१६४ कमविपाक पाप रोग प्राययित पाप रोग प्रावयित कांस्यहरण पुण्डरीक पकान हरण गुरुपवीगमन -मूववच्छ धेनुदान। दी तिलपान दान। कृष्णकुट विध फलदान। चालीगमन होनमुष्कता ब्राह्मणकी अलङ्कात कर शतपल | नानाविध द्रव्यहरण यहयो ययाशक्ति जन, वन्न पौर नर्मदान । कांस्य दैना उचित है। निद्वारींग लच वार गायत्री जप पौर निम्ब- नोल माखायुक्त एवं नौलवस्त्र- द्वारा उसका दांय वन। बाच्छादित घट पयिम पर रख उस पस्वहरण लोमशून्यता पर तायपावमें छह निष्क स्वर्ण निर्मित | पश्योनिगमन नूवावात वरुणमूर्ति पुरुषसून से पूजना चाहिये। | पिनुष्वसागमन दचिणमागमै व्रण यथाशक्ति छागदान । फिर सामवेदो व्राह्मणको उसी समय | पुववध गमन कन्यागमनकै प्रावयितसे पापा सामवेद पढ़ना उचित है। पौर २० प्रावयिच पोर वयुक्त तिनदारा निष्क परिमित खर्ण पुतलिका दयांश होम करना चाहिये। 'निष्पापोऽ' कहके ब्राह्मम्पकी और फलहरण पालिव्रण त्राअषको अयुतमक्षक नाना- उक्त वरुणमति प्राचार्यको प्रदान करना चाहिये । वरुपमूर्ति देते धानजायागमन गुआ और कुछ कन्दागमन प्राययित्तसे पापा समय यह मन्त्र पढ़ना पड़ता है,- प्राययित्व और वृतयुक्त तिवसे दयांग "यादसामधिपो देवो विधेशामधिपो झोन कर्तव्य हैं। वरः। स'सारनीकर्णधारो वरुणः मधुहरण नेवरीग उपवासी रह नधु पौर धेनुदान- पावनो ऽस्तु मे।" करना चाहिये। मालगामौकी भांति प्राययित्त मातुलानीगमन कुजवा छचमगचर्म दान । करना चाहिये। मागमन लिङ्गदीनता उत्तर दिक् छपमानायुक्व उम्भ एक मास रुद्रका जप और बन्नावत रख उसके ऊपर कांनपावमें यथाशक्ति खदान। छह निष्क परिमिव व निर्मित मर मधु, धेनु और स्वयं सह शत वाइन कुवरको नर्ति स्थापनकर पुरुष द्रोणपरिमित तिलदान। सूतासे बच करे। अथर्ववेदवित् बाहर दचिणा छ उत्तम प्रचालय उसी समय पधर्ववेदोक्ष कार्य करवा देना चाहिये। रहे। पन्तकी स्थिति निष्क परिनिव प्राजापत्य व्रत और शतपल परि- स्वर्ण की पुतली वाअाएको निष्पापोऽ' मित तामदान। कहकर और उमा कुवेरमूर्ति ब्राह्मएको उपवासी रह वाझपकी दो लोटे दे डाले। कुवेरको मूर्वि देते समय तैलदान की। उपवास रख यथाविधि ब्राह्मणको नामधिपो देव: शहरस्थ प्रियः सखा । हत पीर धेन देना चाहिये। सौ शाधिपतिः यीमान् मम पाप' वाघणको दधि और धेनुदान । व्यपोचत ।" ब्राहमणको दो पल कडुम दान । मारवसागमन सर्वावण दो प्रानापत्य करना चाहिये। प्रायपिन करे। तपखिनीप्रसन प्रमेह तपखिनीसजन्म भरमारी ताम्बर लहरण देतीछता ताबहरण भोर म्बर कुछ तैलहरण का प्रति या मन्त्र पढ़ना चाहिये,-'निधी- व (शीया) हरण | नेवरीग दास दान और पगम्यागमनका दधिष्ठरण मत्तता काष्ठहरण इतखेद दौचिता स्त्रीगमन | दुष्टरक्रजन्य नेवरोग दुग्धहरण बहुमूवं देवताहरण विविध वर मतभार्या एक प्राझपको विवाह है। ब्राह्मणको ययाविधि दुग्ध धेनुदान। मृतभार्यागमन ज्वरम कद्र, महावरमें महारुद्र | रक्तवस्त्र और रौद्रन्चर में पतिरौद्र और वैष्णवन्दरमें प्रवालहरण महारुद्र तथा अतिरीद्रका अपलोडहरण करे। वातरता चिविताड मणि पौर बस्नसह महिषी दान। एकदिन उपवास रख मतपल- लोक दान कर।
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/१६३
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