१५. कपूर-कपूरस देनसे रोगका प्रतिकार पड़ता है। मेहादि रोगमें | कपूरतिलक (०.०) कपूर इव भक्त तितकं .लिङ्गोझास घटते उक्त पौषधके साथ पफौम अधिक ललाटचिई यस्य, बहुव्री०। इस्तिविशेष, एक हायो। देनेऔर लिङ्गपर कपूरका लिनिमेण्ट लगा लेनेसे कपूरतुलसी (स. स्त्री.) कर्पूरगन्धिका तुचमी, श्राशु फल मिलता है। कपूरको तरह महकनेवाली तुलसी। स्त्रियोंके जरायुमें इसी प्रकार नाना रोगके कारण | करितेल (क्ला) कर्पूरस्य तैलमिव स्नेहः । प्रदाइ उठने पर अवस्थानुसार १६ ग्रेनको मात्रामें कपूरस्नेह, कपूरका तेल। इसका संस्क त पर्याय- कपूरको एक एक गोलो बना दिनको २३ बार हिमतैल और सुधांशुतल है। यह कटु, उष्ण, दन्त- खिलानसे विशेष उपकार होता है। किन्तु ऐसे दाव्यं कर और वात, कफ, पित्त तथा पामहर होता है। स्थल में गेगिणीका मन्त्र खाली रखना पड़ेगा। (राजनिघण) प्रसवकान्त पीड़ा उठते कपूर और काचोमल पांच-( कपूरनालिका (सं० स्त्री० ) पक्काबविशेष, एक पांच ग्रेन मधु डाल दो गोली वनात और एक खिलाते | मिठायो। मोवन मिलो मैदाको एक लम्बो नली हैं। इससे बड़ा लाभ पहुंचता है। कोई एक घण्टे बना लवङ्ग, मरिच, कपूर और शर्करा भरते हैं। पौछे जुलाब भी देना पड़ता है। फिर मुख बन्द कर कृतमें भूननेसे कपूरनालिका बनतो पौनस रोगमें कपूरका वाध्य बड़ा उपकार करता है। यह शरीरवर्धक, बलकारक, सुमिष्ट, गुरु, पित्त है। फिर सायुशूलमें ३।४ ग्रेन कपूर प्राध ग्रेन वेलो तथा वायुनाशक, रुचिजनक और दीप्ताम्नि मानवके डोनाके साथ लगानसे अधिक लाभ होता है। लिये अत्यन्त लाभदायक है। (भावप्रकार) हिन्दोम हैजे में कभी कपूर उपकारी और कभी अनुपकारी इसे कपूरको गोझिया कह सकते हैं। है। गर्भवतीको अधिक मात्रामें कपूर खिलानेसे कपूरमणि (स० पु०) कर्पूरवर्णो मणिः। पाषाण- गर्भस्राव होता है। भेद, कपूरकी तरह एक सफेद पत्यर। यह तिल, वस्त्रादिमें कपूर डाल रखनेसे कोड़ा नहीं लगता। कट, उष्ण और व्रण तथा त्वक् एवं वातदोषनागक भारतवर्ष में यह पूज्य द्रव्य समझा जाता है। प्रत्येक होता है। (राजनिघण्ट) देवदेवीको धारती इसमे हुवा करती है। फिर कपूररस (स० पु० ) १ प्रतिसाराधिकारका रसविशेष, सुगन्धके लिये पञ्चामृत और पक्कानमें भी यह पड़ता है। दस्तकी एक दवा। यह हिल, अहिफेन, मुस्तक, कपूर-संस्क सके एक प्राचीन विद्वान् ग्रन्यकार। यह इन्द्रयव, जातीफल और कपूर यत्नसे घोटनेपर बनता गजमलके पिता और मेघदूत-टीकाकार कल्याणमल्लके है। दो गुच्चापरिमित वाटिका जलसे वांधी जाती है। पितामह थे। ( भेषज्यरबावली) २ रसकपूर, रसकपूर। इसमें प्रथम कपूरक (सं० पु०) कर्पूर इव कायति प्रकाशते; कपूर सामान्य रूपसे पारद सोधा जाता है। शुद्ध पारदके कै-क। १ कवूरक, कच्ची हल्दी। २ कच रक, कचूर । परिमित गैरिक, पुष्टिका, स्फटिका, सैन्धव, वल्मीक, कपूर कवि-संस्कृतके एक प्राचीन कवि। भोजप्रबन्ध क्षारलवण और भाण्डरजक मृत्तिका एक प्रहर घोटत इनका उल्लेख है। हैं। फिर उक्त चणके साथ शुद्ध पारद एक हांडीमें कपूरखण्ड (सं० पु०) कपूरस्य वखा, ६-तत् । रख जपर दूसरी हांडी लगा मट्टीसे हार बन्द करना कपूरका खण्ड, कपूरका डला। पड़ता है। क्रमशः तीन बार महीका लेप सूखनेपर चार दिन बरावर हाडी अम्निमें की जाती है। कर्पूरगौर (सं• त्रि.) कर्पूरवत् गौरः शुभः। कर्पूरकी भांति रामवर्ण, कपूरको तरह गोरा। पांच देने पौके पांचवें दिन हांडी पार पर रहती है। कर्पूरगौरी (स' स्त्री.) एक.रागियी। इसमें ज्योतिः, अन्तको प्रति सावधानताये जपरको हांडो खोलते हैं। खम्बावती, जयतश्री, टर और बराटोके खर सगते हैं। उसमें क'रकी भांति जो पारद .सग जाता, वही
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/१४९
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