पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/१८४

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- कलकत्ता १८५ इससे पहले जो सकल पत्र प्रादि लण्डनके कोर्ट पूर्वभारत वणिक्समिति ( United Company of अब डिरेकसकी पथवा पन्यन लिखा गया, उस पर Merchants trading in the East India )# 'स्तानुटी' नाम पड़ा था। फिर 'प्रेसिडेन्सी भव' वीय सभाके सभापति हुये। फोर्ट विलियम मेसि- फोर्ट विलियम चिखने लगे। शेषोल नाम अद्यापि डेसी इलाकेका कार्यसमूह चलानेको उनके अधीन चल रहा है। किन्तु यह निण्य करना कठिन है पाठ कमिशनर रखे गये। इस विसम्बादी वषिक सुतानुटी, कलकत्ता और गोविन्दपुर तीनों ग्राम समितिके सम्मिलनसे उक्त दोनों कम्पनियों के कर्म- चारियोंका विवाद न घटा। कलकत्ता नामसे कब अभिहित दुवै । किसी किमी मतमें है.१७ वें शताब्दको कलकत्ता नाम दूङ्गलेण्ड के राजागे सम्राट अकबरके निकट सर निकला था। किन्तु यह मत भ्रमात्मक है। क्योंकि विलियम निवासको दूतखरूप भेजा था, किन्तु उनका १७०१ ई०की ही विसम्वादी पारेन वणिक कार्य निष्फल हुवा। सम्राट्ने अपने राज्यके मध्य समितियों (अर्थात् इङ्गलिश कम्यनो और ईट इण्डिया समस्त युरोपीयोंको बन्दी बनानेकी पात्रा निकाली कम्पनी)के सम्मिलित होनेकी सनद बनी, उस पर थी। पटना और राजमहलका अङ्करेज़ उपनिवेश सूसानुरी लिखी गयी। कलकत्तेका नाम कहीं नहीं लूटा गया। फिर कलकत्तेको लूटनेके लिये भी मिलता। फिर भी उपरोक्ष तीनों ग्राम इसी प्रकार हुगलीके फौजदारने अङ्ग्रेजों को भय देखाया था। मनिवेशित हुये। टालीनाले (तत्कालीन गोविन्द किन्तु वियार्ड साहबने कलकत्तेको उत्तमरूपसे पुरकी खाड़ी या आदिगङ्गा )से प्रारम्भ कर वर्त. सुरक्षित कर फोनदारो भयप्रदर्शनको उपेचा की। मान किले तक गोविन्दपुर रहा। यह ग्राम कुछ फौजदारने भी अवस्थाको समझ बूझ विशेष गड़बड़ कच्चे मकानोंका समष्टिमान था । मध्यभाग वनसे डाचा न था। परिपूर्ण रहा। १००६ ई०को प्रेसिडेण्ट वियाई साहब मर गये। उत्तर चितपुरका नाला, (मराठा खात), परिम उनके पदपर दोनों कम्पनियों का हिसाब साफ करनेको भागीरथी, दक्षिण वर्तमान टकसाल तथा वहा वाज़ार देने और सेलडन साइव नियुक्त हुये। उस समय और पूर्व कार्नवालिसका कुछ अंश एवं सरक्युलर बहुत सौ तोपोंकि साघ १३० युरोपीय सिपाही फोर्ट रोडका थोड़ा पश्चिमांश सूतानुटी नामसे प्रसिद्ध था। विलियमकी रक्षा करते थे। कलकत्तेको अवस्था दिन गोविन्दपुर और सूतानुटीके मध्यवर्ती दिन सुधरनेपर निर्विघ्न व्यवसाय वाणिज्य चलानिशी कना कहते घे। ठीक ठीक निर्णय किया नहीं चारों ओरसे लोग पाकर रहने लगे। महानगरी नाता, भागीरथी-तोरसे पूर्व किस स्थान तक कलकत्ता कलकत्तेका इसी प्रकार प्रथम पवयव बना। विस्तृत था। बड़ा वाज़ार, पथरिया गिर्जा, पोष्ट औरङ्गजेवको सनदये ठहराया-वासरिक ३००१) पाफिस, कष्टम हाउस प्रभृति स्थान डिही कल रु. देने पर घरेजों को सर्वप्रकार शुल्का ने अध्याति कत्ते में रहे। फलतः उक्त तीनों ग्राम और कई सामान्य मिलेगी। किन्तु नवाव मुरगिर-कुनोखान्न अन्यान्य -पल्लियां मिल कर यह "सौधमयो नगरी' (City of व्यवसायियोंकी भांति गरेर भी सैकड़े पीछे २॥ रु. Palaces ) बनी है। शुल्क लेनको प्राज्ञा दो। कलकत्तेके तत्कालीन गवरनर १७.३ ५० को जान वियाई साहबने समिलित हेजेस,सावने अङ्करेजों के प्रति यया व्यवहारके प्रति- Historical Notices concerning Calcatta in the days विधानको आशा दून मेजने के लिये १७१३ ई०को of Job Chamok (in Indian and Colonial Blagazine) कोट-भव-डिरेकम से अनुमति लो । उक्च दौत्य- सवाटीके प्राचीन चिट से समझते, कि पायदावार, गलकड़िया, कार्यकी मोहन-समन तथा रेफेनन नामक दा भिन्न मिसलिया प्रवनि कई खवन्ध ग्राम उसकी सौमारी माहर थे। कोठीवाल, खोजा सरहद दुभाषिया और डॉकर Vol. IV. 47 नको कल-