पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/१६१

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पाप रोग प्राययित वाप्पगुलम इचल पीतवर्ण मूर्ति विसर्जन कर भकिमकासे पाचार्यको निवेदन करना चाहिये,- "वमोऽपि महिपापदौ दशपादि- भयानकः। दक्षिणाया पतिदयो मम पापं व्यपोहता" १०८ मावा वर्ग की प्रकृतिका दान। १०८ भाषा परिमित सर्वक मनै पारावतका दान। यसवर्णगीदान । ब्राह्मणको दचिया मस्ति को भानगन्य दाना दचिणा सहित इतकुम्दान। एकपल परिमित व प्रयदान ! एकपल परिमिन खां पायदान । कर्मविपाक पापकार्य विशेषसे दूहनन्म वा परजन्ममें रोग- विशेष भी भोगना पड़ता है। थासातप ऋषिने जिस पापसे जिस रोगका विधान किया, नौचे वह लिख दिया है। पापसे जो रोग लगता, उसका प्रायश्चित्त करना पड़ता है। प्रायश्चित्त न करनेसे वही रोग पर- जन्ममें भी मनुष्थको कष्ट देता है। महापातकसे सात, उपपातकसे पांच और पापसे तीन जम्म तक रोग पीछा नहीं छोड़ता। महापातक, उपपातक और पासकके महिपहत्या मानरिहत्या प्रायश्चित्तका भी न्य नाधिक्य रहता है। महापातकमें पूर्ण, उपपातक, अध और पातक, षष्टांश प्राय- बकडव्या वित्त करना पड़ता है। फिर अतिपातकौ दानादि अकशारिकहत्या साधारण विधान द्वारा मुक्त हो सकते है। शूकरच्या रोग मायथित गावच्या हरिणहत्या कागहत्या अधिकार विचिवयुक्त कागदान। पिवहत्या भवहत्या वक्रमुख भनपल चन्दन दान। मेषहत्या पाणुरोग वाद्याको एक पल कस्तरी दान। उहत्या) विछावखर कपूरक फलदान। काकडव्या कौनता कृष्णवर्ण गोदान । खरइत्या कर्कगलीम नौम मुद्रा परिमित खणप्रति दान। इतिहल्या सर्वकार्य सिद्धि मन्दिर बना गणेशमूर्ति प्रविष्ठा अथवा कुलव्य थाक वथा पिष्टक हारा माहत्या गणसमूहका शान्ति विधान पौर एक लक्ष गणेशमन्त्र जपा. थाटहव्या तरतुहत्या कैकराति गुरुममयी धेनुका दान। दीर्घनासिका स्खलितवाक्य 919 पहशून्यता खन्न चेतनानाग प्रन्ध मूक गीइत्या क्षष्ठ ३०प्राजापत्य बना एक पपपरि. मित खाकी नौका पर वामपावमै रौप्यमय कुम्प रख १०८ माषा परिमित स्वर्णका विविध गढ़ पध्वस्त्र पहना यथा विधि पूना करना चाहिये। पीके यह समस्त द्रष्य ब्राह्मणको देते है। पिवत्याका भी प्राययित इसमें भी करना पड़ता है। चान्द्रायण व्रत कर 'सरखति नगन्मातः शब्दब्रह्मादिदेवते। दुफम करणात पापात पाहि मां परमेवरित' मन्त्र पढ़ पन परिमितं व मा बामणको पुस्तक है। १० पयत्य वच रोय, शर्करा वया धनुदान पोर शत ब्राझपमोचन। बाधएको विवाहदान, हरि यण, महारुद्रका जप, अयुव संख्यक दूळ पाहुति है दचिपासह १०८ भाषा परिमित १५ सय सपथवा ११ पल व ११ मामयको देना चाहिये। फिर पन्चान्ध ब्राझवी मो दधिचा दान करना कर्दम्य । अवशेष पाचार्य वरषदेवतमब हारा स्त्रीरत्या अतीसार वालकाच्या मतवमा पच पक्षब संयुन्छ, पक्षवर्य विशिष्ट, रसाचन्दनलित, रक्तपुष्प ए६ रतवन पाच्छादित एक रसकुम्भ दक्षिण दिक् स्थापित कर, तिलचूर्ण- | पूर्ण नासपात्र उसपर रख उसमें १०८ माषा परिमित वर्णकी यममूर्ति जमा पुरुषसूल मन्बसे पूजा और उसमें अपने पापकी शान्ति प्रार्थमा करना चाहिये। इसके पीछ सामवेदी वाप्राण कलस मामपरायण करेंगे। फिर दश भाग सपंप हारा पाव माल्यका मिसेचन होता है। अन्तको निलिखित मन्त्र द्वारा यम-