कर्मविपाक रोग प्राययिन मृत्यु पाप प्रायविन . माशयका वर्ष- चौरहस्त मुख्य घे तुदान। घातसे नृत्यु गिरनेसे मृत्यु निष्क परिमित स्वनिर्मित प्रजा-गुरुहत्या शय्यासे निष्क परिमित स्वनिर्मित पाबमैं वखहरण 98 पति चौर भीड़ा पत्र दे। विण पधिष्ठान युक्त पौर तुबसीपन विद्यापुस्तक हरण भूकता वाहणको दचिणा सह न्याय भूषित शय्या दान। रविष्ठास प्रभतिका दान। दचिपाहरण दावाग्नि वा बचाघातसे महास्दनपादि, पलायी काहसे ब्राहकारवहरणअनपत्यता घरमै समा लगना चाहिये। दयांय कीम और मतवत्साका प्राय-विद्रीय विवाद-सस्कारहीन अवस्थाम मरण कुमारको विवाह दान । यिनीक प्राययिता प्राणनिन्दा प्रखराधावसे बत्मा दुग्धवती गामौ दाना AT8751 पनपत्त्यावस्थामै तौन चान्द्रायण कर सौ अशरफी हरण कुखनमा वखहरण ०च्छमतोंका पाचरण। देना चाहिये। गच्छित धनहरण कुचराघातसे व्याघ्रादि इतकी तरह प्राययित। माकरण मील खीचन प्राणको दो महानीलमपि दान । राजाव्या गजाधानसे चार निष्क परिमित स्वर्णनिर्मित यविहरण पायुकैम उपवास रख शतपल गनिदान करे। इलिदान । मुगन्धि द्रव्यहरण बदौगन्ध बच पहारा पनि होम करे। पराहत्या खगोन स्त्रीगमन भगन्दर महियो दान। नाखादि हारा पण बनमध्य शूकरा- खजाति स्त्रीगमन | इदयद्रय दी प्राजापव्य करे। पचो धारण व्याघ्रादि इतकी तरह प्राययिन। पामगर घाचि अवस्थामै खकन्यागमन मृत्यु रखकुष्ठ पूर्वदिक पोतमाल्य तथा पीतवस्त्र दो नियक खज हरिदान। पाच्छादित कलस रख उसके ऊपर मद्यविक्रय पोय प्रानापन्य कर्तव्य है। | खपावमें हनिष्क परिमित वर्गनिर्मित मिवभेद मन इम्त मृत्य उपदान। अनिदग्ध वासव मूर्ति स्थापन कर पुरुषसूच | यशानि यथाशक्ति पादुका दान। द्वारा यज्ञ करे। इस बीच सक, राजकुमार व्या वर्णमय पुरुष दान । यजुः एवं साम नौमों वैदके पनुसार रामहति इत्या वृक्षाघातसे खसखवच दान। चलना चाहिये। पूजाके भन्न खोपहरण पतीसार रोगसे संयत भावमें सक्ष सायक 'निष्पापोई कार ब्राणको सुवर्ण गायवी नपा सांधात निर्मित गत पुनली और भाचार्यको विपदाम नाग बलिदान चौर वर्णदान । शिवनिन्दा माघात वासवमूर्ति है। मूर्ति देनेका मन्त्र वस्त्रसवपदान। वमनरीगवा यह है-“देवानामधिपो देवो बचो शानहरण. सत्यु विधानिकेतनः। भवयन: सध्याचः मुव्य भावगम्यदान। पापं मम निझन्ननु । खबना गौका पाघात उपकरण सा पत्रदान। अनध्यायमें पध्ययन वचाधानसे विद्यादान। सेतुभेद नखमग्र तीन निष्कपरिमित वर्षमय वयदान। पप गी अवससे वैदपरायणता। दसहित कार्य थालिनी प्रभतिके बारहत्ति डक या उपकटक यथायक्ति स्वर्णदान । यथोचित बद्र नाम नप। कुमतिदान विषप्रयोगसे चैव युक्त भूमिदान। हिसा उन्धनमैं दुग्धवती गामीदाना कुमारोगमन व्याघ्रादिसे परकन्धाकी विवाह दान। मयाघात वीन नियक परिमित खदान । याच्छोदन और वानराधात वर्णनिर्मित बानर दान। निकृन्तम समिसे ब्राधचको गौष मात्र दाना विशूमिका रोग १०० प्राधा मोनन। कण्ठमावल तिल नुदान। देवनिन्दा सखसे दधिचा सह मषियी दाना वैभरीग नव पाचरण करना चाहिये। Vol. IV. 42 राजत मृत्य अस्प या मनसे पाविध . यानिन्दा वा
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/१६४
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