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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/२००

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कलम्बी-कलवार. एक कल। इसमें दो लङ्गर लगते है-एक अपर | कललजोद्भव (सं.पु.) कललजस्य उद्भवः उद्भवति और एक नीचे। अपरी लङ्गार पचो (चिड़िया )के अस्माता ६.तत्। शालवक्ष, सालका पेड़। प्राकारका रहता है। इसमें कमानी नहीं चढ़ती। कचवरिया (हिं. स्त्री०.) मद्यपण्यागार, कलवारको कलम्बियनको हिन्दी विडियाकल कहते हैं। दुकाना कलम्बी (सं० स्त्री.) के जले लवते, नबि संसने अच्- कलवार (हिं० पु.) जातिविशेष, एक कीम। डो। १ जनज लताविशेष, करमू। इसका संस्कृत यह हिन्दुस्थान और विहारके बनियोंसे उत्पन्न हैं। पर्याय-कड़म्बो, कलस्व और कलखिका है। कलवार पराबका व्यवसाय करते हैं। कोई कोई सम- (Convolvulus repens) राजवलमने इसे मधुर एवं झता, कि खदिर बनानेवाली 'खैरवार' नामक वन्य कषायरस, गुरु पौर स्तन्यदुग्ध, शुक्र तथा नेमकारक नातिसे कलवार शब्द निकन्ना है। फिर कोई 'कल- कहा है। २ उपोदकौलता, पोय। वाला' शब्दसे कलवार नामको उत्पत्ति बताता है। कलम्बु (स• स्त्रो०) के जले लखते, क-लम्ब-उण् । किन्तु इन बातों में कोई समीचीन मालूम नहीं पड़ती। बलम्बीशाक, करेम्। इस नातिके लोग प्रधानतः छह श्रेणियों में विभक कलबका, कलम्बो देखो। हैं,-वनौधिया, वियाहुतिया या भोनपुरी, देशवार, कलम्बुट (सं• ली.) के जले लम्वते भासते, क-लम्ब जैसवाल, अयोध्यावासी, खालमा और खरिदहा । उरन्। १ हैयङ्गवोन, तान. दूधका घी । २ नवनीत, सिवा इसके कलवारों में बहुतसे मुसलमान भी हैं। मक्खन। उन्हें 'संधी' या 'कलाल' कहते हैं। बनौधिये मुसल- कलम्बू (सं० स्त्री०) के नले लम्बते, लम्ब बालकान मान कलालोको रायबरेलोके रहनेवाले बताते हैं। जड़। कलम्बीयाक, करे। इस जातिमें विधवाविवाह प्रचलित है। विया- कलयन (सं० पु.) सर्जरस, धूना। हुतियोंके कथनानुसार पहले विधवाविवाह प्रच- · कलरव (सं० पु० ) कला मधुरास्फटी रवः ध्वनियस्य, लित न था, किन्तु पोछे होने लगा। फिर यह ख. बहुव्रो०। १ कपोत, कबूतर। "शौर्यप्रासादोपरि भिगोपुरिव जातिको उत्पत्तिके सम्बन्धमें कहत-पादि पुरुषसे कलरवः कपति" (पार्यायवी ५८३) २ कोकिल, कोयल। सब कन्नवार निकले हैं। आदि पुरुषके दो पनी रहौं। ३वनकपोत,जङ्गली कबूतर । ४ कचध्वनि,मोठी पावाज। 'वियाही' और 'सगाई। बियाही पत्नीके गर्भजात कतरिन (हिं. स्त्री०) जलौका लगानेवाली स्त्री, सन्तान वियाहुत और सगाई पत्रीक गर्भजात सन्तान जो औरत जोक लगाती हो। इसे कन्नडिन भी अन्यान्य नामसे परिचित हैं। वियाहुत मद्यका व्यवसाय, करते हैं। मद्यपान और अपने हाथ से गोदोहन या वृषभका कचल (पु.ली.) कल्यते वेष्टरते ऽनेन, कल "पण्डच्छेद नहीं करते। यह केवल साड़ीका काम वषादिभ्यः कतन् । १ जरायु, गर्भवेष्टनचर्म, हमसके चलाते हैं। खरिदहा अपनी श्रेणीका नामकरण लपेटको मिलो। २ शुक्र और शोणितका प्रथम गाजीपुर जिलाके किसी ग्रामपर ठहराते हैं। उन्हें विकार) गर्भके प्रथम मास कलल उठता है। ऋतु- बियाहुतोंकी भांति निजहन गोदोहन और वषमके माता स्त्रोक खनमें मैथुन पाचरण - करनेसे गर्भ रह अण्डच्छेदन अलग रहते भी मापान वा मद्य व्यय- जाता है। किन्तु उस गर्भ अस्थि प्रभृति पैढक सायमें कोई आपत्ति नहीं। दूसरे कलवार जैसवालोको गुग्ण नहीं होता। इसीसे कललमान निकल पड़ता जारजवंथ पुकारते हैं। किसी कन्तवारके 'जैसिया' है। (मान) नामी एक उपपत्री रही। उसके गर्भजात सन्तानोंसे कमलज (स.पु.) कललमिव जायते, कच-जन-छ। जैसवार निकले हैं। किन्तु जैसवारोंके कथनानु. १ राक्ष, धूना। २. गर्भ,. मित सार 'जैसपुर नामक ग्रामसे इस श्रेणीका नामकरण Vol. IV. 51 11