पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/११२

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कर्कट-कर्कटक १९३ . विशिष्ट कहा है। वरदेशके प्रत्येक पार्समें खासे जोड़ सकनेवाला) और वायुपित्तनायक है। कृष्ण न्द्रिय वैटित है। कर्कट अर्थात् काला केकड़ा बदकारक, ईषत् उष्ण कर्कट पृथिवीके नाना स्थानमें रहता है। फिर और वायुनाशक होता है। यह कयो प्रकारका है। समुद्र में रहनेवाचा कर्कट ३ करायची, करकरा, एक चिड़िया । ४ पद्ममूल, स्वभावतः बहुत बड़ा होता है। किन्तु जी नदीमें भसोड़, कंवलकी मोटी जड़। ५ तुम्बी, लौकी। वास करता, वह सामुद्रिक कर्कटको अपेक्षा क्षुद्र ६ मेषादि हादय राधि चतुर्थ राथि। यह राशि पड़ता है। फिर जलाशयमें रहनेवाला नदीके कर्कट पुनर्वसु नक्षत्रके शेष पादसे पुष्था और अश्लेषा नक्षत्र से भी छोटा निकलता है। सकल प्रकार कर्कटका तक रहता है। इसके देवता कुलीराकृति हैं। उनका पृष्ठावरण देखने में समान नहीं लगता। देश. पृष्ठदेश उक्त होता है। वह खेतवर्ण, कफप्रकृति, भेद और जलवायुके प्रवस्थाभेदसे नाना स्थानपर निग्ध, जलचर, विप्रवर्ण, उत्तर दिक्पाल, बहुस्त्रीमत कयौ पाकारका कर्कट होता है। यह अण्डन जीव और बहु सन्तानशाली हैं। कर्कट राशिमें जन्म लेनेसे है। प्रथमावस्था पर माळवक्षमें कर्कट पति छंद्र मनुष्य कपटचित्त, मृदुभाषी, मन्त्रणाकुशन, प्रवासी डिम्बाकार रहता है। समय पानेसे डिम्ब फटनेपर पौर पऋणी निकलता है। फिर जन्मकालीन चन्द्र यह निकल पड़ता है। उस अवस्थामें इसको किसी इस राथिमें रहनसे मानव नृत्यगीतादि बहु कला- प्रकारका कीड़ा समझनेसे धम उत्पन्न होता है। मिन, निर्मक्षत्ति, कम, सुगन्धप्रिय, जलकेलिप्रिय, यह डिम्बसे निकलते ही जलमें तैरने लगता है। धनवान्, वुधिमान् पौर दाता होता है। जो कर्कट उस समय इसको अनेक विपद मलना पड़ता लग्नमें जन्म ग्रहण करता, वह भोगौ, सर्वजनप्रिय, है। जलचर नीव अपना पाहार समझ सद्यो मिष्टानपानभोजी पौर पामोयप्रिय रहता है। नात कर्कट पकड़कर खा जाते हैं। यह जितना ७ सपैविशेष, एक सांप। ८ कलश, ही बढ़ता, उतना ही इसका रूप भी बदलता है। - कीलक, कोल। १० कण्टक, कांटा। प्रथमावस्थासे पांच प्रकार रूप बदलनेपर प्रवत विशेष, एक बीमारी (Cancer .)। यह अर्बदक्षत- कर्कट रूप देख पड़ता है। रोग असाध्य होता है। ·१२ तुलादण्डका. बाभुम्न यह समुद्के प्रतल सलिल, जलके तट पथवा प्रान्त, तराजको डण्डोका टेढ़ा सिरा। इसी पक्ष- सलिल निकटस्थ पर्वतके गर्तम रहता है। फिर उस डेको रस्सी बंधती है। १३ मण्डनको जीवा, दाय- वनमें भी कर्कट गर्त बना वास करता, जहां समुद्र का निस्फ कुतर। १४ सालमनीतच, मेमरका पेड़। अथवा नदीका जल समय-समय पहुंचता है। १५ विखव, वैतका पेड़। १६.कर्कटङ्ग, ककड़ा- दा-एक जातिको छोड़ सकल प्रकार कर्कट पद द्वारा सौंगी। १७ सईमा । १८ नृत्यहस्तकविशेष, नाचको तैर नहीं सकता, वरं स्थलपर घूमा करता है। एक क्रिया-। इसमें हस्तहयको अङ्गुलि बाध एवं इसके बराबर झगड़ाल पौर मुक्खड़ जलचर जीव अभ्यन्तर रूपसे मिला चटकायी जाती हैं। यह दूसरा नहीं होता। बहुत कर्कट एकत्र होते ही पालस्यके भावकी बताता है। धुच पक्ष पड़ता है। बलवान् विजय पाता और अति- कर्कटक (सं० पु० क्लो०) कर्कट एव स्वार्थे कन। क्षौण मारा जाता है। शीतकालको यह गभौर जलमें १ कुचौर, केकड़ा। २ ककटराथि। ३ वृक्षविशेष, रहता, फिर ग्रीम लगनेपर तटके निकट आ पहुंचता एक पेड़। ४ काण्ड भन्न नामक अस्थिभङ्गविशेष, है। पृथिवीका सकल प्रकार कर्केट मानवजातिके हड्डी टूटनेको बीमारी। ५ विषविशेष, एक जहर। खाने बायक होता है। राजनिघण्टु के मतसे यह यह त्रयोदशविध स्थावरकन्द विषम अन्यतम है। भसमूत्रपरिष्कारक, भम्नसन्धानकारी (भासानको ६ कोलक, कोला। यह केकड़ेके पछेको माति Yol. IV. 29 घड़ा। ११ रोग-