पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/१८९

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१८० कलकत्ता कानमें शगता था। १७५७ ई०को यहां. वन परिष्कार कानीघाट शब्दसे भी कलकत्ता नाम नहीं निकला। होने लगा। चौरङ्गीको वर्तमान समस्त सौधमाला क्योंकि भारतीय नाना स्थान के प्राचीन तया भावनिक प्राधुनिक है। तत्सामयिक प्रापजान साहबका जनपद नगरादिका नाम मनोयोगपूर्वक देखनेसे .मानचित्र देखते ही समझ सकते-१७८४ ई०को यहाँ समझा जा सकता-कालोके स्थानमें 'कई और

कुल २४ मकान् उस समय यहां (वर्तमान

घाटके स्थान में 'कत्ता की तरह अपभ्रधवा नाम परि- -मिडलटन नाम गलीके 'लोरेटो हाउस' नामक वर्तन कभी नहीं पड़ता। विशेषतः कालीघाटके खान मकानमें ) सर इलाइजा इम्पो रहे। उनके मकानके निकट पुष्करिणी (भोल) थी। यह झील पूरते है। भारतमें जिस स्थानके नामसे पहले 'काली' गन्द कलकत्ता बनना शब्द शास्त्र के नियमसे सम्पूर्ण वहित समय साङ्घातिक विशूचिका रोगका सूत्रपात हुवा। पाता, वह भारतवासियों क्या मुसलमानों के द्वारा भी . इसीसे वर्तमान 'मिडलटन रो' नामक मागं कुछ विभिन्न बोचा नहीं जाता। सुतरां यह प्रयौखिक दिन कालरा ट्रोट' या विशूचिकामार्ग (हेज की राड) सिद्धान्त एककाल ही छोड़ना उचित नंचता, कि कहा गया। यह समस्त स्थान सम्पीके उद्यानमें रहे। कालीबाट नामसे 'कलकत्ता बनता है। कालीघाट देखो। कलकचा नामकी उत्पति। इस नगरको देहाती बङ्गाली 'कोलकाता पौर कलकत्ते नामके सम्बन्ध पर लोग अनेक कथा हिन्दुस्थानी 'कलकत्ता' कहते है। बंगला भाषामें कहा करते हैं। उनमें दो एक बात हम सुनाते हैं। 'कलिकाता' लिखते भी 'कोलिकाता' बोना जाता है। १ प्रवाद है-सर्व प्रथम एक अज यहां पाये हमारे एक विश्वस्त बन्धुने 'कोल्का हाता' या 'कोनिका थे। उन्होंने किसी दूसरे को न देख एक कृषकसे इस हाता' नामसे 'कलकत्ता की उत्पत्ति मानी है। उनके स्थानका नाम पूछा। वह अक्षरेजी वीली समझ न अनुमानानुसार प्राचीन कालको कोच पथवा कोहि सका। उसने अपने मन में सोचा-साहबने मेरे धान्य के जातिके लोग यहां नदी किनारे रहते थे। सम्म विषयमें प्रश्न किया। इसीसे वह कह उठा-'कल वतः उन्होंके वास करनेसे कोलकाता या कोचि- काटा' अर्थात् कल धान्य काटा था। वस साइवने काता नाम पड़ा गया। संस्कृत, प्राकत, पाति और इस स्थानका नाम क्याल क्याटा' ठहरा लिया। द्राविड़ भाषामें 'कोल' शब्दका अर्थ शूकर मिलता २ लत साइबके कथनानुसार सम्भवतः मराठा है। फिर सुन्दरवनमें परिणत रहते समय वल- खात अर्थात् 'खाल काटासे कलकत्ता नाम निकला है। कत्ता भी विस्तर शूकरोंसे भरा था। पनुमानमें ३ किसी किसी विचक्षण अङ्गगरेजके मतमें उसी समयसे इस स्थानका नाम 'कोलकाता' चना 'कलिचूण'से कलकत्ता नामको उत्पत्ति है। है। अकबरके समयं ( सम्भवतः उसके भी पूर्व) ४ कोई कासीघाट शब्दको कलकत्ते नामका 'कलतत्ता महालके प्रान्तवतों नौच खोग शूकर पक- श्रादिरूप बताता है। इनका व्यवसाय करते थे। वराहनगर* इस व्यव- ऊपर लिखी सब बातें हमारी विवेचना में युक्तियुक्त सायका प्रधान स्थल था। पोलन्दाओं और फरा- वा प्रामाणिक मानी जा नहीं सकती। सोसियोंकी ईष्ट इण्डिया कम्पनीका इतिहास पढ़नेसे पगारेजोंके पागमन और मराठा-खातके सननसे अनक स्थल में इस बातका प्रमाण मिलता है। फिर पहले कलकत्ता विद्यमान था। क्योंकि यह बात भी निःसन्देह कहा जा नहीं सकता-शूवर अथवा अबुल फजलके पाईन-इ-अकबरी अन्यमें देख पड़ती है। सुतरां 'कास काटा' प्रवाद और खाल काटा मे • वगहनगर नाम धाधुनिक नहों। प्राचीन पोवन्दात्रों दबा फरा- कलकत्ता नाम बनाना अत्यन्त उश, मस्तिष्कको सोसियोंक पुस्तक..घोड...अकबर बादशाहकै समसामयिक कपि,माधवा- चार्यक वसीयधमें वरानगरका सोख विद्यमान.। कथा है।