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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/२०४

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कलहकारा-पापा २.५ कलकारी (सं०नि०) कलह -णिनि। विवाद- पादान्त विनिपव्य व षषमठो गन्मया मूदया पाणिभ्यामवध्य इन्त सहसा बाई कथ नापितः।" (साहित्यदर्पया) कारक, झगड़ालू। 'प्यारेकी बात सुनी नकाम सौहार परीन समाप निहारी। कलाकारी (सं० स्त्री०) विक्रमचण्डको स्त्री। 'मानी कही न सखोगनकी कछु पवि परो नकिन्न समारो॥ कलहनाथन (पु.) कलई नाशयति, कतह- राम अधीन भई उलटी मसि काज मनी निज हाथ बिमारी। नध-विच्-स्यु । १ कुटज वृक्ष । २ पूति करन, करन । काई नदीक भुनान सौ रोलिक फलनको परवा गर डारी॥१॥' ३ कलह मिटानेवाला, जी झगड़ा निबटाता हो। धान्ति, सन्ताप, सम्मोह, विश्वास, ज्वर और कलहनी (हिं.) बलहिनी देखो। प्रलापादि कलहान्तरिताकी क्रिया है। (रसमबरी) कलहन्तरिता (हिं०) बलशासरिता देखी। कलहापत (वि.) कलईन अपहतम् । विवादसे कलहप्रिय (सं• पु०) कलहः प्रियो यस्य, बहुव्री० । अपहत, झगड़े से लिया हुवा। १ नारद । नारदको कलह बहुत अच्छा लगता है। कलहास (सं० पु.) हासविशेष, एक हंसी। मधुर (वि.) २ विधादप्रिय, झगड़ेसे खुश रहनेवाला। एवं अस्फर ध्वनियुता हासको कलहास कहते हैं। कलहप्रिया (म. स्त्री०) कलहस्य कलह वा प्रिया, कलहिनी (सं. स्त्री०) १ शनिकी पत्नी। २ विवाद ६ वा ७-तत्। शारिका, मैना। करनेवाली स्त्री, भगड़ालू औरत । कक्षहर-मध्यप्रदेशवासा एक बणिक जाति । कलहर अधिकांश दुकानदार है। मध्यप्रदेश में इनकी संख्या कमही (सं० वि०) कलह-इनि। कलयुक्ता, झगड़ाल । अधिक देख पड़ती है। अकेले बेनगङ्गा प्रदेशमें ही कलह-गणितोय अध्वं संख्याविशेष, हिसाबको खास सबसे अधिक कलहर रहते है। यह जाति प्रधानतः बड़ी प्रहद। इसका प्रधान नाम 'करफ है। तीन शाखा विभक्त है-सिहोरा, परदेशी और जैन कला (स. स्त्री० ) कलयति बदितो धेनं सचिनोतिः कलहर। सिहोर पहले बुन्देलखण्डमें रहते थे । कल-बच्-टाप् । १ मूलधनवधि, सूद, व्यान । फिर वहीसे आकर यह मध्यप्रदेश में बसे। पहले २ शिल्यादि, कागैगरी वगैरह। ३ अंश, हिसा। सिहोर अपनेको कमर बनिया कहते थे। ४ तीस काष्ठा परिमित समय। ५ उभय धातके परदेशी ही मध्य प्रदेशके पादि कक्षहर है। यह मिश्चणस्थानका अवकाश, दो धातुपोंके मिलनेकी कहते है-हम भारतके उत्तराञ्चलसे आकर मध्य जगहका मौका। इसीके द्वारा रस रसादि धातु पृथक प्रदेशमै बसे हैं। जैन कलहर समानच्युत और धर्मभ्रष्ट रह सकते हैं। ६ स्त्रीका रजः। ७ नौका, नाव। होनेसे दूसरे कलहरोंमें छोटे समझे नाते हैं। ८ कपट, फरेव। ए राशिके अंशका एक भाग। कलहाकुला (सं० स्त्री०) शारिका, मैना। राशिका ३० वांश भाग और भागका ३. वां खण्ड कलहान्तरिता (सं-स्त्री.) कलहात् अन्तरिता पश्चात् कला कहलाता है। परितापमाला इति शेषः । नायिका विशेष, एक औरत। "विकखाना ला षष्या सत्यध्या माम उचाते। इसका लक्षण यह है- तत् विगवा मषेद्रामिभंगयो बादशैव ते ॥” (सू बसिद्धान्त ) "चाटुकारमपि प्रापनार्थ रोषादपास्य या। १० चन्द्रका षोड़श भाग। इनका नाम अमृता पश्चातापमवाप्रोति कलहासरिता तु सा" (साहिव्यदर्पस) मानदा, पूषा, तुष्टि, पुष्टि, रति, ति, शशिनी,चन्द्रिका, जो नायिका प्रथम अनुरोधकारी नायकको क्रोधसे कान्ति, ज्योत्सा, श्री, प्रतिरक्षा, पूर्णा, पूर्णामृता पौर छोड़ पौछ पछताती, वह कलाहान्तरिता कहाती है। खरना है। चन्द्रको यह कलायें पग्नि प्रभृति देव उदाहरण यथा- कम-क्रम पीते हैं। इसीसे दिन दिन. घटने पर "नी चायव न च दयाहारो ऽसिके वीचितः अमावस्या होती है। अग्नि के प्रथम, सूर्यके हितोय; कान्तस्य प्रियाइववे निजमखीवाचोऽपि दौलता। विश्वेदेवाक वत्तीय, वरुणके चतुर्थ, वषट्कारकै पक्षम, Vol. 52 IV.