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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/१४२

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कर्णीसुत-कतरी. १४३ कर्णीसुत (सं० पु०) कयाः सुतः, ६-तत् । मूलदेव, कणी (मस्त्री०) बों में देखो। चौर-मास्त्रकार। फर्य (सं० वि०) कर्णे भवः, कर्ण यत्। शरीरावयवाच । कर्ण.चुरचुरा (सं० स्त्री०) कर्ण चुरचुरा मन्त्रणाकथनम, पा धाश५५ ॥ १ कर्ण से उत्पन, कानसे पैदाः। २ कर्ण के निपातनात् सितम्। पामे समितादयय । पा ४८। गुप्त योग्य, कानक चायक । कमणि यत् । ३ भेदके योग्य, मन्त्रणा, कानाफूसी। छेदने काबिल। कर्णजय (सं० वि० ) कणे जपति प्रकाशं यथातथा कत (सं० पु० ) कतं भावे पप्। १ भेद, काट। अनुचित प्रबोधयति कर्ण लगित्वा परापकारं वदति "सध्या नियम्य यनयो यमकतईसिं जा : स्वराडिव निपानखनि- वा, अलुक्समा०। १ गोपनमें उचित विषय पर वमिन्द्रः।" (भागवत रा०५८) 'कतो भेदः तनिरासो ऽवतः। (श्रीधर) परामर्शदाता, छिपकर वाजिब सलाह देनेवाला । (वै०) २ गतं, गढ़ा । (नि.) कतयति भिनक्ति, कते- २ परके अनिष्ट विषयका मन्त्रदाता, चुगलखोर । अच् । ३ भेटक, तोड़ने-फोड़ने या चोरने-फाड़नेवाला। इसका संस्क त पर्याय-सूचक, पिशन, दुजैन और कर्तन (स'• लो० ) अत् भावे ल्युट । १ छेदन, काट- खल है। इनमें कर्णजप एवं सूचक दूसरेका पप छांट। २ कताई, सूत कातनेका काम। ३ शिथिल कार बताता और पिशन, दुर्जन तथा खत परस्पर करनेका काम। करणे ल्युट। ४ काटनेका अस्त्र, भेद लगाता है। सराशनका पौजार । कर्तरि स्यु । ५ छेदकारक, कअपमन्त्र (स'. पु.) विषनाथन मन्त्रविशेष, काटनेवाला। जहर उतारने का एक मन्त्र । उक्त मन्त्र यह है कर्तरी (सं. स्त्री० ) कर्तन-डीप् । १ कपाणी, कटारी। "नों हर पर नौलग्रीवश्वेतासङ्गजटायमणितखखेन्दुस्मा तमन्नरूपाय २ श्मनुकतनोपयुक्त पत्र, बाल काटने लायक विषमुपहर उपस'हर हर हर हर मासि विष' नास्ति विष' मास्ति विष' औजार। छुरे, केची वगैरहको कर्तनी कहते है। उहिर उच्छिर छिरे।" (पविसहिता) कर्तब, करतब देखो। इस मन्त्रको बार बार पढ़ तालुमुख शीतल कर्तरि (सं. स्त्रो०) क-इन्। काटने का प्रस्त्र, जलसे छह बार सौंचनेपर विष उतर जाता है। तराशने का औजार। कतरी देखी। 'कणे टिरटिरा (सं० स्त्री० ) गुप्तपरामर्श, कानफसी। कतरि-च्चित (सं० ली.),टत्यभेद, किसी किस्का कर्णेन्दु (सं० पु.) कर्णयोः कर्ण वा इन्दुरिव, नाच। यह एक उतप्लुत करण है। इसमें नर्तक उपमि० । अर्धचन्द्राकार कर्णालारविशेष, कानका करण-स्वस्तिकके सहारे उछलता है। एक गहना। कतरिका (म. स्त्री.) कर्तरी खायें कन-टाप इखश्च । कर्णन्द्रिय (सं० पु.) योनेन्द्रिय, कानका कता । कतरी देखो। कर्णात्यल (स. क्लो०) कर्ण स्थितमुत्पलम्, मध्य- | कर्तरि लोहिड़ी (सं• स्त्री०) नृत्योतनुतकरण विशेष, पदलो। कर्ण स्थित यम, कानमा कंवल । २एक किसी किस्का नाच। इसमें पहले करण खस्तिक .प्राचीन कवि। लगाते, फिर उसे खोलते समय उछलकर .तिरछे पड़ कर्णोपकर्णिका (स. स्त्री०) कर्णदुपकों ऽस्त्यस्य, जाते हैं। कणों पकर्ण ठन् टाप् प्रत इत्वम् । १ कानाफूसी करने. कतरी (सं० स्त्री०) कन्तति, कत-अर-ङीष्; यहा वाली स्त्री कत राति, कर्त-रा-क। कपाणी, काती, सोनेके पत्तर (स. क्लो०) कर्णरोम, कानका . बाल । काटनेका एक औज़ार। २ श्मनुकतनोपयुक्त अस्त्र, (पु.) कणे जणाधिक लोम यस्य, बडुव्री०। २ मृग बाल काटने लायक औजार, छुरा के.ची वगैरह। विशेष, एक हिरन। ३ क्षुद्र करवास, कटारी। ४ वाद्यविशेष, एक बाना । "कयो पदयास्यनिष्ट नामिभिः।"(भागवत १६२०) ५ योगविशेष। ज्योतिषशास्त्र में लिखा-चन्द्र अथवा -