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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/१७८

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कलकत्ता १७८ । अंगरेजोंको दिल्लीके साम्राज्यमें सर्वत्र विना शुल्क न हुये। एकदा नवाव जलपथसे नौकापर चढ़ कलकत्तेकी ओर पाते थे। भागीरथोतौरके अन्यान्य वाणिज्य चलाने और वहादेशम इच्छानुसार सकल ग्राम छोड़ अवशेष उनको तरणो कलकत्तेके पास स्थल पर कोठी बनाने का प्रादेश था। इसीसे अंग- पहुंची। उस समय यहां एक अतिसामान्य पल्ली रेजोंने नवाब थायस्ता खान्के समय हुग़लोमें कोठी 'यो। दक्षिणांश विलकुल जलसे भरा नङ्गल रहा। वना हुगलो, पटना, वालेखर, कासिम बजार, ढाका सिर्फ उत्तरांगमें गङ्गा किनारे कुछ लोग बसते थे। प्रभृति स्थानमें विपुत्त उत्साहसे बहु विस्तृत वाणिज्य मुरथिदाबाद और कलकत्तेके बीच भागोरथोके पूर्व भारम्भ किया। उस समय बङ्गालको प्रतिः कोठी में नट पर किसी ग्राम वा नगरकै निकट ऐसा बन एक यनसाइन और २० रक्षी सैन्यको छोड़ दूसरा न रहा। इसीसे सुचतुर कणचन्द्र ने अपनी जमी- कोयी सामरिक बल न था। किन्तु अल्प दिनमें न्दारीको दुरवस्था नवावको देखाने के लिये इस प्रदेशमें ही अंगरेजवणिक् वाणिज्यसे प्रबल पड़ गये, जिससे 'प्रवेश करने पर भाग्रह लगाया। नवाब अलोवदों बवालके नवाब कुछ क्रुद्ध हुये। उन्होंने छल वक्षसे ‘रानाका एकान्त अनुरोध टार न सके और जमीन्दा- अंगरेजी वणिक्-दलको शासनमें रखने की नानाविध -रीको अवस्था अपनी आंखों देखने को निकल पड़े। चेष्टा को थो। अन्तको अंगरेज नवाबके अत्याचारसे लोकालयको छोड़ वह जितनी दूर भागे चले, उतनी अत्यन्त पीड़ित हुये। वह सम्राटको सनदको न देख दूर सिवा अरण्यके दूसरे दृश्य देखनेको न मिले । नाना प्रकार अंगरेजोंसे शुल्क लेने लगे। अंगरेज फिर राजा कृष्णचन्द्रको शिक्षाके अनुसार नवाबके बणिकीका प्राण नाकम था। उन्होंने कोर्ट अब डिरेकर साथी परस्पर कहने लगे-यहां व्याघ्र प्रादि हिंस्रकका को इस विषयको सूचना दी। डिरेकरोने इङ्गलेण्डके भय है। राजाने भी समय पा सजल नयन और कातर राजाकी अनुमतिसे अपनी वाणिज्यतरी दो वेड़ों 'वचनसे निवेदन किया-"धर्मावतार। मेरे सौभाग्यसे ( Fleet )में बांट एकको सूरत और दूसरेको गङ्गाके कृपापूर्वक विशेष कष्ट उठा पाप यहां तक भाये हैं। मुहान भेजा था। गङ्गाके मुहाने पानेवाले बेड़े ६०० इसलिये कुछ दूर अभी चले चलिये। फिर इस युरोपीय शिक्षित सेना रही। जमीन्दारीको अवस्था देखने में कुछ रह न जायेगा।" डाइरेकरोने कम्पनीके गुमाश्ते जब चारनकको -नवाबने उत्तर दिया,-'अब पागे जाना पावश्यक लिख भेजा,-'बङ्गालके सब अंगरेज इस प्रकार प्रस्तुत आज तुम अपने पिटपितामहके ऋणसे मुक्त रहें, कि बालेखर, वड़ा पहुंचते ही जहाज़ पर चढ़ हुये।' इससे हम सहज ही समझ सकते-उस सकें। फिर जहाजी वेड़ेके अध्यक्षको पादेश था,- 'समय कलकत्तेको अवस्था कैसी थी।- 'बालेखरसे सब अंगरेजोंको जहान पर चढ़ा चट्टग्राम कलकाने में गरेजोका पागमन, तत्कालीन बचान्त नगर पाक्रमण करो और बहां पामरक्षणोपयोगी परिक निधास ।-अंगरेजोंको पहली कोठी बालेश्वरके | दुर्गादि बना सतर्कतासे रहो।' . निकट पिप्पलीमें बनी थी। फिर कई तरहका गड़ जहानी वेडा जनमें कुछ विलम्ब सगा। प्रलोबर बड़ पड़नेसे अंगरेज कुछ दिन प्रपना वाणिज्य मास वेड़े के पहुंचनेका संवाद मिलनेपर अब चारनकने बङ्गालमें फैला न सके। उस समय सूरतमें भी शीघ अध्यक्षको लिखा था,-पापं सदल हुगलीके अंगरेजोशी एक कोठी रही। उसके पधीन 'होपवेल नीचे पा जायिये। उन्होंने स्वयं भी हुगलीको कोठीके 'जहाज" चलता था। मिष्टर ग्रेत्रियेल बौटन इस अधीन एक पोसँगीज, पदाति दल प्रस्तुत किया था। जहालके अस्त्रचिकित्सक रहे। इन्होंने १६४४ ई०को नवाब शायस्ता खान्नें इस संवादसे डरकर सन्धिको सम्राट शाहजहानको एक कन्याका दुरारोग्य चत बात ठहरायो। भारीग्य करनेके पुरस्कारमें एक सनद यायो। उसमें नवाब सन्धिका प्रस्ताव उठाते भी भविचम युद्ध नहीं। 'पोर पान-