कलकत्ता कोल जातिके नामसे कलकत्ता शब्द निकलता है।। (Calcutta) लिखा देख पड़ता है। फिर टामस इसलिये अब विवेचना करना चाहिये-कैसे कलकत्ता 'किचेन नामक किसी भौगोलिकने कलकत्ता (Calcutta) माम पड़ा था। की जगह 'कलकला' (Culcula) नाम व्यवहार किया भाजकल बङ्गाली कलिकाता और हिन्दुस्थानी है। यूलके कलकलाको 'खोलखाली' मानते. भी कलकत्ता कहा करते हैं। किन्तु अाजकल इस बात भानुषङ्गिक प्रमाणसे समझ पड़ता-किसी समय यर बड़ा सन्देह है-प्रकवरके समयमें एवं अङ्गा कलकत्तेको कोई कोई 'कलकला' भी कहता था। रेजोंके पानेसे पहले इस स्थानको क्या प्रकृतरूप वास्तविक १६८८ ई०से पहले किसी पनादिमें बटतः 'कलिकाता अथवा कलकत्ता कहते थे ? हम पूर्व | कलकत्तेका उल्लेख नहीं पाया। फिर १६५६ ई के बतला चुके-पाईन-इ-अकबरीमें 'कलकत्ते महास' बोलन्दाज़ मानचित्रमे सूतानुटी और गोविन्दपुरका और कविकणके मुद्रित चण्डीग्रन्यमें 'कसिकाता' नाम मिलते भी कलकत्ता छिपा है। हा एक स्थल नामका उल्लेख मिला है। किन्तु दूसरा विषम विवाद पर उसमें 'कलकला' नाम लिखा है। इससे अनुमान यह उपस्थित हुवा-एशियाटिक सोसाइटीके प्रथम किया जा सकता कि कलकत्तेका प्राचीन, नाम प्रकाशित भाईन प्रकवरी ग्रन्थमैं सातगांध सर 'कलकला' था। कारके बीच कलकत्ता महालके उल्लेखसे नीचे राजा राधाकान्तदेवने अपनी शेषावस्थाको बन्दा- 'कलता', 'कलना', 'तलपा' आदि पाठान्तर पड़ा है। वनधाममें एक बंगला पदावली बनायी थी। उन्होंने 'फिर मुद्रित पुस्तकम रहते भी कविकरण-रचित अपनी मुद्रित पदावलीके मुखपत्र में 'कलिकाता' खान चणीमङ्गखको कई प्राचीन पोथियों में 'कलिकाता नाम पर 'किलकिला' नाम दिया है। इससे समझ पड़ता; नहीं मिलता। सिवा इसके प्रकवरके समसामयिक कि राजा राधाकान्तको कलकत्ते का प्रपर नाम बिल कवि माधवाचार्यके चण्डी ग्रन्थमें धनपति एवं किसा अवश्य अवगत था। राजा प्रतापादित्यके सम. श्रीमन्तको समुद्रयावाके वर्णनकाल वराहनगर, सामयिक कविरामने अपने बनाये दिगविजयमकायमें चितपुर, कालीघाट प्रभृति पावस्थ स्थानों का उल्लेख 'किलकिला' भूमिका विवरण लिखा है। उसे हम आया है। किन्तु कलकत्ता नाम उसमें भी देख नहीं पहले ही यथास्थान वर्णन कर चुके है। इसमें सन्देह पड़ता । ईष्ट-इण्डिया कम्पनौके पनादि ढूढनेसे नहीं, कि उक्त भूमि हो पाईन-इ-अकबरीज्ञा 'महाल 'सर्व प्रथम १६८८९०को १६वौं अगस्त को कलकत्ता कलकत्ता' रही। यह असम्भव कैसे हो सकता कि (Calcutta) नामका उल्लेख मिलता है। इसलिये उसी किलकिलाको बिगाड़ कर भोचन्दाज भौगो. बड़ा सन्देह उपस्थित हुवा है-ई०.१६ वे शताब्दसे लिकने 'कलकला' लिखा था । कविरामके दिग्विजय पूर्व कलिकाता' या 'कलकत्ता' नाम वर्तमान था या प्रकाशमें एक स्थल पर किलकिलाका वर्णन मिलता नहीं। कारण श्रीचन्दाज वालेण्टाइनके मानचित्रमें है। उससे किलकिला भूमिके अन्तर्गत. किलकिला प्राचीन कलकत्ता यामके उभय पावस्थ चिहानुटी नामक ग्राम भी समझ सकते हैं,- (वा सूनानुटी) और गोवर्णपुर (वा गोविन्दपुर )का "शिक्षिता दक्षिणांश योजनवयव्यत्यये । उलेख पड़ा है। किन्तु कलकत्तेका नाम कहीं नहीं। सहमधारा गया हिनावा च तिकीटके।" फिरभी दूसरे स्थान पर वालेण्टाइनने किसी कल- (किलकिला विवरण १९० श्री.) कत्ता (Calcuta ) ग्रामकी बात लिखी है। करनेल किलकिला प्राचीन कलकत्ता ग्राम ही मालम यूल साहब उक्त स्थानको 'खोलखाची' अनुमान
- या वर्तमान गार वलकथा ही नही सकता। कारण पकवरसे
करते है। कम्पनीके समय किसी अतिप्राचीन समुद्र बचत पोष्ट इण्यिा कम्पनीके प्रथम सपनिवेश डावत समय वचकना यात्रीके मानचिवमें 'कलकत्ता के स्थान पर कलकत्ता एक सामान्य ग्रामकावा था..