पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/२०३

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२०४ कलसव- -कलहकारक इये और समस्त धनरत्न बाँट राज्य छोड़ कर चल कलरव, मधुर भव्यता शब्द, गानेको मौठो और बारीक दिये। फिर यह पिताको मारनेकी खोज में लगे थे। भावान। किन्तु अपनी माताके कातर वाक्यसे इन्होंने उक्त कसह (सं० पु०-क्लो०) कन्तं काम इन्ति अन्न, कल- दुरभिसन्धि छोड़ी। तकने मनके दुःखसे भामधात हन् प्रधिकरणे ड। १ विवाद, झगड़ा। इसका किया। यह भी कुछ दिन अपनी लीला देखा मर संस्कृत पर्याय-घुद्ध, पायोधन, जन्य, प्रधन, प्रविदारण, गये। इनके पीछे उत्कर्ष काश्मीर के राजा इये। मृध, भास्कन्दन, संख्या, समीक, साम्परायिक, समर, (रानतरविणी, म त) अनीक, रण, विग्रह, सम्प्रहार, अभिसम्पात, कलि, कलमक्षत्र-कर्णाटकके अन्तर्गत एक पवित्र तीर्थ स्थान। संस्फोट, संयुग, अभ्यामद, समाधान, संग्राम, (स्कन्द पुराणीय बलसचेनमाहात्म्य) अध्यागम, पाहव, समुदाय, संयत, समिति, पाजि, कलसरी (हिं. स्त्री०) १ पक्षिविशेष, एक चिड़िया। समित्, युध, शमीक, साम्मरायक, संस्केट और युत् इसका घिर. कष्णवणं रहता है। २ मन्नयुद्ध कौशल है। २ पथ, राह । ३ खड़गकोष, तलवारका म्यान । विशेष, कुश्तीका एक पेंच। इसमें खिलाड़ी अपनी ४ प्रतारण, झिड़को। ५ छन्त, धोका। । मुनी। जोड़की नीचे दबा मुखको और बेठ जाता और अपना कलईस (सं० पु०) कलेन मधुरास्फुटध्वनिमा दाहना हाथ उसकी बहमें डाल पीठ पर लाता है। विशिष्टो ईसः, मध्यपदलो। १ कादम्ब, एक ईस । फिर उसके दूसरे हाथकी कलाई पकड़ बांयी भोर इसका संस्कृत पर्याय~कादम्ब, कचनाद और मरा- ज़ोर लगाना और उलटाना पड़ता है। लक है। राजहंस। “कुन्दावदाता कलईसमानाः प्रवीथिरे कलसा (हि.) कलस देखो। यौनसुनिनादैः।" (मष्टि) ३ पीतवर्ण इंस, पीला इंस। कलसि (सं० पु.) केन जलेन जसति, क-तम-इन् । ४ जलकुक्कुट, मुर्गाी। ५ राजश्रेष्ठ, बड़ा राजा । १ पृश्निपर्यो, पिठवन। २ जलपावविशेष, गगी। ६ परमामा। ७ब्रह्म। ब्राह्मण | एक रागिणी। कलसिरी (हिं. स्त्री०) विवाद करनेवाली स्त्री, यह मधु, शारविजय और भाभीरीके योगसे निकलता है। झगड़ाल औरत। कलसरी देखी। १० छन्दोविशेष। यह पतिजगतीक कलसी (सं० स्त्री०) कलस-डीप। । कलस, घड़ा। अन्तर्भूत पौर व्रयोदश प्रक्षरविशिष्ट होता है। इस २ पृश्निपों, पिठवन। ३ शिखर, कंगूरा। छन्दमें १म, श्य, ४, ६४, ७, ८म, १०म एवं ११श कलसीक (को०) कलसो साथै कन् । कलस, घड़ा। अचर लघु और श्य, ५म, म, १२थ तया १३शः "पवलम्वित करइक लौ कलसीक रचयन्नवोचवा" (नैषध २८) अक्षर गुरु लगता है। कलमीमत (सं० पु.) कलस्यां जातः सुतः, मध्य- उदाहरण नीचे देखिये- पदलो। कलसीसे उत्पन्न होनेवाले गस्य सुनि। “यमुना विधार कुतुक कलह सौ प्रत्रकामिनी कमलिनी अपकलिः ।. सचिवहारिकलानिगादा धमदं वनीतु तव नन्दवन बः।" कलसोदधि (सं० पु०) कलस इव उदधिः-मन्यनाधार- (कन्दौमारी) खात्। समुद्र मन्यनका आधार होनेसे समुद्रको कोई कोई इसको 'सिंहनाद भी कहता है। उपमा कलससे दी गयी है। करसोदरी (सं. स्त्री.) कलस इव पदरं यस्याःकलहंसक (सं० को०) भरोचकाधिकारका कवल मात्र, भोजन पच्छा म लगने पर दवा पामौका कुमा। बहुव्री० । कलसकी भांति उदर रखनेवासी स्त्री, जिस पौरतके घड़े की तरह पेट रहे। कलहकार (स.वि.) कलई करोति, कलह-छ.. खल। विवादकारी, झगड़ा। . कलखन (सं० त्रि.) मनोहर शब्द करनेवासा, जो "बलाहकारोऽसौ शदवारः पपात खम्।" (भा) दिलकश पावाज लगाता हो। कलहकारक, बलाकार देखो। कसखर (सं• पु०) कलचासौ खरोति, कर्मधा.)