पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/१२८

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. ऊंचा है। कर्णपुत्रिका-कर्णफुलो १२६ कर्णपुत्रिका (सं. स्त्री०) कर्णयष्क ती, कानको साल । कर्ण प्रतीनाह (सं० पु.) कर्ण रोगविशेष, कानको कर्णपुर (सं• क्ली०) कर्णस्य पुरम, ६ सत् । कर्णको राज एक बीमारी। वर्षप्रतिमा देखो। धानी म्यानगरी। आजकल इसे भागनपुर कहते हैं। कर्णप्रयाग-युक्त प्रदेशके गढ़वाल जिले का एक ग्राम । कर्णपुरी (सं० स्त्री०) कर्णस्य पुरो, ६-तत्। चम्पा यह पिण्डार तथा प्रलकानन्दा नदीके सङ्गमस्थान मगरी, भागलपुर। (अक्षा० ३०. १५२० और देशा० ७.१४४० पू०) कर्णपुष्य (सं० पु०) कर्णवत् कर्णकार कर्णभूषण पर अवस्थित है,। कर्णप्रयाग अतिपूर्वसे एक महातीर्थ योग्य पुष्यं वा यस्य। १मोग्टलता, एक वैन । माना जाता है। यहां गङ्गाके सङ्गममें नहानसे अशेष २ नीलझिण्टो, काली झाड़ी। पुण्य मिलता है। हिसालयको जाते समय यात्री इस कर्णपूर (सं. स्त्री०) कर्यस्य पू: पुरम्, ६-तत् । कर्ण के तौर्यका दर्शन करते हैं। यहां हिमाचचनन्दिनी उमाका राज्यको पुरी, भागलपुर। इसका संस्कृत पर्याय मन्दिर है। स्थानोय पण्डावोंके कथनानुसार भग- चम्पा, मालिनी और सोमपादपूः है। वान् शहराचार्य ने यह देवीमन्दिर बनाया था। कर्णपूर ( स० पु०) कर्ण पूरयति पत्नहरोति, कर्ण पहले यहां पिण्डार उतरनेके लिये रस्त्रीका भूला पूर-पण । १ शिरीषक्ष, सिरिसका पेड़। २ नील रहा। किन्तु भव लोहका सेतु बन गया है। पत्र, काला कंवक्ष। ३ अशोकक्ष। ४ कर्णभूषण, कप प्रयागके एक मन्दिरमें कार्य को प्रतिमूर्ति है। करनफल । ५ वालग्रह। यह स्कन्दादि सास रहने और किसी किसीके मतानुसार कर्ष के नामपर हो इसे वासकोको पीड़ा करते हैं। नन्दीडच, एक पीपल । कर्णप्रयाग कहते हैं। यह समुद्रतनसे २५५० फोट कर्णपूरक (सं• पु०) कर्ण पूरयति भूषयति, कर्ण- पुर-खुन कर्णपूर बायें कन् का। १ कदम्बवृक्ष, कर्णप्रान्त (० पु. ) कर्णस्य प्रातः सोमादेशः, कदम्बका पेड़ पशोकक्ष। तिलक, तिल। तत्। कर्य को शेष सोमा, कानका छोर। कर्णपूरण (सं• लो०) कर्णस्य पूरणम्, ६-तत्। तेला- कर्ण प्राय (सं० पु०) देशविशेष, एक मुल्क। यह दिसे कर्यका पूरण, तेल वगैरहसे कानका भराव । देश नैस दिकमें अवस्थित है। (सं० । बेहादिको मावासे भिषक्को मलौ मांति कण भरना | कर्ण मावरण-जनपदविशेष, एक मुल्क। महाभारतमें चाहिये। नित्य कर्णपूरणसे मनुष्य न तो ऊंचा सुनता यह जनपद दक्षिणदेशीय कालमुख, कोलगिरि, निषाद पौर न बहरा पड़ता है। रसाबसे भोजनके पहले प्रकृतिके साथ उसके। (सभाप.१०५०) और तैनाद्यसे सूर्यास्तके पीछे कर्णको भरना अच्छा देशावलीक मतमें कर्णप्रावरण माचव देपसे है। (यव) २ कर्णपूरणद्रव्य, कानमें डालनेको चीन । परिम पड़ता है। मत्स्यपुराणमें एक अपर कर्ण कर्णप्रसाद (सं• पु०) कर्ण अङ्गुलिपिहितकणे प्रणादः प्रावरणका नाम है। उसी जनपदसे पावनी नदी 'शब्दविशेषः, तत्। कर्णनादनामक रोगविशेष । प्रवाहित है। (मझा. १९०५) वह सम्भवतः हिमा- करनाद देखो। सयसे उत्तर सगता है। कर्ण प्रतिनाह (० पु.) कणे जातः प्रतिनाहः कर्णप्रावरण अपने अधिवासियोका भी बोधक है। रोगविशेषः, मध्यपदशी । कर्ण रोगविशेष, कानको पाचात्य मेगस्थिनिसने भारतपुस्तकमें कर्णप्रावरणों को एक बीमारी। कर्णका मल पिघन्त घाण और एनटोकटे ( Enotokoitoi) लिखा है। तक भा पहुंचनेसे कर्यप्रतिनाह रोग समझा जाता कर्यफल (स.पु.) कर्णः फलमिव यस्य। मत्स्य- है। इस रोगसे मस्तकके अध भागमे वेदना हुवा विशेष, एक महतो। (Ophiocephalus kurrawey) करती है। (माधवनिदान) कर्ण प्रतिनाह रोग, मेड राजवभक मतसे यह पजीणं और कफकर और वेद प्रयोगकर मस्खादि लेना चाहिये। (दस) | कप फुची-चप्रामको एक नदी। यह पचा० २९. Yol. IV. 33