्य, वैदिके न दस्य धः, लौकिके तु दस्य ध एव। अभिभवन सिद्धान्त, जिस सचाई में कोई फरक न पड़े, अकीदा, की इच्छासे युक्त, पराभव चाहनेवाला, जी धाका वसूल। प्राचीन बौक्षशास्त्र त्रिपिटकमें सूत्र, विनय देने की खाहिश रखता हो, धोकेबाज, दुश्मनौसे भरा -और अभिधर्म प्रसिद्ध है। विपिटक और बौद्ध देखो। इस विषयपर 'अभिधर्म-कोष' और 'अभिधर्म-पिटक' हुधा। अभिदिष्ट (सं० वि०) सङ्केत किया गया, जिसपर नामक बौद्धोंके दो अन्य मिलते हैं। अभिधर्मकोषमें अभिधर्मका लक्षण इसतरह निर्दिष्ट हुआ है- इशारा हो चुके, बताया हुआ। "प्रचामलासानुचराभिधर्मः।" इति। 'अभिमुखो धर्मः पमिधर्भः । अभिदुष्ट (सं० त्रि०) भ्रष्ट, दूषित, कलंकित, अप- ... नवयं धर्माबन्धलक्षणं किं तईि बचा? स्वयमेवाभिमुख्यां शास्त्रा- वित्र, बिगड़ा हुआ, ऐबदार, मैला, नापाक । खोपि सातिकोऽभिधर्मः प्रापचायाभिद्योतनाय वा निर्वाण धमलच अभिदूति (सं० अव्य.) दूतोको ओर, जनाना हर- वा प्रत्युपनिषत् भावना भमुखः किमझ पारमार्थिक इत्यतस्तत्पुरुषसमास- कारको तर्फ । नाभिधर्म इति सिद्ध भवति। इति पभिधर्मकोषव्याखार। अभिदूषित (सं० त्रि.) आहत, जखमो, चोट खाये हुआ। अभिधर्षण (सं• क्लो०) आभिमुखन घर्षणम्, अमि- अभियु (स त्रि.) १ आकाशको पोर सृष्टि लगाये धृष भावे लुपट्। निष्योड़न, पास्कालन, भूतादिका हुआ, जो पासमानको तर्फ शिस्त बांधे हो। (पु.) आवेश, गुस्ताखी, घमण्ड, मार-पौट, जिनका जोर । २ अर्धमास, पक्ष, प्राधा महीना। अभिधा : (सं. स्त्री०) अभि-धा भावे अंङ । १ कथन, देना, जुल्म,