पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/२०६

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1 कलाकन्द-कलाद्गी कलाकन्द (फा० पु०) मिष्टट्रय विशेष, किसी पासवान् दक्षिण पंद भारी बढ़ाता, संब वह अपना किस्मकी बरफो। यह खोया और मिश्री मिलाकर वाम हस्त नीचेसे उसके दक्षिण हस्त पर जमाता है। बनाया जाता है। . फिर खेलाडी वाम जानु भूमि पर लगा दक्षिण इस्तसे कलाकर (हिं० पु.) वृक्षविशेष, एक पेड़। (Unona उसको दक्षिण असा पकड़ता और शिरको उसके longifiora) यह अशोककी भांति देखने में प्रति सुन्दर दक्षिण पार्खसे निकाल वाम इस्तसे उसका दक्षिण लगता है। इसे देवदारी भी कहते हैं। कलाकर हस्त खींचने लगता है। अन्तको दक्षिण हस्तसे भारतवर्ष और यवहोपमें उत्पन्न होता है। किन्तु | विपक्षको जड़ा उठा वाम दिक उसे गिराते हैं। मन्द्राजमें इसकी उपज अधिक है। दाक्षिणात्यमें कलाजसे वठक कट जाती है। 'अशोक न होनेसे लोग कलाकरको ही अथोक कहा कलाजाजी (सं० स्त्रो.) कलाय जायते, कला-जन- करते हैं। -टा। कलौंजी, मंगरैला। कलाकुल (सं० ली.) विष, जहर । कलाटक (सं.पु.) गरुडथालि, एक धान। कलाकुगल (स० वि०) कलायां गीतादि चतुःषष्टि- | कलाटोन (स० पु. ) खञ्जन पक्षी, सफेद खड़रैचा। कलाविषये कुशलः निपुणः, ७-तत्। गीतादि चौंसठ फलाद (सं० पु०) कलां ग्रहस्थदत्त स्वर्णादीनां शं कलामें निपुण, हुनरमन्द, नाचने गाने में होशियार । पादत्ते ग्यताति, कला-पा-दा-क । स्वर्णकार, सोनार। -कलाकूल, कलाकुल देखो। कलादक (सं.पु.) कलां ग्रहस्थदत्त वर्षादीनां अंश कलाकेलि (संपु०) कलामिः केलि: विलासो अत्ति गोपयति, कला-भद-ख ल। खकार, सोनार । कलासु केलिर्वा यस्य, बहुव्री। १ कन्द, कामदेव। कलादगी-१ बम्बई प्रदेशके दक्षिण विभागका एक (वि.)२ विलासी, मौजौ। जिला। यह अक्षा० १५.५० से १७. २७ उ. और • कलाकौशल (म. ली.) कलाका चातये, हुनरकी देशा० ७५. ३१ से ७६. ३१ पू. तक अवस्थित है। क्षेत्रफल ५०५७ वर्ग मोल लगता है। कलादगीके कलाक्षेत्र--कामरूपका एक प्राचीन तीर्थ। (यौगिनीतन्त्र) उत्तरांशमें भीमा नदी बीजापुरके पार्श्व से निकल गयो कलाङ्कर (सं० पु.) १.सारसपची। ३ चौरशास्त्र है। इससे शोलापुर ज़िला और पकलकोट राज्य प्रयतंक कर्णीसुत । ३ कंसासुर। बीजापुरये पृथक पड़ा है। दक्षिणको मालप्रमा -कलाङ्गल (सं० पु.) अस्त्रविशेष, एक इथियार। नदी, पूर्व एवं दक्षिणपूर्व निजामका राज्य और पश्चिम कलाङ्गुलि (सं० पु०) शालि धान्यविशेष, किसी सुघोलराज्य, जामखण्डी तथा जाठ है। किस्मका धान । यह स्थान प्राचीन दण्डकारण्यके अन्तर्गत है। कलाचिक (सं० पु०) दी, चम्मच । कलादगीके निर्जन भरण्य में धर्मपाण हिन्दुवोंके · कलाधिका (सस्त्री०) कलां पचति गच्छति प्राप्नोति देखने की बहुत सी चीजें हैं। अपूर्व प्रस्तरखचित वा, कला-अक्-अण् स्वाधे कन-टाप् प्रत इत्वम् । पौराणिक दृश्य इधर उधर पड़े हैं। किन्तु इन सबके .१ प्रकोष्ठ, कलाई ! कूपर (कुहनी से मणिबन्ध निर्माताको समझने का कोयी उपाय नहीं। कलादगी ( पहुंचे) पर्यन्त इस्तभागको कलाचिका वा प्रकोष्ठ जिलेमें ऐवल्लो, बादामी, बागलकोट, धूलखेड़, गलगलों, कहते हैं। २ अश्वक नानुका पग्रिम भाग, घोड़ेके हिपर्गी और महाकूट प्रधान है। उन सकल स्थानोको घुटनेका अगला हिमा

लोग पुण्य तीर्थ समझते हैं। देवों, ऋषियों और

कलाची (सं-स्त्री.) कला-अच-अण्-डोए। कलाचिका देखो। सिहोंकी लीलाके प्रसङ्ग माहात्म्य सूचित हुवा है। -कनाजन (हिं. पु.) मझधका कौशल विशेष, मादामो देखो। कुश्तीका एक पेंच। इसमें खेसाड़ीके सामने जब दूसहा ठीक लगाना कठिन है- वन काट कर बसती सफायो। ।