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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/१६२

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कर्मविपाक पाप रोग प्रायविच पाप रोग प्राययिच साहस पल वृक्ष दाना दौन वझर पर्यन्त प्रयत्व साँच विघ्नराजकी पूजा करें। स्वयं सह एक लोटे घृत वा पाचे लोटे मधुदान। अगदान। राजव्या चयरोग नव्या पाणुष्ठ दम्पतीको बान कराता है । यजमान अशंसता यासकाथ पाचार्यको पत्रं पलक्षार प्रति प्रदान/प्रतिमामा पप्रतिष्ठ करें। गो, भूमि, वर्ण, मिष्टान्न, जल, मद्यपान रापित बन, वृतधेनु और सिखनु दान । पादरोग चारी पोर पञ्चपल्लव एवं पञ्चवर्ष/ पथनाय रजस्खला-स्पट संयुक्त कलस रख मध्य कलस पर रौप्य निर्मित बदल पच लगा उसक पन्न भोजन कृमि विषदान अपर १० ती वर्ष निर्मित दयदक्ष छर्दिरोग पसंख देव स्थापन करे। हादश दिन पर्यन्त प्रभचारो त्राशयकी सभाम पचपातिता पचाधान कलसस्थ देवको पूजा, वेदपाठ, होम मुरापान यावदन्त प्रति प्रव्याह सम्पादन करना चाहिये। पौछ सब ट्रम्य पाचार्यको देना पड़वाह। ४ प्राजापत्य बना सप्त धान्य उत्सर्ग। देवालय और १माजापव्य बना दचिणाकै साथ एक्ष नुदान। मलम मलमबत्याग गुदरोग मक्ष प्राजापव्य बना प्राधापकी भूमि भगम्यागमन ध्रुवमयल तथा दचियादान और भारत यवथा। भीमपञ्चकका उपवास। विराव गौमूव तथा यायमोजन । दश दुग्धवती गाभी दान करना चाहिये। सत्यवादी ब्राहमणकी ३ निष्क (३२४ माषा) स्वयं दान । प्रामापव्यवस पाचारण कर० नौला शर्करादान, महारुद्रका नप, उसके दाम तिलसे डोम और वरुण मन्द हारा अभिषिक। वैश्यहस्या रसाद दथापतानक शुद्रहव्या वंशनाथ कुष्ठ पौर निवेश 'भमच्य भोजन उदरकृमि . पप यस्य पनमोनन भपात उदरकृमि यकृत, सोडा, एक मास काल देवता पूजा और १प्राजापव्य वया १ गामी दाम। कार्पास मार एवं कांस दोष स'युव सवळा तिलपविपरिमित वर्ष नुदान । दानकाल यह मन्त्र पढ़ना पड़ेगा-"सुरभी वैधवी मावा मम पापं व्ययोहतु।" दो मास काल प्रति दिन सहय संख्यक धाम। दी निष्क (२१६ माषा) स्वर्ण श्रथिनीकुमार बना दान करना चाहिये। पचयोनि गमन गुदस्तम्भ पीरजलोदर रशानिसार दावाग्रिदावा अषक पन्नहरण हीनदीप्ति दुष्टषचन विराव उपवास। तीन पल परिमित स्वर्ण रौप्य नथा नासयुख मल एवं धेनु दान । जलपान तथा वठवध रोपण करना चाहिये। दुग्ध पूर्ण घटचय तथा दो पक्ष रौप्य वाणकी दान। तीन प्रानापव्य बना १०० मायण खिलाना चाहिये। बधाकूर्चमयो धेनुका दान। काशनमधेनुढाम। खपित उपम रहदै मन्द अनदान मन्दाग्नि गुड़ तथा धन दान इतविकार हरण गुब्बोदर जपाकम्बलादि तथा मेपलीमजान व्यबोमय हरण धू तता पपचार परनिन्दा भन्यक भोजनमें वित्रदान पजीणे अन्धको दुःखदान गल श्रीपध हरण सूर्यावत यथाविधि खचडीम कर्तव्य है। पन्नदान और रुद्रका भय वरना चाहिये। व सहगामीदान १०० माषा परिमित खसे पनिमूर्ति बनाना करना चाहिये, पोछे धन्त मूर्ति और कम्बवदान करे! एकमास काय सूर्याध्य और काषन दाना ययाति देवालय पौर उद्यान निर्माण करना चापिये। कन्दमूल हरण 'बन्यको उपहास