पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/१३५

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उस किया। कर्णाट भारतका सर्वदक्षिण अंश रामखरसे कावेरी नदी ई० दशम शताब्दको कर्णाटका दक्षिणांश चोन्द राजा- पर्यन्त कर्णाट देश ठहरता है। किन्तु महाभारत, वौके हाथ लगा। उस समय उत्तर अंशमें कलचुरी मार्कण्डेयपुराण और वृहत्संहितामें कर्णाट अवन्ति, वंश राजत्व रखता था। दशपुर, महाराष्ट्र तथा चित्रकूटको साथ उता है। यथा बल्लालदेव महिसुरके तोव रमें जाकर रहे। "पवन्तयो दाशपुरास्तथैवा कपिनो जनः । समय वह और उनके वंशधर विजयनगरके कलचुरी महाराष्ट्राः सकाटा गोना शिवकूटका:॥" (मार्कणे यपु. ५८५०) राजाको कर देते थे। कलचुरीके अधःपतनसे वक्षाल- "कर्णाटमहाटविचित्रकूटः।" (हतहिता १४।१३) वंशका अभ्युदय हुवा। १३३६ ई०को वहालवंशने. शक्तिसङ्गमतन्त्रमें भी एक स्थानपर कहा है- प्रबल हो तुङ्गभद्राके दक्षिण कर्णाट प्रदेश अधिकार "भारतीय राजेन्द्र कोलापुरनिवासिनी। १५६५ ई० पर्यन्त उसका प्रभाव अनुस्म नावद्दे थो महाराष्ट्रः कर्णाटखामिगोचरः।" रहा। मुसलमानोंसे हार वह प्रथम येवाकोंडा, फिर चन्द्रगिरिमें जाकर बसे। उनको एक शाखा पान- यहां महाराष्ट्रके निकट कर्णाटस्वामौका उल्लेख गुण्डीमें भी थी। उसी समय कर्णाटिक नाम मिलता है। निकला। प्राचीन कर्णाटसे कर्णाटिकको स्वतन्त्र एतदजिन्न कर्णाटके राजावोंके खोदित शिला- देखानेके लिये एकको 'कर्णाटपयान-घाट' अर्थात् लेखमें पढ़ते, कि वह वर्तमान महिसुरके उत्तरांशसे कर्णाटको निम्न भूमि और उसके उत्तर पार्वतीयः विजयपुर पर्यन्त समुदाय भूभागमें राजत्व रखते थे। स्थानको 'कर्णाट बालाघाट कहते थे। सम्भवतः इसी भूखण्डको महाभारत, मार्कण्डेयपुराण मुसलमानोंने विजयनगरके हिन्दू राजा भगा और बृहत्संहिताम कर्णाट कहा है। आजकल कितने कर्णाटको दो भागमें बांट लिया-कटिक हैदरा- ही लोग कनाड़ा और कर्णाटिक प्रदेशको कर्णाट बाद या गोलकुण्डा और कर्णाटिक वीजापुर। फिर समझते हैं। किन्तु यह उनका भ्रम है। हम जिसे उभय विभाग पयानघाट पौर बालाघाट दो विभागमें कर्णाटिक कहत, उसमें कोई प्राचीन कर्णाटराज विभक्त हुये। रहते न थे! मुसलमानोंके पानसे महिसुरका दक्षिण व्युत्पत्ति-भारतके संस्कृतज्ञ पहित कर्णाट शब्दको अंश कर्णाटिक कहाया है। कोटिक देखो। श्रीमद्भागवत- कर्ण:अट्-पच् सकन्धादि व्युत्पत्ति लगाते हैं। किन्तु में दक्षिण कर्णाटका नाम है। यह स्थान कोङ्ग, शब्दशास्त्रविद् . पण्डितोंके कथनानुसार. द्राविड़ी वैवाट और कूटक नामक जनपदके साथ उक्त है। कर्णादु (कर कृष्ण+नादु स्थान) अर्थात् कष्यप्रदेश वा (भागवत ICIC) वर्तमान कर्णाटिकका कावेरीकूलस्थ कृष्णकार्पासोत्पादक क्षेत्रसे कर्णाट बना है। मार्कण्डेय- स्थान उक्त दक्षिणकर्णाट हो सकता है। पुराण, महाभारत और वराहमिहिरको वृहत्संहिता कनाड़ा कर्णाट शब्दका ही अपभ्रश है। किन्तु पढ़नेसे कर्णाट नाम बहु प्राचीन मालूम पड़ता है। कनाड़ा प्राचीत कर्णाट राज्यके भीतर नहीं पड़ता। कर्णाट शब्द स्थानवाचक होते भी ,बहु दिनसे मुसलमानों के मसिरके दक्षिणांशको कर्णाटिक कहा स्वतन्त्र जाति और भाषाका बोधक है। नेकी तरह अंगरेजोंने भी गोवाके दक्षिणस्थित समुद्र कर्णाट-ट्राविड़ ब्राह्मणों की एक श्रेणी । भारतके कूलवर्ती विस्तीर्ण भूभागका नाम कानाड़ा रख लिया। उत्तराञ्चलमें पञ्चगौड़ कहने से जैसे कान्यकुन, सारस्वत, प्राचीन काल समुद्रकुलवर्ती उक्त विस्तीर्ण भूभाग गौड़, मैथिल तथा उत्कल, वैसेही दाक्षिणात्य में सद्याद्रिखण्डके अन्तभुता था। कानाड़ा देखो। ट्राविड़ शब्दसे महाराष्ट्र, तैलक, द्राविड़, कर्णाट और कर्णाटप्रदेशमें चालुक्य, चेर, गङ्ग, पल्लव और कल गुर्जर ब्राह्मण समझ पड़ते हैं। चरि वंशने राजत्व किया। चालुक्य प्रमति प्रत्येक शब्द देखो। दाविड़ ब्राह्मणों की भयं श्रेषो कर्णाट है। यह