पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/११९

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१२० कर्ण गलकोषसे निकल यूष्ट्रिकियान ननी द्वारा कर्ण मण्ड. पादधारणी:अस्थि · अखारोहीक. पदं रखने की लमें पहुंची है। रकाव-जैसा होता है। वह मस्तक, ग्रोवा, दो शाखा ढक्काम तीन क्षुद्रास्थि होते हैं। वह अपने आका भोर भूमि रखता है। उसके कोणाकार उच्चशिसे रानुसार मुद्रास्थि (Malleus ), पताकास्थि एश सूक्ष्म पेशी (Stapedius) निकल डिम्बाकार गवा- (Incus; और पादधारण्यस्थि कहाते हैं। ढकाकी चके पश्चाभाग में ग्रोवदिशपर सत्रिवेशित है। ग्रोवा- मिली उक्त गहरके वशि:-प्राचौर रूपसे सङ्गठित है। देशका पंचादभाग खींचनेसे वह कर्णविवरके हारको वह डिम्बाकृति देख पड़ती है। उसी झिमौके सिकोड़ती है। ऊपरी और अधोदिक्के बीचोंबीच क्षुद्र थेणीका प्रथम पहले लिखा-यूष्ट्रेकियान नखोसे ढक्काका गवर अस्थि मुहरको मुठियाकै प्राकर संलिप्त है। उसीकी खुला है। ट्रेकियान एक शारीरविव रहे। उन्होंने मुनरास्थि कहते है। पहले उक्त नलीको आविष्कार किया था। इससे ढका गह्वरमें कर्णान्तरके साथ नव रखनेको उसको भी यूष्ट्रेकियान कहते हैं। वह प्रायः डेढ़ दो गवाक्ष है। वह कोमल झिल्लीसे पाबद्ध रहते हैं। इञ्च लम्बी है। अल्प भाग अस्थिमय और अधिकांश उनमें एकको डिम्बाकार (Fenestra ovalis) और उपास्थियुक्त होता है। उक्ष नलीके मध्यसे वायु भपरकी गोठ गवाक्ष (Fenestra rotunda) कहते चल ढकाके अपर और वीच पहुंचता है। उसी हैं। प्रथम कर्ण विवरके प्रवेशद्वारका प्रदर्शक है। पथसे गह्वरस्थ सञ्चित ग्लेमादि भी निकलता है। वह अपनी झिल्लीके जरिये क्षुद्र ग्रेगोके अन्तरास्थि कर्णाभ्यन्तरस्थ विवर यवणेन्द्रियका मूल अंश है। (पादधारयस्थि )से दृढ़ रूपमें संयुक्त है। द्वितीय यहां कर्णेन्द्रिय वायुके स्पन्दननक सूत्र पड़े हैं। यह गवाक्ष कर्ण विवर के शम्बुकाकार गहर (Cochlea)को तीन अंशमें विभक्त है-विवरहार- ( Vestibule ), पोरं अवस्थित है। अर्धगोन्ताकार नलीसमूह (Semi-circular canals) ढक्के के मुद्गरास्थि से एकाधिक पेशी लिप्त है। उनमें और शम्बुकाकार गहर ( Cochlea), उत तौनी एक करोटीवाले कोलकास्थिक मन्नावत् स्थानसे उत्पन्न गर्ताकार कर्णाभ्यन्तरस्थ विवरकी तरह लिपट पक्का- हुयी है। उसका वैज्ञानिक अंगरेजी नाम लामाटोर स्थिके प्रस्तरवत् अति कठिनांधी अवस्थित है। ढकाके टिमयनी (Laxator tympani) है। फिर दूसरी शहा गोल तथा डिम्बाकार गवाक्षसे उनका बाहरी और थिके प्रस्तरवत् कठिन स्थानसे निकली है। उसे कर्णाभ्यन्तरको श्रोतनीसे भीतरी सम्बन्ध है। श्रोत्र- वैज्ञानिक अंगरेजीमें टेनसोर टिम्पनी (Tensor | नली ही करोटोके गहरसे कर्ण विवर तक श्रोत्र सम्ब- tympani) कहते हैं। शेषोक्त पेशी मुद्ररास्थिको धीय स्रायु (Auditory nerve) को वहन करती है। मूठसे सत्रिविष्ट है । शारीरतत्वविदमें अनेकको डपरोल गतके चारो पार्ख पस्थिमय कर्णाभ्यन्त- प्रथम येणोके अस्तित्व पर सन्देह है। उनकी रस्थ विवर (Osseous labyrinth) है। इसमें फिर Membranous झिलोका कर्णाभ्यन्तरस्थ विवर (1 समझमें उसे-पेगो नहीं-बन्धनी कह सकते हैं। ध्वजके प्राकारका अस्थि पताकास्थि कमाता है। - labyrinth) झलकता है। किन्तु यह बात देख नहीं पड़ती। वह पेषण विवरद्वार कर्णाभ्यन्तरके मध्यगररूपसे प्रव- दन्तकी तरह रहता है। क्षुद्र अंश पीछे चल टका स्थित है। उसी स्थानसे अर्धगोलाकार, नसीसमूह गहरके पश्चादभागमें चुचुकाकार कोष ( Mastoid और शम्बुकाकार गबर निकलता है। उस हार cells) पर झुका और इद अंश अधोगामी हो उच्चतामें इञ्चका पश्चम भाग पड़ता है। उसके पति पन्तको पादधारपी-पस्थिके मत्य पर गोलाकार नमें पांच बिद्ध होते हैं। उनी बिद्रसे अर्ध- गोलाकार नबीसकल निकला है। पचात् दिक्को तथा समान पड़ा है।